Noel Tata को उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहते थे Ratan Tata; बिजनेस टायकून की बायोग्राफी में बड़ा खुलासा
Ratan Tata Biography Relvealed Big Secret: रतन टाटा 9 अक्टूबर 2024 को इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। 10 अक्टूबर को उनका अंतिम संस्कार किया गया। रतन टाटा के निधन के बाद उनके सौतले भाई नोएल टाटा को दोनों टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन बनाया गया। है। यह दोनों ट्रस्ट 165 अरब अमेरिकी डॉलर के टाटा ग्रुप को कंट्रोल करते हैं।
रतन टाटा के निधन के बाद उनकी एक बायोग्राफी 'रतन टाटा- अ लाइफ' रिलीज हुई है, जो हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा रिलीज की गई और इसे थॉमस मैथ्यू ने लिखा है। इसमें खुलासा हुआ है कि रतन टाटा नहीं चाहते थे कि नोएल टाटा उनके उत्तराधिकारी बनें। दोनों ट्रस्ट के चेयरमैन बनें, क्योंकि इस पद के लिए उन्हें अभी बहुत अनुभव और ग्रुप के बार में ज्यादा जानकारियों की जरूरत थी। इसलिए उस समय उन्हें ट्रस्ट का चेयरमैन नहीं बनाया गया था।
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बेटा होता तो उसके लिए भी वे यही रास्ता अपनाते
बायोग्राफी में खुलासा हुआ कि मार्च 2011 में रतन टाटा ने अपने उत्तराधिकारी की तलाश की थी। इसके लिए बनाई गई कमेटी ने कई आवेदकों के इंटरव्यू लिए थे। नोएल टाटा ने भी इंटरव्यू दिया था, लेकिन रतन टाटा सेलेक्शन कमेटी से दूर रहे और अपने इस फैसले पर उनको अफसोस हुआ। कई लोग चाहते थे कि वे इसका हिस्सा बनें, लेकिन वे दूर रहे, क्योंकि टाटा ग्रुप के अंदर कई लोग चेयरमैन बनना चाहते थे।
रतन टाटा उन्हें विश्वास दिलाना चाहते थे कि वे किसी की सिफारिश नहीं करेंगे, चाहे कोई भी हो। उनके उत्तराधिकतारी का चयन सेलेक्शन कमेटी ही करेगी। उस वक्त नोएल टाटा को इस पद के लायक अनुभव और जानकारी भी नहीं थी। रतन टाटा ने कहा था कि वे सीढ़ियां चढ़ते हुए इस पद तक पहुंचें और अगर उनका कोई बेटा भी होता तो भी वे कुछ ऐसा करते कि उनका बेटा भी सीधे उनका उत्तराधिकारी नहीं बन पाता।
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ग्रुप में फैली धारणा से बचने को कमेटी से दूर रहे
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 2011 में पद साइरस मिस्त्री को दिया गया था। यह एक ऐसा फैसला था, जिसने रतन टाटा को नाराज़ कर दिया था, क्योंकि साइरस मिस्त्री के साथ उनकी ज्यादा बनती नहीं थी। रतन टाटा सेलेक्शन पैनल से इसलिए भी दूर रहे, क्योंकि ग्रुप में धारणा बन गई थी कि उनके सौतेले भाई नोएल टाटा ही उनके उत्तराधिकारी के लिए एकमात्र उम्मीदवार थे, जबकि कंपनी में पारसी और समुदाय के परंपरावादी उन्हें अपने में से एक मानते थे।
रतन टाटा का मानना था कि केवल व्यक्ति की प्रतिभा और मूल्य ही मायने रखते हैं। इन्हीं के आधार पर सेलेक्शन होना चाहिए। रतन टाटा विदेशी आवेदकों पर भी विचार करने के लिए तैयार थे, बशर्ते उनके पास आवश्यक योग्यताएं हों। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि नोएल टाटा का सेलेक्शन न होने पर भी वे 'नोएल विरोधी' के रूप में नहीं दिखें।
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