क्या आपने देखा है 'सजनी शिंदे का Viral Video'? नहीं तो आज ही देख लीजिए
Sajini Shinde Ka Viral Video OTT Review: यह फिल्म Netflix पर रिलीज हो गई है। कहानी एक लड़की की है, जिसका एक प्राइवेट वीडियो वायरल हो जाता है और उसके बाद भूचाल आ जाता है।
'सजनी शिंदे का वायरल वीडियो'..आपको लग सकता है कि हम आपको सोशल मीडिया पर कोई ऐसा वायरल वीडियो देखने को उकसा रहे हैं, जिसमें किसी शख्स (लड़का या लड़की कोई भी) की इज्जत, आत्मसम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा को तार-तार कर दिया गया है। और हम...इस वीडियो को देख कर 'मजे' ले रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है, हम बात कर रहे हैं Netflix पर रिलीज हुई फिल्म की। ऐसी फिल्म जो हमें सोचने पर मजबूर करती है कि जिन वीडियो को देखकर हम लुत्फ उठाते हैं, वो कैसे किसी की जिंदगी को तार-तार कर सकता है।
एक वीडियो और खेल खत्म
फिल्म की शुरुआत होती है महान दार्शनिक लूसियस सेनेका के एक Quote से, 'कभी कभी सिर्फ जीना भी साहस का काम होता है।' कहीं न कहीं यह सच भी है। फिल्म के केंद्र में सजनी शिंदे यानी राधिका मदान, जो पेशे से एक टीचर है। अरेंज मैरिज करने वाली है। पिता मराठी थिएटर के बड़े कलाकार हैं और Male Dominance में विश्वास रखते हैं। इन सबके बीच है सजनी शिंदे, जो एक अच्छी टीचर..अच्छी पत्नी और अच्छी बेटी बनना चाहती है। मगर सिंगापुर में दोस्तों संग पार्टी के एक वीडियो से वह तीनों ही एग्जाम में 'फेल' हो जाती है।
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सामाजिक मुद्दों को उठाती फिल्म
गलती से अपलोड वीडियो वायरल होता है तो मदद के लिए अपनों की तरफ देखती है, लेकिन न पिता न मंगेतर और न ही स्कूल प्रशासन उसका साथ देता है। बस वो इन्हीं सब के बीच फंसती चली जाती है। इसके बाद एक फेसबुक पोस्ट लिखकर जिसमें वो इल्जाम पिता और मंगेतर पर डालकर 'लापता' हो जाती है। सुसाइड, हत्या या फिर लापता, इस गुत्थी को सुलझाने के लिए एंट्री होती है महिला मिसिंग मामले सुलझाने में एक्सपर्ट मुंबई पुलिस की बेला यानी निमरत कौर की, जो जी-जान से इसे सुलझाने में लग जाती हैं और परत दर परत समाज की कड़वी हकीकतें उनके सामने आने लगती हैं। सामाजिक मुद्दों को उठाती इस फिल्म में सस्पेंस भी है, जिसमें आप भी बेला के साथ तलाश में जुट जाएंगे।
दिखावे के फेमिनिज्म पर उठाए सवाल
'ये औरत कार्ड आधार कार्ड नहीं है जो हर जगह चल जाएगा', फिल्म का इस तरह के कई डायलॉग भी हैं, जो फेमिनिज्म के 'दिखावे' पर सवाल उठाते हैं। वीकएंड पर आप इस फिल्म का मजा उठा सकते हैं, जो कुछ तक हद हमारी सोच को नए सिरे से मोड़ने की कोशिश जरूर करती है। अंत में अदालत अपना फैसला सुनाती है, लेकिन 'कोर्ट में जजमेंट दिए जाते हैं जवाब नहीं...' यह कथन अपने आप में काफी है यह बताने के लिए सजनी का दोषी कोई एक नहीं है।
एक्टिंग और डायरेक्शन
घर में दबकर रहते हुए खुलकर सांस लेने की कोशिश में राधिका मदान ठीकठाक दिखी हैं। निमरत कौर भी इंस्पेक्टर के रूप में फिट बैठती हैं। सुमित व्यास का भी एक छोटा रोल है। बंगाली एक्टर सोहम मजूमदार ने भी अपने रोल के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। अब बात करते हैं डायरेक्शन की। इस फिल्म को मिखिल मुसाले (Mikhil Musale) ने डायरेक्ट किया। उन्होंने अब तक सिर्फ तीन ही फिल्में बनाई हैं, जिनमें से पहली फिल्म Wrong Side Raju गुजराती थी, जिसे नेशनल अवॉर्ड भी मिला था। मेड इन चाइना के साथ उन्होंने हिंदी सिनेमा में डेब्यू किया था।