HOT सीट सिरसा... गोपाल कांडा और गोकुल सेतिया में कांटे का मुकाबला, HLP-INLD गठबंधन से कितने बदले समीकरण?
Haryana Assembly Election: हरियाणा की सिरसा विधानसभा सीट पर इस बार कांटे का मुकाबला है। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री लक्ष्मणदास अरोड़ा के नाती गोकुल सेतिया को टिकट दिया है। वहीं, हरियाणा लोकहित पार्टी सुप्रीमो गोपाल कांडा फिर मैदान में हैं। कांडा इस सीट से निवर्तमान विधायक हैं, जो हुड्डा सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं। लेकिन गीता सुसाइड केस में नाम आने के बाद उनको मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। INLD-BSP गठबंधन का साथ भी उनको मिला है। भाजपा ने भी कांडा के पक्ष में यहां से उम्मीदवार नहीं उतारा है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने यहां से श्याम सुंदर मेहता और जननायक जनता पार्टी (JJP) ने पवन शेरपुरा को टिकट दिया है।
पंजाबी और वैश्य समुदाय निर्णायक
इस सीट पर 31 गांव और 31 वार्ड आते हैं। यहां करीब 2 लाख 20 हजार वोटर विधायक चुनेंगे। वैश्य और पंजाबी समाज के वोटर निर्णायक माने जाते हैं। कांडा वैश्य और सेतिया पंजाबी समाज से आते हैं। कांग्रेस और हलोपा के बीच ही मुकाबला है। ग्रामीण और किसान वोटरों का साथ इस बार हलोपा को मिल सकता है। क्योंकि हलोपा को इनेलो से आस है। वहीं, गोकुल सेतिया कांग्रेस के माहौल के सहारे जाट और किसान वोटरों में सेंध लगाने की जुगत में हैं। पिछली बार भी कांडा और सेतिया में फाइट हुई थी। इस बार कौन बाजी मारेगा? कहा नहीं जा सकता।
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यहां OBC वोटर 59 हजार और SC वोटर 49 हजार हैं। पंजाबी और वैश्य समुदाय के 30-30 हजार वोट हैं। जट सिखों के 11 हजार, ब्राह्मणों के 7 हजार और 24 हजार वोट जाटों के हैं। शहरी इलाकों में पंजाबी और वैश्य रहते हैं, यहां सेतिया और कांडा के बीच टक्कर है। भाजपा के खिलाफ किसानों की नाराजगी का लाभ सेतिया को मिल सकता है। वहीं, कांडा को बसपा के साथ होने की वजह से SC वोटरों का साथ मिल सकता है।
सेतिया को शैलजा का कितना सहारा?
शहर के अधिकतर वार्डों में कांडा और बीजेपी के समर्थक पार्षद जीते हैं। कांडा की कोशिश अपने साथ OBC वोटरों को लाने की भी है। सिरसा लोकसभा से इस बार कांग्रेस की कुमारी शैलजा जीती हैं। इस सीट से भी कांग्रेस को लीड मिली थी। सेतिया हुड्डा गुट से माने जाते हैं। हालांकि शैलजा यहां उनके पक्ष में प्रचार कर चुकी हैं। देखने वाली बात होगी कि इसका कितना फायदा सेतिया को मिलता है। उनके नाना यहां से 5 बार एमएलए रह चुके हैं। सेतिया निर्दलीय चुनाव भी लड़ चुके हैं, जो महज 602 वोटों से हारे थे।
कांडा 2012 में गीतिका सुसाइड मामले में नाम आने के बाद 18 महीने तिहाड़ जेल में रह चुके हैं। हालांकि वे अब कोर्ट से बरी हो चुके हैं। 2009 में वे पहली बार निर्दलीय जीते थे। जो हुड्डा सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे। 2014 में खुद की पार्टी हलोपा बनाई। इस बार सिरसा से सिर्फ 3 हजार वोटों से हारे। 2019 में बीजेपी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा और दूसरी बार जीते। इस बार वे शहर को मॉडर्न बनाने के नाम पर वोट मांग रहे हैं। अपने 5 साल के कामों को गिनवा रहे हैं।
1967 में पहली बार जीते अरोड़ा
वहीं, सेतिया के नाना 1967 में पहली बार यहां से जीते थे। पंजाबी वोटों पर उनकी पकड़ का फायदा नाती को मिल सकता है। 2014 में सेतिया की मां सुनीता को बीजेपी ने टिकट दिया था। जो तीसरे नंबर पर रहीं। 2019 में सेतिया ने बीजेपी से टिकट मांगा। नहीं मिला तो निर्दलीय लड़े। गोपाल कांडा से सिर्फ 602 वोटों से हारे। अब वे कांग्रेस में आ चुके हैं। खुद को भाई और बेटा बताकर वोट मांग रहे हैं। देखने वाली बात होगी कि वोटरों का साथ सेतिया या कांडा में किसको मिलता है? जेजेपी और आप यहां फाइट में तो नहीं हैं, लेकिन जितने वोट मिलेंगे, कांग्रेस-BJP को बराबर नुकसान होगा।
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