जाटों ने दिया भरपूर साथ फिर क्यों हरियाणा में कांग्रेस हो गई फेल, जानें कैसे बाजीगर बनी BJP
Haryana Assembly Election Result 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे अब धीरे-धीरे साफ होने लगे हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार बीजेपी 25 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है, जबकि 25 सीटों पर आगे चल रही है। वहीं कांग्रेस 18 सीटें जीत चुकी है, जबकि 17 सीटों पर आगे चल रही है। अगर यह आखिरी नतीजे रहते हैं तो राज्य में बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बना लेगी। जबकि कांग्रेस को सिर्फ 35 सीटों से संतोष करना पड़ेगा। ऐसे में बीजेपी के इस जीत के क्या मायने हैं? क्या कांग्रेस के जाट वोटों का बंटवारा हो गया। या यूं कहे बीजेपी को नाॅन जाट वोट मिले? वजह चाहे जो कुछ भी रही हो परसेप्शन और मुद्दों की लड़ाई में पिछड़ रही बीजेपी को आखिर हरियाणा में कैसे जीत मिली? आइये जानते हैं ये कारण।
लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी 10 में से 5 सीटों पर सिमटी तो कांग्रेस को लगा कि इस बार किसान, पहलवान और जवान का मुद्दा काम कर जाएगा। माहौल भी कुछ ऐसा ही बन गया था। बीजेपी के आला नेता हरियाणा की ओर से ध्यान हटाकर महाराष्ट्र में अपना ध्यान केंद्रित करने लगे थे। जबकि दूसरी ओर कांग्रेस अग्निवीर, किसान आंदोलन, जाटों की नाराजगी को भुनाकर 10 साल बाद सत्ता में वापसी के हसीन सपने देखने लगी थी, लेकिन चुनाव के आखिरी दिनों में बीजेपी ने ताबड़तोड़ प्रचार करके कांग्रेस की जीती हुई बाजी ही पलट दी।
35 प्रतिशत ओबीसी वोटर्स कर गए खेला
बीजेपी इस चुनाव में शुरुआत से ही यह मानकर चल रही थी कि उसे जाट समुदाय के वोट नहीं मिलने वाले हैं। ऐसे में पार्टी का फोकस नाॅन जाट वोटर्स पर ज्यादा था। पार्टी हरियाणा में दलित, ओबीसी वोट बैंक को साधने में कामयाब रही। बीजेपी ने चुनाव में 16 जाट प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। जबकि कांग्रेस ने 28 उम्मीदवारों को मौका दिया था। हरियाणा में ओबीसी वोट बैंक 35 फीसदी है। इसके अलावा अभियान चलाकर दलित आबादी के मन में उत्पन्न हुई शंका को दूर करने की कोशिश की।
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जाट वोटर्स का बंटवारा
हरियाणा में इनेलो और जजपा ने भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। इनेलो ने सभी 90 सीटों पर तो वहीं जजपा ने जाट बाहुल 30 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि उन्होंने चुनाव तो 30 से ज्यादा सीटों पर लड़ा था। ऐसे में जाट वोट तो कांग्रेस, इनेलो और जजपा में बंट गए। वहीं बचे वोट बीजेपी के पक्ष में गए। जबकि दलित और ओबीसी वोटर्स भी पार्टी के पक्ष में लामबंद हो गए। इसका फायदा भी बीजेपी को मिला।