दिल्ली में AAP की 'आतिशी' पारी के मायने, 30 सीटों पर 'खेला' करेगा ये मास्टरस्ट्रोक
Delhi Assembly Election 2025: आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने आतिशी मार्लेना को दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर नया दांव चल दिया है। आतिशी मार्लेना, सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री हैं। आतिशी को आगे रखकर आम आदमी पार्टी की कोशिश महिला वोटरों को साधने की है। पार्टी जल्द ही महिला सम्मान निधि योजना पर आगे बढ़ेगी। इस योजना का ऐलान खुद आतिशी ने 2024 के बजट में किया था। इस योजना के तहत महिलाओं को 1 हजार रुपये दिए जाने हैं।
इस योजना को लागू करने की डेडलाइन अक्टूबर 2024 थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल के जेल से योजना अटक गई। अब जबकि केजरीवाल जमानत पर बाहर हैं और जनता के बीच जाने का ऐलान कर चुके हैं। बतौर मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना इस योजना को लागू करने के लिए कदम उठाएंगी। 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले भी आम आदमी पार्टी ने महिलाओं के लिए बसों में फ्री यात्रा का ऐलान किया था।
दिल्ली में गेमचेंजर हैं महिलाएं
केजरीवाल को फिर से सीएम बनाने की मांग के साथ अपने इरादे स्पष्ट कर देने वाली आतिशी पर महिला वोटरों को साधने की बड़ी जिम्मेदारी है। बतौर सीएम आतिशी आने वाले दिनों में महिला वोटरों पर फोकस करेंगी। पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली की 30 सीटों पर महिला वोट प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले ज्यादा था। बल्लीमारान, मुस्तफाबाद, गोकुलपुरी, सीलमपुर और सीमापुरी जैसे इलाकों में महिलाओं ने जमकर वोट डाले थे। आप की कोशिश इसी वोट बैंक को साधने की है।
दिल्ली में महिला वोटर
दिल्ली में मतदाताओं की संख्या 1.47 करोड़ है। इनमें 79 लाख से ज्यादा पुरुष हैं। वहीं 67 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं। अगर दिल्ली में महिलाओं का मतदान प्रतिशत देखें तो 2015 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का वोट प्रतिशत 66.49 प्रतिशत रहा, जबकि 2020 में महिला वोटरों का मतदान प्रतिशत 62.59 प्रतिशत रहा।
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मुख्यमंत्री के लिए महिला ही क्यों?
रिपोर्ट्स के मुताबिक अरविंद केजरीवाल की ओर से सीएम की कुर्सी के लिए एक महिला को प्राथमिकता देने की एक बड़ी वजह है। दरअसल केजरीवाल अगर किसी और विधायक या मंत्री को मौका देते तो फिर उसके साथ एक संप्रदाय और धर्म जुड़ जाता। विधानसभा चुनाव के बाद उसे हटाए जाने पर उक्त समुदाय के नाराज होने का खतरा रहता। आतिशी की छवि ऐसी है कि वह इन चीजों से बंधी नहीं दिखती हैं। ऐसे में छह महीने बाद सीएम की कुर्सी पर केजरीवाल के लौटने की स्थिति में किसी समुदाय, वर्ग या जाति नाराज होने का खतरा भी नहीं है।