Explainer: क्या होती है दोहरी उम्रकैद, सौम्या हत्याकांड में कोर्ट ने सुनाई जिसकी सजा
कानून की भाषा में एक शब्द है, 'दोहरी उम्रकैद'। हाल ही में दिल्ली की एक अदालत ने टीवी जर्नलिस्ट सौम्या विश्वनाथन हत्याकांड में चार दोषियों को यही सजा सुनाई है। हर कोई जानना चाहता है कि आखिर ये दोहरी उम्रकैद होती क्या है? यह किन अपराधियों को दी जाती है? एकल उम्रकैद और दोहरी उम्रकैद में क्या फर्क है? क्या दोहरी उम्रकैद में अपराधी के लिए पैरोल की गुंजाइश होती है? क्या दोहरी उम्रकैद में कमी की कुछ संभावना होती है? इसी तरह के तमाम सवालों का जवाब हम अपने पाठकों को दे रहे हैं।
पहला सवाल-क्या होती है दोहरी उम्रकैद?
दोहरी उम्रकैद, इसका शाब्दिक अर्थ साफ है कि उम्रकैद की एक अवधि खत्म हो जाने के बाद फिर से वही सजा। मौजूदा कानून व्यवस्था में दोहरा आजीवन कारावास भी कुछ वैसी ही व्यवस्था। इसमें किसी जुर्म में जेल में डाला गया आदमी जेल में ही दम तोड़ देता है। कुछ अदालतों में दोहरे आजीवन कारावास के बंदी को पैरोल (कुछ महीनों के बाद जेल से कुछ दिन की छुट्टी) का भी पात्र नहीं माना जाता। मरते दम तक आदमी जेल में ही रहेगा।
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एकल आजीवन कारावास और पुनरावृत्ति वाले आजीवन कारावास में क्या अंतर है?
- हर कोई जानता है कि हर अपराध की एक सजा होती है। इसे एकल दंड या सजा कहा जाता है, लेकिन जब कोई न्यायालय एक से ज्यादा अपराधों की स्थिति में हरेक के लिए अपराधी को अलग-अलग सजा का फैसला सुनाता है तो फिर वह दोहरी सजा की श्रेणी में आ जाता है। अपराध गंभीर हों तो एक से ज्यादा बार आजीवन कारावास दोषी को दिया जा सकता है।
- सिंगल लाइफ इम्प्रिजनमेंट में अपराधी एक अवधि के बाद जेल से बाहर आ जाता है, लेकिन डबल लाइफ इम्प्रिजनमेंट में जब अपराधी एक सजा पूरी कर चुका हो तो ही दूसरी सजा की शुरुआत होती है।
- कुछ मामलों में एकल आजीवन कारावास में क्षेत्राधिकार के कानूनों के आधार पर एक निश्चित अवधि के बाद पैरोल की संभावना होती है। हालांकि इसके उलट दोहरे आजीवन कारावास की सजा अक्सर खुद ही इस तरफ इशारा करती है कि अपराधी पैरोल के लिए पात्र नहीं है। उसे रिहाई की संभावना के बिना दोनों आजीवन कारावास की पूरी अवधि काटनी होगी।
- एकल उम्रकैद की बजाय दोहरी उम्रकैद एक मजबूत प्रतीकात्मक संदेश दे सकती है और संभावित अपराधियों के लिए निवारक के रूप में काम करती है।
सौम्या हत्याकांड के दोषियों को जेल ले जाती पुलिस। अब ये रहते दम तक जेल में ही रहेंगे।
किसे दी जाती है दोहरी उम्रकैद?
दूसरे सवाल का जवाब है कि आम तौर पर यह हत्या, गंभीर हमले, बलात्कार, देशद्रोह और ऐसे ही दूसरे जघन्य अपराध के उस दोषी को ही दी जाती है, जिसने एक से ज्यादा अपराध किए हों। दूसरी ओर हरियाणा के विधि वक्ता डॉ. जोगेंद्र मोर और अन्य की मानें तो क्षेत्र, स्थिति या नियम के आधार पर इसके मानदंड अलग-अलग हो सकते हैं। जहां तक गंभीर आपराधिक परिस्थितियों की बात है, पूर्वचिन्तन, आग्नेयास्त्रों या अन्य घातक हथियारों का उपयोग, किसी अन्य अपराध के दौरान अपराध करना या बच्चों और बुजुर्गों पर अत्याचार किए जाने को इस कैटेगरी में रखा गया है। इसके अलावा अगर अपराधी पहले भी कहीं दोषी सिद्ध हो चुका है या उसके आपराधिक व्यवहार का एक खास पैटर्न पाया है तो दोहरी उम्रकैद की सजा देने का फैसला अदालत ले सकती है। माना जाता है कि अपराधी पिछली सजाओं से न डरकर बार-बार अपराध करता है और यह समाज के लिए बड़ा खतरा है। इन सबके इतर दोहरी सजा का फैसला अक्सर मामले की सुनवाई करने वाली न्यायपीठ के विवेक पर छोड़ दिया जाता है। वो किसी भी प्रासंगिक कानूनी दिशा-निर्देश पर विचार करके इस तरह की सजा का फैसला दे सकते हैं।
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क्या दोहरी उम्रकैद की सजा को कम किया जा सकता है?
कानूनविदों की राय में दोहरी उम्रकैद की सजा को कम भी किया जा सकता है, लेकिन यह अधिकार भी क्षेत्र और मामले से जुड़े हालात पर निर्भर करता है। यहां तक कि अलग-अलग देशों में और यहां तक कि भारत के विभिन्न राज्यों या क्षेत्रों में इस सजा को कम करने की अलग-अलग संभावनाएं हैं। कुछ न्यायक्षेत्रों में ऐसे अपराधी सजा का एक निश्चित हिस्सा पूरा कर लेने के बाद पैरोल के लिए पात्र भी हो सकते हैं। पैरोल बोर्ड या अधिकारी मामले की समीक्षा करते हैं और निर्धारित करते हैं कि क्या अपराधी ने पुनर्वास का प्रदर्शन किया है और अब वह समाज के लिए खतरा नहीं है। खास बात यह है कि पैरोल मिलने पर संबंधित अपराधी को जेल से रिहा किया जा सकता है, लेकिन वह निगरानी में ही रहता है।
इस बारे में जानकारों की मानें तो विभिन्न स्तरों पर राष्ट्रप्रमुख, राज्यपाल या नामित प्राधिकारी के पास दोहरे आजीवन कारावास की सजा को कम करने या माफ करने की शक्ति भी होती है। ये व्यवस्थाएं पुनर्वास के प्रदर्शन, असाधारण परिस्थितियों या मानवीय आधार पर ऐसा फैसला ले सकती हैं। हालांकि ऐसे मामले बहुत ही दुर्लभ होते हैं।
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चलते-चलते एक केस स्टडी
किसी भी निर्णय के साथ इतिहास में हुए मिलते-जुलते निर्णय का उल्लेख भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। ऐसे में एक मामले का उल्लेख किया जा रहा है। अक्टूबर 2021 में केरल की कोल्लम सेशन कोर्ट ने सांप से कटवाकर हत्या करने के एक दोषी को दोहरी उम्रकैद की सजा दी थी। इसके बाद लोगों के मन में उम्रकैद को लेकर सवाल उठने लगा कि ये 14 साल की होती है या 20 साल की? इस सवाल का जवाब IPC की धारा 57 है। इसके अनुसार आजीवन कारावास की अवधि गिनने के लिए इसे 20 साल के बराबर माना जाता है, लेकिन काउंटिंग की जरूरत भी तभी पड़ती है, जब किसी को दोहरी सजा सुनाई गई हो या किसी को जुर्माना न भरने की स्थिति में ज्यादा समय के लिए जेल में रखा जाना हो।