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गुजरात की हर्षा सखी मंडल की महिलाएं बनीं लखपति दीदी, Adani Foundation कर रहा बड़ा योगदान

Lakhpati Didi Scheme: सखी मंडल महिला उत्थान और ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित और गरीब महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक पहल है। कुछ ऐसे ही सपनों के साथ 2009 में सूरत के औद्योगिक क्षेत्र हजीरा के पास वांसवा गांव में हर्षा सखी मंडल की स्थापना की गई।
05:19 PM Aug 28, 2024 IST | Deepti Sharma
गुजरात की हर्षा सखी मंडल की महिलाएं बनीं लखपति दीदी  adani foundation कर रहा बड़ा योगदान
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Lakhpati Didi Scheme: अदानी फाउंडेशन हर्षा सखी मंडल की वित्तीय स्थिरता और विकास हासिल करने में जरूरी भूमिका निभा रहा है। हर्षा सखी मंडल की इस सफलता को देखते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihood Mission) ने उनकी गिनती लखपति दीदी के रूप में की है। अदाणी फाउंडेशन की परियोजना निदेशक फाल्गुनी देसाई ने कहा कि फाउंडेशन हजीरा के आसपास की बहनों को एक आधार प्रदान करने के लिए काम कर रहा है। पिछले एक साल से हर्षा सखीमंडल को सहयोग दे रही सखीमंडल की 10 बहनें आज आत्मनिर्भर हो गई हैं।

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सखी मंडल महिला उत्थान और ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित और गरीब महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक पहल है। कुछ ऐसे ही सपनों के साथ 2009 में सूरत के औद्योगिक क्षेत्र हजीरा के पास वांसवा गांव में हर्षा सखी मंडल की स्थापना की गई। इस सखी मंडल की बहनों में से कुछ को तो दो वक्त का खाना खाने में भी दिक्कत होती थी। ऐसी महिलाओं को एक साल पहले अदानी फाउंडेशन, हजीरा के सहयोग से अदानी हजीरा पोर्ट पर कैंटीन शुरू करने का मौका मिला और उनके लाइफ में बहुत बदलाव आया। 2009 से 2023 तक छोटी-छोटी बचत करने वाली हर्षा सखी मंडल अब प्रति माह एक लाख से अधिक का कारोबार कर लखपति दीदी बन गई है। केंद्र सरकार द्वारा महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से लखपति दीदी योजना 2023 शुरू की गई थी। इस योजना के तहत महिलाओं को जॉब ओरिएंटेड और सेल्फ एंप्लॉयमेंट के लिए 5 लाख रुपये तक का ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाता है।

अध्यक्ष निमिषाबेन पटेल ने बताया अपना संघर्ष

हर्षा सखी मंडल की अध्यक्ष निमिषाबेन पटेल अपने संघर्ष के बारे में बताते हुए कहती हैं कि हमारा सखी मंडल 2009 में मिशन मंगलम के तहत रजिस्टर्ड हुआ था। हम छोटी बचत के अलावा कोई गतिविधि नहीं कर रहे थे। एक दिन उनकी मुलाकात अडानी फाउंडेशन हजीरा की टीम से हुई। हमारी बहनों को अपनी आय बढ़ाने, परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कुछ करना था। काफी चर्चा और विचार-विमर्श के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मैं एक अच्छा खाना बनाता हूं। कुछ सरकारी कार्यक्रमों में खानपान और एक छोटे से गांव की स्कूल कैंटीन चलाने का भी अनुभव था। अगर खाना पकाने से संबंधित कोई काम है तो बहनों को मिलकर बेहतर काम करने में उत्साह दिखाना चाहिए।

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निमिषाबेन ने आगे कहा कि हमारे गांव में अडानी फाउंडेशन की टीम ने अडानी हजीरा पोर्ट के ऊपर स्थित एक कैंटीन चलाने का प्रस्ताव दिया। हमने इसे स्वीकार कर लिया। बर्तन, फ्रिज, लाइट बिल और सामने कैंटीन चलाने के लिए किराया-मुक्त जगह अदानी हजीरा पोर्ट द्वारा प्रदान की गई थी। हम केवल किराने का सामान संभालते हैं। निमिषाबेन का कहना है कि अगस्त-2023 में 10 हजार रुपये के निवेश से शुरू की गई कैंटीन को आज एक साल पूरा हो गया है। प्रति माह एक लाख से अधिक का कारोबार होने के कारण केंद्र सरकार ने हमारे सखी मंडल को लखपति दीदी की उपाधि दी है। इसके साथ ही हमारे सखीमंडल को रिवॉल्विंग फंड, कैश क्रेडिट लोन जैसे सरकारी लाभ भी मिले हैं। कोली और हलपति समुदाय की बहनें हर्ष सखी मंडल से जुड़ी हैं। कुछ बहनों की स्थिति तो ऐसी है कि लंबी बीमारी के बाद पति की मौत के कारण ये बहनें घर चलाने और बच्चों की पढ़ाई जैसी कई जिम्मेदारियों से जूझ रही थीं।

शुरुआत में हुई थी दिक्कत

शुरुआत में कैंटीन चलाने में कुछ दिक्कतें थीं, एक तो बंदरगाह पर महिलाओं की बहुत कम संख्या और कैंटीन का समय, बंदरगाह के नियम थे। घर वालों के विरोध के बावजूद हम बहनों ने कैंटीन चलाई और अब हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं कि नाश्ता, दोपहर का खाना और रात का खाना अडानी हजीरा पोर्ट के कर्मचारियों को बहुत पसंद है। साथ ही किराने का सामान और मानदेय का खर्च निकालने के बाद वेफर्स, बिस्कुट और डेयरी उत्पाद बेचकर सखी मंडल प्रति माह लगभग एक से डेढ़ लाख का कारोबार करती है। हर्षा सखी मंडल की बहनें कैंटीन को बहुत मेहनत से चला रही हैं, इस कैंटीन से हलपति समाज की तीन विधवा बहनें भी जुड़ी हुई हैं। इस काम को शुरू करने के बाद से उन्हें एक निश्चित मासिक आय मिलती है जिससे वह अपनी आजीविका अच्छे से चला पाते हैं। साथ ही बच्चों की पढ़ाई को भी महत्व दिया गया है. घर में आमदनी आने और अदाणी फाउंडेशन के समर्थन व सहयोग से उनके परिवार वालों का नजरिया धीरे-धीरे बदल गया है। परिवार के जो सदस्य इसके खिलाफ थे, वे अब समर्थन में हैं।

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