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कौन थे छत्रपति संभाजी? औरंगजेब की नींद उड़ाई, नहीं हारी कोई लड़ाई; विक्की कौशल की 'छावा' दिखाएगी पूरी कहानी

Movie On Sambhaji Maharaj : अपनी वीरता से मुगलों और पुर्तगालियों के दांत खट्टे कर देने वाले मराठा शासक छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर बनी फिल्म 'छावा' का टीजर लॉन्च हो गया है। संभाजी के रोल में विकी कौशल शानदार लग रहे हैं। छावा मराठी शब्द है जिसका मतलब शेर का बच्चा होता है।
08:36 PM Aug 19, 2024 IST | Gaurav Pandey
कौन थे छत्रपति संभाजी  औरंगजेब की नींद उड़ाई  नहीं हारी कोई लड़ाई  विक्की कौशल की  छावा  दिखाएगी पूरी कहानी
विक्की कौशल 'छावा' फिल्म में संभाजी महाराज का किरदार निभा रहे हैं।

लंबे इंतजार के बाद 'छावा' के मेकर्स ने सोमवार को आखिरकार फिल्म के टीजर से पर्दा उठा ही दिया। मराठा शासक छत्रपति संभाजी महाराज के चरित्र पर बनी इस फिल्म में विकी कौशल और रश्मिका मंधाना मुख्य भूमिकाओं में नजर आएंगे। भारत के गर्वीले इतिहास को टटोलती फिल्म निर्माता लक्ष्मण उटेकर की यह फिल्म इस साल 6 दिसंबर को थिएटर्स में रिलीज होनी है। फिल्म के टीजर में युद्ध के मैदान के कई बेहद इंटेंस सीन देखने को मिलते हैं। 'बैड न्यूज' की शानदार सफलता के बाद अब विकी कौशल, संभाजी महाराज बनकर बड़े पर्दे पर एकदम ही नए अंदाज में वापसी करने वाले हैं।

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छावा के टीजर की शुरुआत विकी कौशल की पहचान महान मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे के रूप में पहचान कराने के साथ होती है। विकी के अलावा रश्मिका मंधाना इस फिल्म में संभाजी महाराज की पत्नी येसूबाई भोंसले के किरदार में नजर आएंगी। वहीं, अक्षय खन्ना मुगल शासक औरंगजेब की भूमिका में नजर आएंगे। टीजर में विकी कौशल का जंग के मैदान पर दहाड़ते, गरजते और दुश्मनों से लड़ते हुए नए अवतार में नजर में आए हैं। ये फिल्म तो जब आएगी तब आएगी, तब तक जानिए इस फिल्म के केंद्रीय कैरेक्टर संभाजी महाराज से जुड़ी कुछ अनोखी और रोचक जानकारियां।

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कौन थे छत्रपति संभाजी महाराज?

मराठा साम्राज्य की स्थापना करने वाले और अपने दिमाग के बूते मुगलों की नाक में दम कर देने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की पहली पत्नी साईबाई ने 11 मार्च 1657 को अपनी पहली संतान को जन्म दिया था। पुरंदर किले में जन्मे अपने सबसे बड़े बेटे को शिवाजी ने संभाजी भोंसले नाम दिया था। शंभा जी की मां का निधन तभी हो गया था जब उनकी उम्र सिर्फ 2 साल की थी। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी मां जीजाबाई ने किया था। 9 साल की उम्र में उन्हें राजनीतिक बंधक के रूप में आमेर के राजा जय सिंह के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था। यह कदम इसलिए उठाया गया था ताकि पुरंदर की संधि का पालन सुनिश्चित हो सके। इस संधि पर शिवाजी ने मुगलों के साथ 11 जून 1665 को हस्ताक्षर किए थे। इसी संधि के परिणामस्वरूप संभाजी मुगल मनसबदार बन गए थे।

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संभाजी अपने पिता शिवाजी के साथ 12 मई 1666 को आगरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के दरबार में पहुंचे थे। यहां, औरंगजेब ने दोनों को नजरबंद करवा दिया। लेकिन 22 जुलाई 1666 को दोनों वहां से भाग निकलने में कामयाब रहे थे। हालांकि, साल 1666 से 1670 के बीच दोनों पक्षों के संबंध ठीकठाक रहे। साल 1666 और 1668 के बीच औरंगजेब ने शुरुआत में शिवाजी को मिली राजा की उपाधि को मान्यता देने से मना कर दिया था। लेकिन औरंगाबाद के वॉयसरॉय और अपने ही बेटे प्रिंस मुअज्जम के दबाव में औरंगजेब के न चाहते हुए भी शिवाजी को राजा की उपाधि और संभाजी को फिर से मुगल मनसबदार की रैंक मिल गई थी। 4 नवंबर 1667 को संभाजी प्रिंस मुअज्जम से मिलने औरंगाबाद पहुंचे थे। यहां उन्हें राजस्व कलेक्शन के नाम पर बरार में जमीन के अधिकार दे दिए गए थे।

पिता ने करवा दिया था किले में कैद

कुछ समय रुकने के बाद संभाजी राजगढ़ लौट गए जबकि उनके प्रतिनिधि मराठा अधिकारी औरंगाबाद में ही अपना ठिकाना बनाए रहे। इस दौरान संभाजी के नेतृत्व में मराठाओं ने मुगलों के साथ मिलकर बीजापुर की सल्तनत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। संभाजी की शादी जिवूबाई के साथ हुई थी और मराठा परंपरा के अनुसार शादी के बाद उनका नाम येसूबाई कर दिया गया था। बता दें कि राजा जय सिंह के साथ रहते हुए संभाजी ने तलवारबाजी, तीरंदाजी, घुड़सवारी जैसी कलाएं सीखीं। इसके अलावा उन्हें 13 भाषाओं का भी ज्ञान था। बताया जाता है कि संभाजी वीर तो थे लेकिन किशोरावस्था में वह लापरवाह थे और भौतिक सुखों के लती थे। उनकी इस तरह की हरकतों पर लगाम लगाने के लिए शिवाजी महाराज ने साल 1678 में अपने बेटे ही को पन्हाला किले में उनकी पत्नी के साथ कैद कर दिया था।

लेकिन, संभाजी पत्नी के साथ वहां से भाग निकले। यहां से निकलकर दिसंबर 1678 में वह प्रिंस मुअज्जम के डिप्टी दिलेर खान के पास गए। यहां उन्होंने करीब एक साल का वक्त गुजारा। वहीं, शिवाजी जब दक्षिण दिग्विजय अभियान से लौटे तो संभाजी को उन्होंने इस उम्मीद से सज्जनगढ़ में तैनात कर दिया कि शायद उनमें कुछ बदलाव आए। लेकिन, संभाजी भी कम नहीं थे। दिलेर खान के साथ उनका संपर्क स्थापित हो गया था। दिलेर खान तब तक दक्षिण में मुगलों के मामलों का एकमात्र इंचार्ज बन चुका था। 13 दिसंबर 1678 को संभाजी अपने साथ कुछ लोगों को लेकर सज्जनगढ़ से मुगल छावनी पेडगांव के लिए निकल गए। महौली में उन्होंने सेवकों को अलविदा कहा। संभाजी को लेने के लिए दिलेर खान ने 4000 सैनिकों की फौज के साथ इखलास खान मियाना और गैरत खान यहां आए थे।

साजिशों के बीच यूं बन गए छत्रपति

वहां से संभाजी कुरकुंभ चले गए जहां दिलेर खान खासतौर पर उन्हीं के लिए पहुंचा था। लेकिन, यहां उन्हें तब दक्कन के मुगल वॉयसरॉय बन चुके दिलेर खान की ओर से रची गई एक साजिश के बारे में पता चला। दिलेर खान उन्हें गिरफ्तार कर दिल्ली भेजना चाहता था। इसकी भनक पड़ते ही संभाजी अपने घर की ओर रवाना हो गए। वापस लौटने पर उन्हें पन्हाला किले में कैद कर लिया गया। 5 अप्रैल 1680 को जब शिवाजी का निधन हुआ तब भी शंभा जी पन्हाला किले में ही कैद थे। शिवाजी की मौत के बाद सिंहासन किसे मिलेगा इसे लेकर साजिशें रची जाने लगीं। संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई ने 21 अप्रैल 1680 को अपने बेटे राजाराम का राज्याभिषेक करा दिया। ये खबर मिलने के बाद संभाजी ने वहां से भागने का प्लान बनाया और 27 अप्रैल 1960 को पन्हाला किले के कमांडर की हत्या करने के बाद किले पर कब्जा कर लिया।

18 जून 1680 को उन्होंने रायगढ़ किले पर कब्जा कर लिया। 20 जुलाई 1680 को संभाजी ने औपचारिक रूप से सिंहासन ग्रहण किया था। राजाराम, उसकी पत्नी जानकी बाई और मां सोयराबाई को जेल में डाल दिया गया था। बता दें कि संभाजी के दुश्मन मुगलों से ज्यादा उनके अपने ही रहे। उनके साले गरुढ़ शिरके ने मुगलों के साथ मिलकर संभाजी पर हमला करवा दिया था। तब संभाजी के साथ सिर्फ 200 लोग थे और जिस रास्ते पर वह थे उसका पता अब सिर्फ मराठाओं को ही था। लेकिन, शिरके की गद्दारी संभाजी के साहस पर भारी पड़ गई। उन्हें बंदी बना हत्या कर दी थी। कहा जाता है कि औरंहजेब ने संभाजी के आगे बचने के लिए इस्लाम अपनाने का विकल्प रखा था। लेकिन संभाजी को अपनी जान अपने धर्म और अपने आत्मसम्मान से ज्यादा प्यारी नहीं थी। कठोर यातनाएं सहने के बाद भी संभाजी ने इस्लाम नहीं अपनाया था।

सैकड़ों जंग लड़ीं और सब में विजय

16 साल की उम्र में अपना पहला युद्ध लड़ने वाले संभाजी अपने पूरे जीवन में जंग के मैदान में कभी नहीं हारे। छत्रपति महाराज के तौर पर 9 साल के शासन के दौरान उन्होंने मुगलों और पुर्तगालियों के साथ न जाने कितनी बार लड़ाईयां लड़ीं। लेकिन, एक भी जंग नहीं हारी। संभाजी के पराक्रम का इतना खौफ था कि औरंगजेब ने ये कसम खा ली थी कि जब तक उन्हें पकड़ नहीं लिया जाएगा तब तक वह अपना किमोंश (ताज) सिर पर नहीं रखेगा। संभाजी के डर से छुटकारा पाने के लिए मुगलों को साजिश ही रचनी पड़ी और धोखे से उन्हें पकड़ा गया था। संभाजी जब तक जीवित रहे उन्होंने औरंगजेब का पूरा भारत फतेह करने का सपना पूरा नहीं होने दिया। कहते हैं कि संभाजी की हत्या करने से पहले औरंगजेब ने उनसे कहा था कि अगर मेरे चार बेटों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिंदुस्तान कब का मुगल सल्तनत में आ गया होता।

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