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Success Story : पैरेंट्स मनरेगा मजदूर, कच्चा घर और उस पर तनी तिरपाल, इंटरनेट-सेल्फ स्टडी से बन गए IAS

Success Story Of Pawan Kumar : गरीबी के कारण गांव के वे लोग जो पवन के पिता को चारपाई पर बैठने नहीं देते थे, वे आज उन्हें सिरयाने बैठाते हैं। यह सब हुआ पवन के IAS बनने के कारण। एक परीक्षा ने न केवल पवन की जिंदगी संवार दी बल्कि परिवार को भी बुलंदियों पर पहुंचा दिया। पढ़ें, पवन कुमार की सक्सेस स्टोरी:
08:00 AM Jul 04, 2024 IST | Rajesh Bharti
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गरीबी हालात में पढ़ा यह शख्स बना IAS

Success Story Of Pawan Kumar : एक कहावत है- गरीबी में पैदा होना पाप नहीं है, गरीबी में मरना पाप है। कठिन मेहनत के दम पर कोई भी शख्स बुलंदियों को छू सकता है। सफल होने के बाद वह शख्स न केवल अपनी, बल्कि परिवार के सदस्यों की भी जिंदगी बना देता है। ऐसा ही कुछ किया उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर जिले के एक गांव के रहने वाले पवन कुमार ने। गरीबी हालात में पले-पढ़े पवन आज AIS अधिकारी हैं। पवन कुमार ने सिविल सर्विस परीक्षा 2023 में 239वीं रैंक हासिल की है। IAS बनने का उनका यह सफर इतना असान नहीं रहा।

पैरेंट्स मनरेगा मजदूर

पवन के पिता मुकेश और मां सुमन मनरेगा मजदूर हैं। परिवार में पवन के पैरेंट्स के अलावा तीन बहनें और हैं। दो बहनें गोल्डी और सृष्टि बीए कर रही हैं। वहीं छोटी बहन सोनिया 12वीं में है। पवन के पिता मुकेश ने बताया कि परिवार बड़ी मुश्किल हालातों में रहा है। जब बारिश होती थी तो कई बार घर का चूल्हा नहीं जल पाता था, क्योंकि घर कच्चा था। उस पर तिरपाल लगी हुई थी। कई बार बारिश का पानी तिरपाल से लीक होने लगता था। यूपीएससी का रिजल्ट आने तक घर पर तिरपाल लगी हुई थी।

दिल्ली में रहकर की पढ़ाई

मुकेश के मुताबिक पवन ने दिल्ली में रहकर यूपीएससी की पढ़ाई की है। पवन की पढ़ाई का सफर भी काफी मुश्किलों भरा रहा है। बेटा सफल हो जाए, इस वजह से मुकेश ने पवन का 9वीं में दाखिला नवोदय विद्यालय में कराया। वहां से साल 2017 में 12वीं करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए पवन इलाहाबाद चले गए। वहां से उन्होंने बीए किया। इसके बाद दिल्ली स्थिति जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) एमए करने चले गए। लेकिन एक साल पढ़ाई के बाद JNU छोड़ दिया और यूपीएससी की पढ़ाई शुरू कर दी।

इंटरनेट और सेल्फ स्टडी की मदद

पवन ने यूपीएससी की तैयार के लिए दिल्ली में एक कोचिंग संस्थान में एडमिशन लिया था। कोचिंग के साथ उन्होंने पढ़ाई के लिए इंटरनेट की भी मदद ली। साथ ही उन्होंने सेल्फ स्टडी पर सबसे ज्यादा फोकस किया। दो साल की कोचिंग करने के बाद आखिरकार उन्हें कामयाबी मिल गई। पिछली बार सिर्फ 1 नंबर कम रह जाने से उसका चयन नहीं हो पाया था। पवन को तीसरे प्रयास में सफलता मिली।

कभी लोग चारपाई पर नहीं बैठाते थे

पवन के पिता मुकेश बताते हैं कि पवन की कामयाबी से लगभग पूरे गांव में खुशी है। उन्होंने कहा कि कभी गांव के कुछ लोग गरीबी के कारण उन्हें चारपाई पर बैठाना तक पसंद नहीं करते थे। उन्हें लगता था कि अगर मैं उनकी चारपाई पर बैठ गया तो उनकी इज्जत खराब हो जाएगी। आज वही लोग चारपाई के सिरहाने बैठाकर हालचाल पूछ रहे हैं।

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