Sanjay Malhotra की राह में चुनौतियां हजार, इनसे कैसे निपटेंगे नए RBI Governor?
New RBI Governor: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ने ऐसे समय कार्यकाल संभाला है, जब देश में अर्थव्यवस्था, रुपए की कमजोरी, महंगाई और नीतिगत ब्याज दरों में कटौती पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। मल्होत्रा को जहां अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर संतुलन बनाना होगा। वहीं, डॉलर के मुकाबले रुपए की बिगड़ती सेहत का इलाज भी ढूंढना होगा। आम जनता नए गवर्नर से महंगाई को नियंत्रित करने और सस्ते कर्ज का तोहफा देने की उम्मीद भी लगाए बैठी है।
इकॉनमी और रुपए की कमजोरी
भारत की GDP ग्रोथ 2024-25 की दूसरी तिमाही में लुढ़ककर 5.4 प्रतिशत रह गई, जो 2022-23 की तीसरी तिमाही के बाद से सबसे कम है। संजय मल्होत्रा को सबसे पहले इन आंकड़ों पर फोकस करना होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद से US डॉलर में मजबूती आ रही है और भारतीय रुपए कमजोर होता जा रहा है। मल्होत्रा को इस कमजोरी को मजबूती में बदलने के उपाय तलाशने होंगे, जो बिल्कुल भी आसान काम नहीं है। रुपए की कमजोरी भारत की अर्थव्यवस्था को और बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है।
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लागू करने होंगे बदलाव
दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था की मंदी के मद्देनजर आरबीआई पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव है, लेकिन रुपए की सेहत पर अतिरिक्त दबाव इसे मुश्किल बना देगा। वहीं, संजय मल्होत्रा को रेगुलेशन संबंधी प्रमुख बदलावों को लागू करने की चुनौती का भी सामना करना पड़ेगा। इसमें बैंकों को अपेक्षित ऋण घाटे के आधार पर बैड लोन्स के लिए प्रावधान करने की आवश्यकता शामिल है, जो उनके लाभ के साथ-साथ अल्पावधि में लोन देने की उनकी क्षमता को भी प्रभावित करेगा। लेकिन भविष्य में डिफ़ॉल्ट से निपटने के लिए उन्हें बेहतर स्थिति में रखेगा।
फ्रॉड पर लगाम की चुनौती
RBI गवर्नर को बढ़ते ऑनलाइन फ्रॉड पर लगाम लगाने के लिए भी सख्त कदम उठाने होंगे। डिजिटल फ्रॉड के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और RBI पर इन पर अंकुश लगाने का दबाव है। रिटेल सेक्टर में बैंकों द्वारा बीमा और अन्य वित्तीय उत्पादों की गलत बिक्री भी एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर मल्होत्रा को ध्यान देना होगा।
महंगाई पर नियंत्रण की चुनौती
साथ ही संजय मल्होत्रा के सामने महंगाई के मोर्चे पर आम आदमी को राहत देने की भी चुनौती होगी। शक्तिकांत दास अपने पूरे कार्यकाल में इससे जूझते रहे। उन्होंने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत ब्याज दरों में कोई राहत नहीं दी। इस उपाय से महंगाई को मोर्चे पर उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली और लोगों के लिए सस्ते लोन की राह भी मुश्किल बन गई। दास के कार्यकाल में ऐसा पहली बार हुआ जब RBI को महंगाई के मुद्दे पर केंद्र सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ा।
रेपो रेट में कमी की चुनौती
महंगाई ने शक्तिकांत दास को खूब परेशान किया, ऐसे में संजय मल्होत्रा को कोशिश करनी होगी कि उनके साथ ऐसा न हो। RBI पर रेपो रेट में कटौती करने का भी दबाव बढ़ रहा है। पिछले कई बार से यह 6.5% पर स्थिर है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ब्याज दर में कटौती की वकालत कर चुके हैं। मल्होत्रा फरवरी में होने वाली RBI मौद्रिक नीति समीक्षा समिति (MPC) की बैठक की अध्यक्षता करेंगे, इसी बैठक में नीतिगत ब्याज दरों पर फैसला लिया जाता है।