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खून से खत लिखा, 10 साल पुराना वादा यादा कराया; जानें भाजपा विधायक ने PM मोदी से क्यों जताई नाराजगी?

BJP MLA Letter to PM Modi With Blood: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा के एक विधायक ने अपने खून से लेटर लिखकर नाराजगी जताई है। उन्होंने PM मोदी को 10 साल पुराना वादा याद कराया, जो वे करके भूल गए हैं। उन्होंने वादा पूरा करने की अपील करते हुए गोरखाओं को न्याय दिलाने की मांग की है, जानिए आखिर क्या मामला है?
01:57 PM Mar 03, 2024 IST | Khushbu Goyal
खून से खत लिखा  10 साल पुराना वादा यादा कराया  जानें भाजपा विधायक ने pm मोदी से क्यों जताई नाराजगी
प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रधानमंत्री मोदी को खून से लिखा लेटर दिखाते भाजपा विधायक नीरज जिम्बा।

BJP MLA Wrote Letter to PM Modi With Blood: भाजपा जहां लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में जुटी है, वहीं भाजपा के एक मौजूदा विधायक ने प्रधानमंत्री मोदी से नाराजगी जताई है। विधायक ने प्रधानमंत्री को अपने खून से एक लेटर लिखा है। इस लेटर में उन्होंने PM मोदी को 14 साल पुराना वादा याद दिलाया और अपील की कि प्रधानमंत्री 14 साल पहले 10 अप्रैल 2014 को किया वादा निभाएं। मामला गोरखों के मुद्दों से जुड़ा है और खून से लेटर लिखने वाले विधायक पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के दार्जिलिंग से भाजपा विधायक नीरज जिम्बा हैं।

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गोरखाओं को अनुसूचित दर्जा देने की मांग

नीरज जिम्बा ने खून से लिखे लेटर में लिखा कि गोरखाओं के सपने मेरे सपने हैं। प्रधानमंत्री मोदी गोरखा मुद्दों में उच्च स्तर पर हस्तक्षेप करके मामला सुलझाएं। PM मोदी ने 10 अप्रैल 2014 को सिलीगुड़ी के पास खपरैल में एक रैली में शिरकत की थी। इस रैली में उन्होंने घोषणा की थी कि गोरखाओं को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन आज तक यह वादा पूरा नहीं किया गया है। उन्होंने अपने लेटर में गोरखाओं की उपेक्षा और अलग गोरखालैंड राज्य बनाने के मुद्दे पर प्रकाश डाला, जबकि TMC ने राज्य के विभाजन और गोरखालैंड के निर्माण का विरोध किया है। बावजूद इसके अलग गोरखालैंड की मांग उठती रही है और हर बार मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।

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गोरखालैंड की मांग को लेकर होते रहे हैं आंदोलन

विधायक जिम्बा ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक और स्थायी समाधान ढूंढकर गोरखाओं के 11 समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर गोरखाओं के मुद्दों को हल करने की प्रतिबद्धता दिखाएं। लद्दाखियों, कश्मीरियों, मिज़ोस, नागाओं और बोडोज़ को न्याय दिया गया है, लेकिन गोरखा आज तक उपेक्षा का शिकार बने हुए हैं।

1980 के दशक से अलग गोरखालैंड राज्य का मुद्दा राजनीति पर हावी रहा है। इस मांग को लेकर हिंसक आंदोलन भी हुए हैं। 2017 में 100 दिन की आर्थिक नाकेबंदी के दौरान 11 लोगों की जान चली गई थी। 2019 में भाजपा ने 11 पहाड़ी समुदायों को आदिवासी दर्जा देने का वादा किया, लेकिन यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया।

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