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जिस दिन भारत मनाता है आजादी का जश्न, उसी दिन बांग्लादेश में मातम! इस बार क्या बदला?

15 August For India And Bangladesh: भारतीय नागरिकों के लिए 15 अगस्त की तारीख का मतलब जहां आजादी के जश्न से जुड़ा होता है तो हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में इस दिन राष्ट्रीय शोक रहता है। इस रिपोर्ट में जानिए इसी अजीब संयोग का कारण।
06:30 AM Aug 15, 2024 IST | Gaurav Pandey
जिस दिन भारत मनाता है आजादी का जश्न  उसी दिन बांग्लादेश में मातम  इस बार क्या बदला

15 August History Of India And Bangladesh: भारत में 15 अगस्त को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने की तारीख के रूप में याद रखा जाता है। आज हमारा देश स्वतंत्रता की 78वीं सालगिरह का जश्न मना रहा है। पूरा देश देशभक्ति के रंग में रंगा हुआ है। लेकिन, क्या आपको मालूम है कि हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में इस दिन मातम का माहौल रहता है। बांग्लादेश में 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस रहता है। हालांकि, इस बार राजनीतिक संकट में घिरे इस देश की नई अंतरिम सरकार ने ऐसा नहीं करने का फैसला किया है। आइए जानते हैं 15 अगस्त को बांग्लादेश में गम का माहौल आखिर क्यों रहता था और इस बार वहां ऐसा बदलाव क्यों आया।

बांग्लादेश में हफ्तों चले छात्रों के आंदोलन के बाद 5 अगस्त को शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था और सेना के दबाव में देश भी छोड़ना पड़ा था। इसके बाद 13 अगस्त को शेख हसीना ने अपना मौन तोड़ा और अपने बेटे सजीब वाजिद जॉय के जरिए उनका एक बयान दुनिया के सामने आया। इसमें उन्होंने बांग्लादेश की जनता से अपील की थी कि वो 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस के तौर पर मनाएं। बता दें कि साल 1975 में इसी दिन शेख हसीना के पिता और साल 1971 में बांग्लादेश की आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले इस देश के पहले शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी। मुजीबुर्रहमान को बांग्लादेश का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है।

हसीना की अपील से पहले आया आदेश

लेकिन, शेख हसीना की इस अपील से कुछ घंटे पहले ही नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने 15 अगस्त को होने वाले राष्ट्रीय अवकाश को कैंसिल करने का फैसला ले लिया था। इसे लेकर चीफ एडवाइजर की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया कि 15 अगस्त को राष्ट्रीय अवकाश को रद्द करने का निर्णय एडवाइजर्स की काउंसिल और राजनीतिक दलों के साथ चर्चा करने के बाद एकमत से लिया गया है। अब नजर डालते हैं बांग्लादेश में 15 अगस्त को नेशनल हॉलिडे घोषित करने के पीछे के इतिहास पर और उन संभावित कारणों पर जो मोहम्मद यूनुस की सरकार की ओर से इस तरह का फैसला लेने के जिम्मेदार हो सकते हैं।

कैसे हुई थी शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या?

शेख मुजीबुर्रहमान ने ही आजादी के लिए लड़ाई की अगुवाई की थी जिसमें पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे और पूर्वी पाकिस्तान नया देश बन गया था जिसे बांग्लादेश नाम मिला था। 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ अधिकारियों ने तख्तापलट कर दिया था और मुजीबुर्रहमान के आवास पर धावा बोल दिया था। सुबह करीब 5.30 बजे जब वहां मौजूद गार्ड्स ने ध्वजारोहण शुरू किया, हमलावर आवास के अंदर घुस गए। उन्होंने मुजीबुर्रहमान को देखते ही गोलियां बरसा दी थीं। उन्हें 18 गोलियां लगी थीं। हमले में उनकी पत्नी शेख फजीलातुन्नीसा, उनके बेटे शेख कमाल, शेख जमाल व शेख रसल, उनकी बहू सुल्ताना कमाल व रोजी जमाल की भी हत्या कर दी गई थी।

सिर्फ शेख हसीना और बहन रेहाना बचीं

इस हमले में केवल उनकी दो बेटियां, शेख हसीना और शेख रेहाना की जान बच पाई थी। दोनों हमले के समय जर्मनी में थीं। मुजीबुर्रहमान की हत्या ने बांग्लादेश के इतिहास को हमेशा हमेशा के लिए बदल दिया। इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार 5 अधिकारियों को 35 साल बाद साल 2010 में फांसी की सजा दे दी गई थी। इससे पहले साल 1996 में हसीना की अगुवाई वाली अवामी लीग पार्टी ने सत्ता में आने के बाद 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित कर दिया था। साल 2001 में बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी की गठबंधन सरकार ने इसे कैंसिल कर दिया था। लेकिन 2008 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद 15 अगस्त को फिर वही दर्जा मिल गया।

अंतरिम सरकार ने क्यों लिया ये फैसला?

तब से हर साल बांग्लादेश में हर साल 15 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश रहता रहा और आधे झुके राष्ट्रीय ध्वज के साथ काला झंडा दिखता रहा। लेकिन इस साल तस्वीर बदल गई है और इससे सवाल उठा है कि सरकार ने 15 अगस्त की छुट्टी क्यों कैंसिल कर दी? इसे लेकर कहा जा रहा है कि यह फैसला जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। वहां के लोगों में शेख हसीना को लेकर गुस्सा भरा हुआ है। इसी गुस्से की झलक शेख मुजीबुर्रहमान को समर्पित बंगबंधु मेमोरियल म्यूजियम में दिखी थी जब प्रदर्शनकारियों ने यहां लूटपाट मचा दी थी और इसे आग लगा दी थी। प्रदर्शनकारी यहीं नहीं रुके थे। उन्होंने देश की राजधानी ढाका में मुजीबुर्रहमान का स्टेच्यू भी गिरा दिया था।

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