whatsapp
For the best experience, open
https://mhindi.news24online.com
on your mobile browser.

वर्चुअल ऑटिज्म क्यों और कैसे बच्चों के लिए खतरनाक

Virtual Autism In Kids: अगर घर के छोटे-छोटे बच्चे आजकल मोबाइल के इतने आदी हो चुके हैं कि बिना इसके काम नहीं चलने वाला है, तो साफ मतलब बै कि बच्चा वर्चुअल ऑटिज्म से ग्रस्त है। आइए जानें इसके लक्षण..
09:29 PM May 01, 2024 IST | Deepti Sharma
वर्चुअल ऑटिज्म क्यों और कैसे बच्चों के लिए खतरनाक
बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म Image Credit: Freepik

Virtual Autism In Kids: आज के समय में हर घर में टीवी, मोबाइल, गैजेट्स, कंप्यूटर/लैपटॉप और अन्य स्मार्ट डिवाइस आसानी से देखने को मिलते हैं। ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि आज के टाइम में टेक्नोलॉजी किशोरों, बड़ों, बच्चों की लाइफ बहुत बड़ा रोल निभा रही है।

आज के बच्चे अपनी पढ़ाई या फिर मनोरंजन के लिए टेक्नोलॉजी से घिरे हुए हैं। हर समय मोबाइल या टीवी देखने में बीत रहा है।बच्चों के मोबाइल या टीवी देखने के समय को डॉक्टर्स 'स्क्रीन टाइम' से संबोधित करते हैं। बच्चे का जितना ज्यादा स्क्रीन टाइम होगा उतना ज्यादा उसे नुकसान होगा।

कोरोना काल के बाद बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी तेजी से बढ़ा है। कई रिसर्च में ये पाया गया है कि 0 से 8 साल तक के बच्चे औसतन रोजाना दो से ढाई घंटे टीवी या मोबाइल देखते थे जो कि कोरोना काल के बाद बढ़कर चार से साढ़े चार घंटे तक पहुंच गया।

बढ़ते स्क्रीन टाइम का बच्चों पर बुरा असर 

टीवी या मोबाइल की लत बच्चो के विकास, खासतौर पर उनके विकास, जैसै कि मेमोरी, लॉजिकल थिंकिंग, रीजनिंग एबिलिटी के साथ ही बोलने में देरी, भाषा को समझने की समस्या का कारण बनता है।

बढ़ते स्क्रीन टाइम के कारण डाइट में अनियमितता होने पर मोटापे या फिर डायबिटीज का शिकार होते हैं। बच्चों के स्क्रीन टाइम में बढ़ोतरी के कारण सोशल और इमोशनल ग्रोथ भी काफी धीमा हो जाता है। उनमें अपने परिवार और साथियों के साथ संबंध, खुद की पहचान, आसपास के बारे में जागरूकता, मनोदशा और गुस्से के बारे में जागरूकता और जुड़ाव की कमी बढ़ जाती है।

ये सारी दिक्कतें उन्हें ऑकुपेशनल थेरेपी और स्पीच थेरेपी जैसी तमाम चीजों की तरफ जाने पर विवश करती हैं, जो कि हर अभिभावक के लिए आर्थिक तौर पर इतनी आसान नहीं होती।

डिजिटल मीडिया जैसे टीवी, वीडियो-गेम, स्मार्ट फोन और टैबलेट की दुनिया बच्चों और युवाओं के व्यवहार को बदल रही है।दरअसल,  बच्चे जो वर्चुअल दुनिया में देखते हैं उसे ही असली मान लेते हैं।

किस उम्र के बच्चे का कितना होना चाहिए स्क्रीन टाइम 

  • 18 महीने तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम जीरो होना चाहिए। इसका मतलब ये है कि उन्हें पूरी तरह से मोबाइल या टीवी से दूर रखना चाहिए।
  • डेढ़ से दो साल के बच्चों का स्क्रीन टाइम एक घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
  • दो से पांच साल के बच्चों का स्क्रीन टाइम किसी भी हाल में एक दिन में 3 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
  • 6 से 17 साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम 2 घंटे प्रतिदिन से ज्यादा ना हो।
  • 18 साल या फिर उससे अधिक उम्र के वयस्कों के लिए स्क्रीन टाइम दो से चार घंटा ही होना चाहिए।

बच्चे क्या देख रहे हैं उसका चयन कैसे करें 

  • बच्चे जो कंटेंट देख रहे हैं उसे लेकर पेरेंट्स को उनसे बात करनी चाहिए। वो भी बच्चों के साथ बैठकर देखें कि वो क्या देख रहे हैं।
  • पेरेंट्स बच्चे के देखने का समय, सामग्री और प्रकार की सीमा तय करें।
  • बच्चों रे बेडरूम में किसी भी हाल में टीवी या मोबाइल नहीं होना चाहिए।
  • पेरेंट्स बच्चों के सामने अपना स्क्रीन टाइम भी कम करें। इससे बच्चे पर पोजिटिव असर देखने को मिलेगा।
  • पेरेंट्स बच्चों को घर के बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें।

स्क्रीन टाइम के साइड इफेक्टस से कैसे पाएं निजात 

ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्चों के व्यवहार पर सावधानी से नजर रखनी चाहिए। बच्चे में आंख ना मिलाने की आदत, फोकस की कमी, अपना नाम सुनकर अनसुना करना, न बोलना या काफी कम बोलना अपने आस पास की चीजों को कम समझना, अजीब व्यवहार, बाहर न खेलना, पढ़ाई में कमजोर होने जैसी दिक्कतें तो नहीं आ रही हैं, ये चेक करें। अगर ये लक्षण दिखें तो समझ जाएं कि बच्चे को मेडिकल हेल्प की जरूरत है। ऐसे में पेरेंट्स किसी अच्छे डॉक्टर्स से सलाह करें।

ये भी पढ़ें- क्या विटामिन डी की खुराक जवान बनाए रख सकती है?  

Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारी पर अमल करने से पहले डॉक्टर की राय अवश्य ले लें। News24 की ओर से कोई जानकारी का दावा नहीं किया जा रहा है। 

Tags :
tlbr_img1 दुनिया tlbr_img2 ट्रेंडिंग tlbr_img3 मनोरंजन tlbr_img4 वीडियो