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रिसर्चर्स का नया चमत्कार! अब खोई हुई बैटरी कैपेसिटी को कर सकेंगे रिस्टोर

Restore Battery Capacity: रिसर्चर्स ने नया तरीका निकाल लिया है, जिससे बैटरी कैपेसिटी को रिस्टोर किया जा सकता है। आइये इसके बारे में जानते हैं।  
08:42 PM Oct 26, 2024 IST | News24 हिंदी
रिसर्चर्स का नया चमत्कार  अब खोई हुई बैटरी कैपेसिटी को कर सकेंगे रिस्टोर
battery

Restore Battery Capacity: आज के समय में हमारे हर डिवाइस में रिचार्जेबल बैटरी का इस्तेमाल होता है। चाहे वो हमारा स्मार्टफोन हो, स्मार्टवॉच हो और या कई इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल हो। ऐसे में इन डिवाइस का समय बीतने के साथ ही बैटरी परफॉर्मेंस काफी प्रभावित हो जाती हैं। ऐसे में अगर हम आपसे कहे कि आपके इन डिवाइस की बैटरी कैपेसिटी को आसानी से रिस्टोर किया जा सकता है तो! जी हां कुछ रिसर्चर्स ने इसके लिए एक तरकीब निकाल ली है।

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ऐसे में आपके रिचार्जेबल बैटरियों की इस परेशानी को दूर करने लिए और उनकी लाइफ बढ़ाने के लिए ये तरीके बहुत काम आ सकते हैं। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

कोई तरकीब नहीं आती है काम

अगर हम ऑनलाइन बहुत सी ऐसे पोस्ट और वीडियो देखते हैं, जिसमें डिवाइस की क्षमता बढ़ाने की तरकीब बताई जाती हैं। इसमें अपने डिवाइस को 30 से 70 % तक चार्ज रखना आपके फोन को लंबी लाइन दे सकता है, यहां तक कि अब डिवाइस में इसके लिए एक डेडिकेटेड ऑप्शन दिए जाते हैं। इन सब कोशिशों के बाद भी कुछ समय बाद ये डिवाइस अपनी बैटरी क्षमता खो देते हैं। हालांकि इस समस्या को दूर करने के लिए स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने नया तरीका निकाला है।

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क्या है रिसर्च?

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के रिसर्चर्स ने एक ऐसा तरीका निकाला है, जिससे सिलिकॉन बैटरी की कैपेसिटी को कुछ हद तक रिस्टोर किया जा सकता है। बता दें कि इस फाइडिंग को Science के एक आर्टिकल में प्रेजेंट किया गया है।

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बता दें कि सिलिकॉन एनोड समय के साथ खराब हो जाते हैं क्योंकि इनके एलिमेंट अलग-अलग हो जाते हैं, जिस कारण उन्हें चार्ज करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। मगर रिसर्चर्स ने एक आसान तरीका निकाला है, जिससे इन सिलिकॉन एलिमेंट को जोड़ा जा सकता है। ऐसे में आपकी बैटरी की क्षमता को 30 प्रतिशत तक ठीक किया जा सकता है।

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भविष्य में होंगे कई बड़े बदलाव

बता दें कि अब ज्यादातर डिवाइस में लिथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन सिलिकॉन बैटरी ड्रोन, वियरेबल और इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल में अभी भी लगाई जाती हैं। ऐसे में भविष्य में रिसर्चर्स को और मजबूत बैटरी विकसित करने में मदद मिल सकती है जिन्हें बार-बार बदलने की जरूरत नहीं होगी।

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