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यहां रावण जलाना मना है... देश के इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा, चौंका देगी वजह

Dussehra Banned in Meerut Village: देश में एक गांव ऐसा भी है, जहां दशहरा मनाने पर पाबंदी लगी है। इस गांव के लोग दशहरे पर मातम मनाते हैं। 166 साल से इस गांव में रावण का पुतला नहीं फूंका गया है।
11:28 AM Oct 12, 2024 IST | Sakshi Pandey
यहां रावण जलाना मना है    देश के इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा  चौंका देगी वजह

Dussehra Banned in Meerut Village: आज पूरे देश में दशहरे का पर्व काफी धूमधाम से मनाया जा रहा है। दशहरे को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है। इस दौरान देश के कई शहरों में रावण के बड़े-बड़े पुतले फूंके जाते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि एक गांव ऐसा भी है, जहां दशहरे पर मातम का माहौल रहता है। दशहरे के दिन गांव के किसी भी घर में चूल्हा तक नहीं जलता है। यहां रावण दहन नहीं होता और न ही कोई मेला लगता है। आखिर ऐसा क्यों है?

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166 साल पुरानी कहानी

आप सोच रहे होंगे कि क्या इस गांव के लोगों को रावण से कोई हमदर्दी है? तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। आज से 166 साल पहले तक यहां दशहरा काफी धूमधाम से मनाया जाता था। मगर 166 साल पहले आखिर ऐसा क्या हुआ, जो गांव के लोगों ने दशहरा मनाना ही बंद कर दिया? 18 हजार की आबादी वाले इस गांव में कोई भी दशहरे पर खुश नहीं होता। आइए जानते हैं इसकी वजह क्या है?

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9 लोगों को दी गई थी फांसी

यह कहानी उत्तर प्रदेश के मेरठ में स्थित गगोल गांव की है। गगोल गांव मेरठ शहर से मात्र 30 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव की आबादी लगभग 18 हजार है। हालांकि बच्चों से लेकर बड़े और बूढ़े, सभी दशहरे पर दुखी हो जाते हैं। इसकी वजह है 9 लोगों की मौत। जी हां, 166 साल पहले गांव में मौजूद पीपल के पेड़ पर 9 लोगों को दशहरे के ही दिन फांसी दी गई थी।

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1857 की क्रांति से जुड़ा किस्सा

अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने वाली पहली क्रांति के बारे में आपने जरूर सुना होगा। 1857 की क्रांति ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी। रानी लक्ष्मीबाई से लेकर नाना साहेब और बेगम हजरतमहल जैसे कई लोगों ने अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी। हालांकि इस क्रांति की चिंगारी मेरठ से ही भड़की थी। लिहाजा मेरठ के गगोल गांव के 9 लोगों को दशहरे के दिन अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी।

गांव में आज भी है वो पीपल का पेड़

गांव के जिस पेड़ पर 9 लोगों को फांसी के फंदे से लटकाया गया था, वो पीपल का पेड़ आज भी वहां मौजूद है। उस पेड़ को देखते ही गांव के लोगों के जख्म हरे हो जाते हैं। गगोल का बच्चा-बच्चा इस कहानी से अच्छी तरह वाकिफ है। यही वजह है कि दशहरे पर इस गांव में खुशियों की बजाए मातम मनाया जाता है।

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