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विधानसभा चुनाव में मायावती के गठबंधन के सियासी मायने, यूपी में पतन क्यों? जो अब पड़ी चौटाला की जरूरत?

Mayawati Alliance With INLD Abhay Chautala: मायावती ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले अभय चौटाला की इनेलो से हाथ मिलाया है। जानकारी के अनुसार मायावती की पार्टी बसपा 90 में से 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में आइये समझते हैं इस गठबंधन के पीछे के सियासी मायने।
02:32 PM Jul 11, 2024 IST | Rakesh Choudhary
विधानसभा चुनाव में मायावती के गठबंधन के सियासी मायने  यूपी में पतन क्यों  जो अब पड़ी चौटाला की जरूरत
मायावती ने हरियाणा में क्यों किया समझौता?

Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा विधानसभा 2024 को लेकर सरगर्मियां बढ़ गई है। बीजेपी ने दो दिन पहले ही गैर जाट समुदाय से आने वाले मोहन लाल बड़ौली को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। इससे पहले आप और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। इस बीच खबर है कि इनेलो और बसपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 से पहले गठबंधन किया है।

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जानकारी के अनुसार हरियाणा की 90 सीटों में से 37 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी। वहीं बाकी बची सीटों पर इनेलो चुनाव लड़ेगी। ऐसे में यूपी की राजनीति करने वाली मायावती ने हरियाणा से चुनाव लड़ने के फैसले से हर कोई हैरान है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब उनकी पार्टी हरियाणा के चुनावी मैदान मे हैं लेकिन स्थानीय पार्टी से गठबंधन करके उसका चुनाव में उतरना हर किसी के लिए हैरानभरा फैसला लगता है। ऐसे में आइये जानते हैं इस फैसले के सियासी मायने।

भतीजे को पहले हटाया फिर वापिस लाईं

यूपी की राजनीति में हाशिए पर जा चुकी मायावती ने कुछ दिनों पहले आकाश आनंद को एक बार फिर से पार्टी का कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया है। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने चौंकाते हुए आकाश आनंद को कोऑर्डिनेटर के पद से हटा दिया था। कभी यूपी में ब्राह्मण, दलित और मुस्लिमों को साधकर चलने वाली पार्टी आजकल यूपी में वोट कटवा पार्टी बनकर रह गई है। फिलहाल पार्टी वेटिंलेटर पर है और अपनी आखिरी सांसें गिन रही हैं। पार्टी का काडर पूरी तरह खत्म हो चुका है। इसके अलावा कोर वोटर्स बीजेपी और सपा में बंट गया है। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में 0 पर सिमटने के बाद मायावती ने एक बार फिर भतीजे पर भरोसा जताया है और उन्हें कोऑर्डिनेटर नियुक्त किया है।

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ऐसे हुआ पतन

यूपी में एक बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन करके ही कोई दूसरी पार्टी सत्ता में आ सकती है। यह बात 2017 के बाद से ही चरितार्थ हो रही है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने वाली बसपा के हाथ से वोट लगातार फिसलता जा रहा है। 2017 में जैसे ही बीजेपी का उभार हुआ तो बसपा और सपा में से किसी एक को तो जाना तय था। ऐसे में बारी आई बसपा कि क्योंकि बसपा नेतृत्व के संकट से जूझ रही थी। मायावती पूरी तरह निष्क्रिय हो चुकी थी। वहीं सपा में मुलायम सिंह यादव के जाने के बाद उनके बेटे अखिलेश यादव सीएम रह चुके हैं। वहीं प्रदेश में विपक्ष का प्रमुख चेहरा बन चुके हैं।

नेतृत्व का संकट

मायावती की निष्क्रियता इस कदर है कि पार्टी विपक्ष के सीनेरियो से पूरी तरह गायब हो चुकी है। ये बात आंकड़ों के जरिए साबित भी होती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़कर भी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। वहीं बात करें वोट शेयर की तो पार्टी को 9.39 प्रतिशत वोट मिले। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो पार्टी को 10 सीटें और 19.43 प्रतिशत वोट मिले। वहीं दूसरी और 1980 के बाद से हाशिए पर जा चुकी कांग्रेस को भी इस चुनाव में मात्र 17 सीटों पर ही 9.46 प्रतिशत वोट मिले। जबकि उसे 2019 के चुनाव में मात्र 6.36 प्रतिशत वोट मिले थे।

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वोट शेयर और सीटों में गिरावट

बसपा की विधानसभा चुनाव में स्थिति और भी खराब है। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली। जबकि वह सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ी थीं। बात करें वोट शेयर की तो पार्टी को सिर्फ 9.35 प्रतिशत वोट मिले। जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में 12.88 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी। ऐसे में पार्टी का जनाधार सभी प्रदेशों में भी कम हो रहा है। एमपी, पंजाब, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र जैसे राज्यों पार्टी पूरी तरह साफ हो चुकी है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि हरियाणा के विधानसभा चुनाव में इनेलो से हाथ मिलाना पार्टी को कितना फायदा पहुंचाएगा।

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