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पटना हाईकोर्ट ने रद्द किया आरक्षण, नीतीश कुमार अब भी बचा सकते हैं यह कानून, जानें कैसे?

Nitish Kumar Save Reservation Law: पटना हाईकोर्ट ने कल बिहार सरकार को झटका देते हुए आरक्षण की तय सीमा से अधिक दिए गए आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया। ऐसे में आइये जानते हैं नीतीश कुमार के पास ऐसे कौनसे ऑप्शन है जिनके जरिए वे इस कानून को बचा सकते हैं।
09:19 AM Jun 21, 2024 IST | Rakesh Choudhary
पटना हाईकोर्ट ने रद्द किया आरक्षण  नीतीश कुमार अब भी बचा सकते हैं यह कानून  जानें कैसे
सीएम नीतीश के पास अब कौनसे रास्ते?

Nitish Kumar Save Reservation Law: पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए नीतीश कुमार को बड़ा झटका दिया। कोर्ट ने आरक्षण की 50 प्रतिशत से अधिक सीमा वाले आरक्षण को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इससे समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है। नीतीश सरकार ने यह आरक्षण एससी, एसटी, ईबीसी और ओबीसी वर्ग को दिया था। बता दें कि सीएम नीतीश कुमार ने 7 नंवबर 2023 को विधानसभा में इसकी घोषणा की थी। इसके बाद शीतकालीन सत्र के चैथे दिन 9 नवंबर को विधानमंडल के दोनों सदनों ने पारित किया था। राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन गया।

ऐसे में अब जब हाईकोर्ट ने आरक्षण रद्द कर दिया है तो सीएम नीतीश कुमार के पास ऐसे कौनसे रास्ते हैं जिसके जरिए वे बिहार को अभी भी 65 फीसदी आरक्षण का लाभ दे सकते हैं।

1. 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में फैसला देते हुए कहा कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। ऐसे में विशेष परिस्थितियों में इस सीमा का तोड़ा जा सकता है। लेकिन अगर कोई सरकार कोर्ट को यह समझा दें कि प्रदेश में कुछ जातियां ऐसी है जो सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक रूप से पिछड़ी है। ऐसे में इन जातियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आरक्षण आवश्यक है। ऐसे में अगर आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा को क्राॅस करता है तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को कोई आपत्ति नहीं होगी। अगर बिहार सरकार हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करती है और सही तर्क सामने रखती है तो हाईकोर्ट जरूर इस पर विचार कर सकता है।

2. नीतीश कुमार के पास दूसरा रास्ता संवैधानिक है जो मोदी सरकार की सरहद से होकर गुजरेगा। अगर नीतीश सरकार आरक्षण कानून को संविधान की 9वीं अनुसूची के तहत रखकर अगर कानून बनवा दे तो फिर इस कानून की न्यायिक समीक्षा नहीं होगी। ऐसा केंद्र में एक बार हो चुका है। इंदिरा साहनी मामले से पहले 1991 के लोकसभा चुनाव के साथ तमिलनाडु में विधानसभा के चुनाव हुए थे। कांग्रेस और जयललिता के बीच गठबंधन था। राज्य की 39 में से 11 सीटें जयललिता के पास थी। जयललिता ने आरक्षण की सीमा 69 प्रतिशत कर कानून को विधानसभा में पारित कराया और 9वीं अनुसूची में शामिल कराने का प्रस्ताव केंद्र के सामने रखा। पूर्ण बहुमत नहीं होने से नरसिम्हा राव की अगुवाई वाली सरकार को झुकना पड़ा और उन्होंने तमिलनाडु के आरक्षण बिल को 9वीं अनुसूची में शामिल कर लिया। इस वजह से संविधान में 76वां संशोधन भी हुआ।

ठीक ऐसा ही कुछ नीतीश कुमार भी कर सकते हैं। लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। वे नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहयोग से सरकार चला रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार केंद्र पर बिहार के आरक्षण बिल को 9वी अनुसूची में शामिल करने का दबाव बना सकती है।

3. वहीं तीसरा रास्ता भी केंद्र से होकर गुजरता है। इसके लिए उन्हें केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव बनाना पड़ेगा। केंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया। दोनों ही अनुच्छेदों में एक सब सेक्शन जोड़ा गया कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकेगा। ऐसे में मोदी सरकार ने संविधान में 104वां संशोधन करके यह आरक्षण की सीमा बढ़ाई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में वैध माना। ऐसे में बिहार के इस प्रकार संशोधन करना थोड़ा मुश्किल प्रतीत होता है, लेकिन अगर मोदी सरकार ऐसा करती है तो यह अपने आप में बहुत बड़ी बात होगी।

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