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कौन थे Salam Bin Razzaq? जिनके निधन से साहित्य जगत में छाए गम के बादल, फैंस ने दी श्रद्धांजलि

Salam Bin Razzaq Passes Away: फेमस उर्दू साहित्यकार सलाम बिन रज्जाक का 83 साल की उम्र में निधन हो गया है। इस दुखद खबर की जानकारी उनके करीबी दोस्त ने एक पोस्ट के जरिए दी है। इस खबर के आते ही साहित्य जगत में शोक ही लहर दौड़ गई है।
08:55 AM May 08, 2024 IST | Jyoti Singh
Urdu Literature Salam Bin Razzaq passes away.
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Salam Bin Razzaq Passes Away: साहित्य जगत के फेमस उर्दू साहित्यकार सलाम बिन रज्जाक (Salam Bin Razzaq) को लेकर चौंकाने वाली खबर आई जिसमें बताया गया कि लंबी बीमारी के बाद उनका नवी मुंबई में निधन हो गया है। उन्होंने 83 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन की खबर आते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। बता दें कि सलाम बिन रज्जाक के निधन की जानकारी उनके करीबी दोस्त ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए दी है, जिसके बाद फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

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कौन थे सलाम बिन रज्जाक?

साल 1941 में रायगढ़ जिले के पनवेल में जन्मे सलाम बिन रज्जाक प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार थे, जिनका असली नाम शेख अब्दुल सलाम अब्दुर्रज्जाक था। उन्हें असली पहचान फेमस छंद की वजह से मिली थी। इसके अलावा उनकी चार दर्जन से ज्यादा कहानियां ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित हो चुकी हैं। उनके अचानक निधन से साहित्य जगत को बड़ा झटका लगा है।

बता दें कि उर्दू साहित्यकार सलाम बिन रज्जाक अपने पीछे पत्नी, दो बच्चे और कई पोते-पोतियों को छोड़ गए हैं। इस दुख की घड़ी में परिवार सदमे में है। फिलहाल परिवार और करीबियों की मौजूदगी में सलाम बिन रज्जाक को मुंबई के मरीन लाइन्स कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया है।

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कई कहानियों की रचना की

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उर्दू साहित्यकार सलाम बिन रज्जाक ने कई कहानियों की रचना की है। उन्हें साल 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। ये सम्मान उन्हें फेमस कहानी संग्रह ‘शिकस्त बातों के दरमियान’ के लिए दिया गया था। इसके अलावा उन्हें ग़ालिब पुरस्कार, महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर उनकी काफी फैन फॉलोइंग थी।

सलाम बिन रज्जाक की साहित्यिक रचनाओं की बात करें तो उसमें प्रमुख ‘नंगी दोपहर का सिपाही’, ‘मुदब्बिर’ और ‘जिंदगी अफसाना नहीं’ रहीं। इतना ही नहीं उन्होंने नवी मुंबई में एक नगरपालिका स्कूल में बतौर शिक्षक भी अपना योगदान दिया था। उन्होंने कई मराठी कहानियों का उर्दू में अनुवाद किया। उनके निधन से उर्दू साहित्य जगत में एक युग का अंत हो गया है।

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