whatsapp
For the best experience, open
https://mhindi.news24online.com
on your mobile browser.
Advertisement

खून से सनी दीवारें, लाशों से भरा कुआं; 10 मिनट 1650 राउंड फायरिंग, 105 साल बाद भी हरे Jallianwala Bagh हत्याकांड के जख्म

Jallianwala Bagh Massacre Memoir: आज इतिहास के उस काले दिन को याद करते हैं, जिस दिन अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग में नरसंहार किया था। बैसाखी का मेला देखने आई भीड़ पर पार्क के दरवाजे बंद करके अंधाधुंध गोलियां बरसाई गई थीं। दीवारें खून से सन गई थीं और कुआं लाशों से भर गया था। आज भी उस हत्याकांड की यादें जेहन में ताजा हैं।
07:30 AM Apr 13, 2024 IST | Khushbu Goyal
खून से सनी दीवारें  लाशों से भरा कुआं  10 मिनट 1650 राउंड फायरिंग  105 साल बाद भी हरे jallianwala bagh हत्याकांड के जख्म
Jallianwala Bagh Massacre 105th Anniversary

Jallianwala Bagh Massacre 105th Anniversary: खून से सनी दीवारें, लाशों से भरा कुआं, दनादन चलती गोलियां, चीखते चिल्लाते बच्चे-महिलाएं...डेढ़ महीने का बच्चा भी उन निर्दयी अंग्रेजों को नजर नहीं आया था। लोगों से खचाखच पार्क भरा था और चारों ओर के दरवाजे बंद करके अंग्रेज उनके ऊपर 10 मिनट तक फायरिंग करते रहे। करीब 1650 राउंड फायरिंग हुई थी। ताबड़तोड़ बिना रूके हुई गोलीबारी में करीब 1500 लोग मारे गए और 2000 से ज्यादा लोग गंभीर घायल हुए।

Advertisement

महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग गोलियों से बचने के लिए कुएं में कूद गए। आज भी वह खूनी कुआं पार्क में बना है। दीवारों पर गोलियां के निशान हैं। सरकारी कागजों में सिर्फ 484 लोगों के मरने का रिकॉर्ड है, लेकिन भारत देश के इतिहास में दर्ज उस काले दिन के जख्म आज 105 साल बाद भी ताजा हैं। जी हां, आज Jallianwala Bagh नरसंहार की बरसी है। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के त्योहार पर अंग्रेजों ने पंजाब के अमृतसर जिले में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) के पास बने पार्क में नरसंहार किया था।

Advertisement

Advertisement

क्या हुआ था 13 अप्रैल 1919 के दिन?

बैसाखी का त्योहार था। जलियांबाग में मेला लगा था और एक राजनीतिक कार्यक्रम भी इस मेले में करने की प्लानिंग क्रांतिकारियों की थी। अंग्रेजों के रॉलेट एक्ट (‎Rowlatt Act 1919) का विरोध जताना था। बच्चे-महिलाएं और बुजुर्ग मेला घूम रहे थे कि क्रांतिकारियों के मेले में जुटने की खबर मिलते ही ब्रिगेडियर जनरल डायर (General Dyer) 90 सैनिकों की टुकड़ी लेकर आ गया। उसने बाग के चारों दरवाजे बंद करवा दिए।

बाग में जुटी भीड़ पर चेतावनी दिए बिना अंधाधुंध फायरिंग करवाई। आदेश था- जहां ज्यादा लोग दिखें, गालियों से छलनी कर दो। पूरे अमृतसर में गोलियों की आवाजें और लोगों की चीखें गूंजी। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सब मारे गए। मरने वालों में डेढ़ महीने का बच्चा भी था। इस नरसंहार ने भगत सिंह पैदा किया। ऊधम सिंह के सीने में बदले की आग लगाई। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। इसी नरसंहार ने भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।

यह भी पढ़ें:Crawling Order: वो गली जिसमें भारतीयों को रेंगकर जाना पड़ता था, ‘अमृतसर के कसाई’ की क्रूरता की एक और कहानी

क्या था अंग्रेजों का काला कानून रोलेट एक्ट?

जलियांवाला बाग नरसंहार अंग्रेजों के काले कानून Rowlatt Act के कारण हुआ था। यह एक्ट 8 मार्च 1919 को ब्रिटिश सरकार ने पारित किया था। सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर यह एक्ट पास हुआ था। इसके तहत ब्रिटिश सरकार को भारत में हो रही राजनीतिक गतिविधियों का दमन करने का अधिकार मिला था। इसके तहत किसी भी शख्स को बिना केस चलाए करीब 2 साल तक जेल में रखा जा सकता था।

पंजाब समेत पूरे भारत में इस एक्ट का विरोध हुआ था। एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल 1919 को 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' शुरू किया था, जो राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में पूरे देश में उभर रहा था। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में 2 क्रांतिकारी नेताओं, सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार करके अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था। इस बीच अंग्रेजों ने मार्शल लॉ लागू कर दिया। ब्रिगेडियर जनरल डायर को पंजाब में कानून व्यवस्था संभालने के लिए नियुक्त किया गया। इसके लिए वह जालंधर से अमृतसर आया।

यह भी पढ़ें:Lok Sabha Election Throwback: वो चुनाव, जिसमें सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत होने के बावजूद हार गई थी कांग्रेस

ब्रिटिश सरकार को मांगनी पड़ी माफी

जलियांवाला बाग नरसंहार पर पूरी दुनिया ने शोक जताया, लेकिन ब्रिटेन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। न कभी माफी मांगी गई और न ही दुख जताया गया। हालांकि 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भारत दौरे पर आईं तो उन्होंने जलियांवाला बाग जाकर नरसंहार में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी थी। 2013 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन (David Cameron) भी श्रद्धांजलि देने स्मारक पर आए थे।

उन्होंने विजिटर्स बुक में भी लिखा था कि ब्रिटेन के इतिहास की यह सबसे शर्मनाक घटना थी। वहीं नरसंहार के बाद विरोध की आग भड़की तो दबाव में आकर नरसंहार की जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया गया। जनरल डायर को डिमोट करके कर्नल बनाया गया। साथ ही उन्हें ब्रिटेन वापस भेजा गया। भारतीयों के विरोध जताने पर 1920 में जनरल डायर को नौकरी से रिजाइन देना पड़ा। 7 साल बाद 1927 में ब्रेन हेमरेज होने से जनरल डायर की मौत हो गई।

यह भी पढ़ें:वो चुनाव आयुक्त जो ‘नाश्ते में नेताओं को खाता था’, लालू यादव ने दिया था ‘शेषन वर्सेज नेशन’ का नारा

Open in App Tags :
Advertisement
tlbr_img1 दुनिया tlbr_img2 ट्रेंडिंग tlbr_img3 मनोरंजन tlbr_img4 वीडियो