whatsapp
For the best experience, open
https://mhindi.news24online.com
on your mobile browser.
Advertisement

कौन थे मुख्तार अंसारी की पीठ पर हाथ रखने वाले साधु और मकनू, अदावत से शुरू हुए अपराध ने बना दिया पूर्वांचल का बाहुबली

Mukhtar Ansari: मुख्तार अंसारी की मौत के मामले में न्यायिक जांच शुरू हो चुकी है। 28 मार्च को बांदा के दुर्गावती मेडिकल कालेज में हार्ट अटैक से उसकी मौत हुई थी। मुख्तार के परिजनों ने खाने में जहर देकर उसकी हत्या करने का आरोप लगाया है।
07:00 AM Apr 07, 2024 IST | Amit Kasana
कौन थे मुख्तार अंसारी की पीठ पर हाथ रखने वाले साधु और मकनू  अदावत से शुरू हुए अपराध ने बना दिया पूर्वांचल का बाहुबली
mukhtar ansari

परवेज अहमद 

Advertisement

थ्रिल, सस्पेंस, ड्रामा, एक्शन, कैमरा, साजिश, प्यार-मोहब्बत, क्रिकेट, रहबर, रिंग मास्टर,  अंडरवर्ल्ड, अंडरकवर, क्राइम प्लानर, क्राइम एक्जक्यूटर, सियासत, सियासी कारखास, गैंगस्टर, माफिया, समानांतर सत्ता, स्वतंत्रता सेनानी खानदान का सफेदपोश अपराधी ये सारे शब्दों को सिर्फ एक शब्द में कहा जाए तो वह है-मुख्तार अंसारी। यही नाम है कानून की दृष्टि, कानून की भाषा में जिसे माफिया कहा जाता है। देश के सामान्य नागरिक भी उसे गैंगस्टर, माफिया, खूंखार अपराधी समझते आ रहे हैं, मगर यूपी के गाजीपुर, घोषी, आजमगढ़, जौनपुर संसदीय क्षेत्र में ढेरों लोग उसे सामंतवाद के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक मानते हैं।

Advertisement

हार्ट अटैक से मुख्तार की मौत 

28 मार्च तो बांदा के दुर्गावती मेडिकल कालेज में हार्ट अटैक से मुख्तार की मौत के बाद अन्डरवर्ल्ड की दुनिया के एक हिस्से का खात्मा होता दिखा मगर जिस तरह से मुख्तार अंसारी के सांसद भाई अफजाल अंसारी और उनके छोटे पुत्र उमर अंसारी डंके की चोट पर मुख्तार अंसारी की हत्या किये जाने का इल्जाम सरकार, उनके दुश्मनों पर मढ़ रहे हैं और यह दावा कर रहे हैं कि मुख्तार के शव को उन रसायनों के साथ दफनाया गया है कि अगर 20 साल बाद कब्र खोदकर जांच कराने की परिस्थिति बनी तो वह करायेंगे और साबित करेंगे कि यह मौत सामान्य नहीं है, उससे पूर्वांचल के अन्डर वर्ल्ड में माफिया वार अभी थमेगा नहीं।

Advertisement

मुख्तार अंसारी का जन्म

वह 30 जून 1936 सुबह थी। आम के टिकोरों में गुठलियां आकार ले रही थीं। चटक लाल रंग के पलास के सुगंधविहीन फूल नई रंगत बिखेर रहे थे। महुआ के फूल टपक रहे थे। जिससे धरती पर उमंग की बेला था, उसी समय कांग्रेस की स्थापना का इतिहास समेटे मुख्तार अहमद अंसारी, पाकिस्तान के साथ जंग में सर्वोच्च बलिदान देने वाले ब्रिगेडियर उस्मान के खानदान में सुभानउल्ला अंसारी की पत्नी राबिया बेगम ने युसूफपुर में तीसरे पुत्र को जन्म दिया। घर में तीसरे बेटे के जन्म से बधाइयां गायी गयीं। उम्मीद थी देश पर मर मिटने वाले एक और बच्चे का जन्म हो गया। मगर, नियति को कुछ और मंजूर था । 20 साल का होते-होते मुख्तार अंसारी ने नाम कमाना तो शुरू मगर बंदूक, मौत, खौफ की भाषा में।

किशोर होता मुख्तार

मुख्तार अंसारी का परिवार आजादी की लड़ाई में हिस्सा ले चुका था। पाकिस्तान के साथ संघर्ष में जीवन का सर्वोच्च बलिदान दे चुका था, जिससे सामंती सोच वाले जिले गाजीपुर का गरीब तबका परिवार के साथ उसे भी इज्जत बख्शते थे। छोटी-मोटी समस्याओं के समाधान के लिए लोग फाटक या बड़का फाटक कहे जाने वाले मुख्तार के घर चले जाते थे। परिवार के बैकग्राउंड के चलते लोगों को लाभ भी मिल जाता था, उसके पिता भी कम्युनिष्ट पार्टी के बैनर तले राजनीति करते थे जिससे परिवार का जनजुड़ाव भी था, मुख्तार को इसका लाभ मिलने लगा, उसका हौसला भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा।

खिलाड़ी मुख्तार अंसारी और अफसां से प्रेम

मुख्तार अंसारी अपने परिवार में सबसे लंबा था। उसकी ऊंचाई छह फुट पांच इंच के आसपा था। जिसका लाभ उसे वॉलीबॉल, क्रिकेट, फुटबॉल खेलता था। कहा जाता है कि खेल से ज्यादा जीतने पर उसकी नजर रहती। जैसे-जैसे मुख्तार की लंबाई बढ़ी। उसकी सोच में दबंगई आती गयी। उसके इरादे कुछ और थे। उसे शॉर्ट कट चाहिए थे। लोगों की सलामी चाहिए थी। वह डकैतों की तरह पूंजीपितयों को लूटने और राजाओं की तरह लुटाने में यकीन रखने लगा था। अपराध की दुनिया में कदम बढ़ते इससे पहले उसकी निगाहें अफसां से चार हुईं। परिवार की साख ने उसे रोके रखती मगर दिल मचलता रहता है।

कभी चरित्र पर सवाल नहीं उठा

दो सालों की लुका छिपी मुलाकातों के बाद मुख्तार अंसारी ने अपने पहले ही प्रेम को विवाह के बंधन में बांध लिया। कालांतर में मुख्तार के गुनाहों की फेहरिश्त बढ़ती चली गयी, एक से दूसरे अपराध में ज्यादा खौफ, आतंक, साजिश थी लेकिन उसके चरित्र पर सवाल नहीं उठा। पत्नी के अतिरिक्त किसी दूसरी महिला से उसके यौन रिश्तों का कोई किस्सा कभी सामने नहीं आया। उसके विरोधी भी मानते हैं कि मुख्तार को पत्नी से बेइंतहा प्यार थे और दूसरी महिला के साथ संबंधों में यकीन नहीं करता था। अपराध की दुनिया में कूदने पर यह आचरण भी उसकी ढ़ाल बना रहा।

सामंत, सैन्य सेवा और पांच बीघे से बना माफिया

गाजीपुर ढेरों माफिया की जन्मस्थली है। इन माफिया के तमाम अपराध इसकी नजीर भी हैं। इस जिले का सैदपुर थाना तो दुर्दांत अपराधों के इतिहास से भरा है। इसी सैदपुर कोतवाली क्षेत्र के मुड़ियार गांव में साधु सिंह और मकनू सिंह रहते थे। इनके चाचा रामपत सिंह थे। वह 80 के दशक में प्रधान चुने गये। साधु और मकनू को इससे बड़ा झटका लगा क्योंकि उनका कमजोर पट्टीदार रसूखदार हो गया था। बताया गया एक दिन पांच बीघे जमीन को लेकर साधु सिंह और मकनू ने अपने चाचा रामपत सिंह के साथ गाली-गलौज कर दी।

लाठी-डंडों से पीटकर मार डाला

इस अपमान के बदले में रामपत सिंह ने बेटे त्रिभुवन सिंह के साथ मिलकर साधु और मकनू को लाठी-डंडों से बुरी तरह पीट दिया। बस, अदावत की बुनियाद पड़ गई। एक दिन मौका पाकर साधु और मकनू ने रामपत को लाठी-डंडों से पीटकर मार डाला और फरार हो गये। कुछ समय बाद दोनों गांव लौटे और रामपत के तीन अन्य बेटों की भी हत्या कर दी। पिता और तीन भाइयों की हत्या के बाद त्रिभुवन सिंह और उसके भाई राजेंदर गांव से पलायित हो गया। साधु, मकनू का आतंक फैल गया।

पहली बार हत्या में आया नाम

मुख्तार का हत्या के मामले में पहली बार नाम तब आया जब मुहम्मदाबाद से गाजीपुर, बलिया और बनारस के लिए प्राइवेट बसें चलती थीं। सचिदानंद राय इस धंधे के माहिर खिलाड़ी माने जाते थे। मुख्तार के कुछ लोग भी इस धंधे में घुसने का प्रयास कर रहे थे। किसकी बस कब निकलेगी इसको लेकर विवाद हो गया। मुख्तार के जवानी के दिन थे, उसने सचिदानंद की गैरमौजूदगी में उनके लोगों को खदेड़ दिया। सचिदानंद को जब ये बात पता चली तो वह झगड़ा करने मुख्तार के घर ‘फाटक’ पहुंच गए। उसके पिता सुभानउल्लाह मोहम्मदाबाद नगर पंचायत के चेयरमैन थे। सच्चिदानंद राय का उनसे विवाद हो गया।

विवादों से जुड़ा रहा नाम

एक दिन भरे बाजार सच्चिदानंद राय ने सुभानउल्ला को बेइज्जत किया। भला बुरा कहा। मुख्तार को जब यह पता लगा तो उसने सच्चिदानंद राय को ठिकाने लगाने की रणनीति बनाई लेकिन सच्चिदानंद राय अपनी बिरादरी प्रभावशाली था। इस बिरादरी की संख्या भी काफी थी। पिता के अपमान के बदले की आग लिये मुख्तार ने साधु और मकनू से मदद मांगी। उस समय साधु और मकनू का खौफ हो चुका था। दोनों ने मुख्तार की पीठ पर हाथ रख दिया। बस, मुख्तार ने सच्चिदानंद राय को मौत की नींद सुलवा दिया। जिसके बाद मुख्तार साधु और मकनू को अपना आपराधिक गुरु स्वीकार कर लिया। कुछ अरसे बाद साधु और मकनू ने मुख्तार के सामने एक प्रस्ताव रखा, जहां से पूर्वांचल में खौफनाक आपराधों के नये इतिहास की शुरूआत हुई। विवादों में नाम आता गया, मुख्तार बड़ा होता चला गया।

...और रणधीर सिंह की लाश मांगी

सैदपुर के पास मेदनीपुर के छत्रपाल सिंह और रणजीत सिंह दबंग छवि के थे। दोनों का जलजला था। साधु सिंह गाजीपुर के सबसे बड़े दबंग बनना चाहता थे लिहाजा छत्रपाल और रणजीत सिंह उनकी आंख में खटकते थे। साधु और मकनू ने मुख्तार अंसारी को बुलाया। कहा कि रणजीत सिंह की हत्या कर दो। बताते हैं कि इस पर मुख्तार हिल गया। लेकिन आपराधिक गुरु ने पहली बार कोई काम कहा था, लिहाजा मुख्तार ने इस हत्या के लिए रणजीत सिंह के घर के सामने रहने वाले रामू मल्लाह से दोस्ती की। उसके घर की बाहरी दीवार पर अंदर से बाहर तक सुराख किया। जिससे वह रामू मल्लाह के घर वाले सुराख से सीधे रणजीत के आंगन में देख सकता था। 1986 के उस दिन रणजीत आंगन में घूम रहा था। निशानेबाज मुख्तार ने रामू के घर में बनाये गये छेद के अंदर रायफल की नाल रखकर निशाना लगाया, सिर्फ एक गोली चली और रणजीत ढेर हो गया। कुछ दिनों में ही इस हत्या का सच बाहर आ गगया। अब मुख्तार और उसके गुरुओं साधु, मकनू का सिक्का गाजीपुर से वाराणसी तक जमने लगा.

बृजेश के पिता की हत्या

रणजीत सिंह की हत्या के बाद पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी, साधु और मकनू के खौफ की चर्चा होने लगी थी और ये तिकड़ी अपराध के नये ताने बाने में लगी थी। 1988 में वाराणसी के धौरहरा निवासी बृजेश सिंह के पिता रवींद्रनाथ की हत्या उन्हीं के पट्टीदार बंसू और पांचू ने कर दी। बंसू और पांचू साधु सिंह, मकनू और मुख्तार अंसारी के करीबी थी। कहा जाता है कि पिता की चिता के सामने खड़े बृजेश सिंह ने इस हत्या का बदला लेने की सौगंध ली। एक साल के अंदर ही उसने अपने पिता की हत्या के एक हरिहर सिंह फिल्मी स्टाइल में अंजाम दिया। बताया गया है कि वह हरिहर सिंह के घर गया। पैर छुए और गोली मार दी।

पिता की हत्या का बदला पूरा

पिता की हत्या का पहला बदला पूरा हो चुका था। बृजेश सिंह पर हत्या का केस दर्ज हुआ, लेकिन वो पुलिस की पकड़ से दूर रहा. अगले ही साल चंदौली के सिकरौरा गांव में एकसाथ 7 लोगों की हत्या हो गई। आरोप लगा कि बृजेश ने पिता की हत्या में शामिल पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव समेत उसके भाइयों और चार भतीजों की दुर्दांत तरीके से मार डाला है। पुलिस ने बृजेश को गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। जेल में उसकी मुलाकात हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह से हुई। वही त्रिभुवन सिंह, जिसके पिता व तीन भाइयों को मुख्तार के गुरु साधु और मकनू ने मारा था। बृजेश सिंह को मालूम चला कि उसके पिता के हत्यारे बंसी और पांचू भी साधु और मकनू से जुड़े हैं। यानी अब त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह के दुश्मन एक ही थे- बंसी, पांचू, साधु, मकनू और मुख्तार।

बृजेश ने कर दी मुख्तार के गुरु साधु की हत्या

अब जिस तरह मुख्तार अंसारी साधु और मकनू को अपना आपराधिक गुरु मानता था, वैसे ही बृजेश सिंह ने त्रिभुवन सिंह को आपराधिक गुरु मान लिया। उस त्रिभुवन के साथ समर्थक भी थे और पैसा भी था। बताते हैं कि त्रिभुवन सिंह ने बृजेश सिंह को बताया कि कैसे मुख्तार के गुरु साधु और मकनू ने उसके पिता की हत्या की है। त्रिभुवन चाहता था कि बृजेश उसके पिता की हत्या का बदला ले, बृजेश ने त्रिभुवन की बात नहीं टाली।

मकनू सिंह को बम से उड़ाया था

यह दृश्य देखने वाले लोग बताते थे एक दिन बृजेश सिंह और त्रिभुवन दोनों गाजीपुर सदर हॉस्पिटल पहुंचे। यहां प्राइवेट वॉर्ड में साधु सिंह अपने लड़के को देखने आया था। बृजेश और त्रिभुवन पुलिस की वर्दी में थे, इसलिए किसी ने उन्हें रोका-टोका नहीं। वो सीधे साधु सिंह के बेटे के वॉर्ड में पहुंचे और साधु सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी, कुछ दिन बाद ही इन लोगों ने गाजीपुर सिंचाई विभाग चौराहे पर मुख्तार अंसारी के दूसरे गुरु मकनू सिंह को बम से उड़ा दिया। आपराधिक गुरुओं की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी साधु, मकनू गिरोह का सरगना बन गया। बताते हैं कि मुख्तार ने साधु और मकनू के परिवार के सारे दायित्व निभाए, लेकिन वह गुरुओं की हत्या का बदला लेना चाहता था।

मुख्तार ठेके में उतरने की सोचने लगा

कहा जाता है कि साधू और मकनू की संगत ने मुख्तार को लाइन दे दी, वह ठेके में उतरने की सोचने लगा. लेकिन परिवार इसके लिए राजी नहीं था और न पारिवारिक पृष्ठभूमि ही ऐसी थी कि इस काम की अनुमति मिले। न पैसे इतने थे और न ही बाहुबल। मुख्तार ने दूसरा रास्ता अख्तियार किया। 80 और 90 के दशक में गाजीपुर की तब एक और विशेषता मानी जाती थी। बनारस से गाजीपुर होते हुए बलिया मऊ गोरखपुर तो बस चल सकती थी लेकिन गाजीपुर की इंटर्नल सड़कों पर बस चलाने की जुर्रत न सरकार कर सकती थी न प्रशासन। अगर प्रशासन ने कोशिश भी की तो दबंगों ने उन्हें अपनी भाषा में समझा दिया। सरकारी बसें तोड़ दी गईं। ड्राइवर और कंडक्टर पीट दिए गए। दूसरी ओर प्राइवेट बसें इतनी समय से चलती थीं कि लोग उससे घड़ी मिला लेने की बात करते थे। सच्चिदानंद राय की हत्या हो जाने के चलते मुख्तार की इस धंधे में पैठ हो गयी और उसकी कमाई का जरिया बढ़ गया।

मुख्तार को दिखने लगी मंजिल

कहा जाता है कि साधू और मकनू सिंह पर गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी का हाथ था, जिसके चलते ही वह दंबग होते जा रहे थे। इऩकी मुख्तार अंसारी से गहरी दोस्ती भी छिपी नहीं थी। हरिशंकर तिवारी के विधायक बनने को मुख्तार को मंजिल दिखने लगी, क्योंकि कमोबेश पूर्वांचल के हालात एक जैसे ही थे। उस दौरान यूपी-बिहार से कई नेता रेल मंत्री रहे। गोरखपुर से लेकर पटना, हाजीपुर, कोलकाता तक रेलवे के ठेके होते। इन्हें वही हासिल करता जिसके पास बाहुबल होता। कमीशनखोरी का खेल बंदूकों का बल और लड़ने वालों का खून मांगता। ठेके हथियाने के लिए आए दिन गोलियां चलतीं। पुलिस खुद को लाचार समझती। जो रेलवे के ठेके नहीं ले पाते वो टैक्सी स्टैंड और बस स्टैंड के ठेके लेते। यह ऐसा इलाका था जहां पढ़ाई का माहौल था लेकिन नौकरियां नहीं थी। जमीन के झगड़े आम थे। खाने को न हो मगर अधिकांश घरों में कट्टा या बंदूक जरूर मिल जाती। लोग हवाई चप्पल पहने, बंदूक टांगे, साइकिल से चलते देखे जाते। चाय पान की दुकानों पर अपराध के चर्चे आम थे।

Open in App Tags :
Advertisement
tlbr_img1 दुनिया tlbr_img2 ट्रेंडिंग tlbr_img3 मनोरंजन tlbr_img4 वीडियो