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दुनियाभर में अस्थमा से होने वाली मौतों में से 46% केवल भारत में! हल्के में लिया तो पड़ेगा भारी
Asthma Deaths Report Warns: भारत में हर साल अस्थमा के कारण 2,00,000 लोगों की मौत हो जाती है। पलमोकेयर रिसर्च एंड एजुकेशन (प्योर) फाउंडेशन (Pulmocare Research and Education (PURE) Foundation) के डायरेक्टर डॉ. संदीप साल्वी ने कहा कि अगर जल्दी डायग्नोसिस किया जाए और उपचार किया जाए, तो किसी भी दमा रोगी की मौत नहीं होनी चाहिए। क्योंकि अब ऐसे उपचार हैं, जो इतने असरदार और सुरक्षित हैं कि व्यक्ति लगभग सामान्य जीवन जी सकता है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2021 रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल अस्थमा से होने वाली मौतों में भारत का योगदान 46 % है। यह 2019 की रिपोर्ट से 43 % अधिक है। एक हालिया रिपोर्ट में डॉ साल्वी ने दिखाया कि भारत में 90 % से ज्यादा अस्थमा रोगी इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स का उपयोग नहीं करते हैं। इसके अलावा, वे ओरल रूप से या सांस के माध्यम से केवल ब्रोन्कोडायलेटर दवाएं लेते हैं, जो अधिक पीड़ा और मृत्यु का कारण बनती हैं।
अस्थमा का खराब निदान क्यों?
अस्थमा एक जेनेटिक बीमारी है जो परिवारों में चलती है, लेकिन वायु प्रदूषण की वजह से स्थिति ज्यादा गंभीर हो सकती है। यह अक्सर एलर्जिक राइनाइटिस (बहती नाक और छींक), एलर्जिक दाने या एक्जिमा और माइग्रेन से जुड़ा होता है।
हालांकि, सांस फूलना एक सामान्य लक्षण है, खांसी, सीने में जकड़न और घरघराहट, अन्य सामान्य लक्षण हैं। अस्थमा के मरीज अक्सर खांसी की शिकायत करते हैं, जो रात में अधिक आम है, जिससे उन्हें जागना पड़ता है और किसी मेहनत वाले काम करने पर सांस लेने में तकलीफ होती है।
अस्थमा से बच्चे आमतौर पर अधिक प्रभावित होते हैं और वास्तव में, अस्थमा के 50 % मरीज बच्चे ही होते हैं। हालांकि, स्पिरोमेट्री के उपयोग की कमी के कारण भारत में अस्थमा का निदान बहुत कम होता है।
ग्लोबल अस्थमा नेटवर्क (जीएएन) स्टडी, जो भारत में नौ अलग-अलग स्थानों के 6-7 साल की आयु के 20,084 बच्चों, 13-14 साल की आयु के 25,887 बच्चों और 81,296 माता-पिता पर आयोजित किया गया था, से पता चला कि 82 % में अस्थमा का कम निदान किया गया था। यहां तक कि जिन लोगों को गंभीर अस्थमा था, उनमें से भी 70% का निदान नहीं हो पाया।
अस्थमा के लिए उपचार
अस्थमा के लिए सबसे प्रभावी और सुरक्षित उपचार ब्रोन्कोडायलेटर के साथ या इनहेलर या मीटर्ड डोज इनहेलर द्वारा दिया जाने वाला कॉर्टिकोस्टेरॉइड है। ये दवाएं मौत को रोकती हैं और लक्षणों को कम करती हैं, फिर भी जीएएन अध्ययन में अस्थमा से पीड़ित केवल 5 % बच्चे और 10 % एडल्ट इन दवाओं का उपयोग कर रहे थे। अस्थमा का इलाज करने का सबसे सुरक्षित, तेज और सबसे प्रभावी तरीका सांस द्वारा ली जाने वाली मेडिसिन हैं।
मिथकों को खत्म करना जरूरी है
अस्थमा से जुड़े कई मिथक और गलत धारणाएं हैं, जैसे- अस्थमा एक संक्रामक बीमारी है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है, एक बार जब आपको अस्थमा का पता चल जाता है तो आप लाइफटाइम के लिए बर्बाद हो जाते हैं, सांस द्वारा ली जाने वाली मेडिसिन बहुत खतरनाक होती हैं।
भारत में सभी अस्थमा रोगियों को जल्दी और सही निदान मिलना चाहिए और रेगुलर रूप से सही दवा लेनी चाहिए। अगर आप अस्थमा से पीड़ित हैं, तो आपको रेगुलर रूप से सांस द्वारा ली जाने वाली दवाएं लेनी होंगी, वे आपके फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं और आपके फेफड़ों को डैमेज होने से बचाएंगी।
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