कहानी उस संत की, जिन्होंने गांधी जी को गिफ्ट किए थे 3 बंदर, दुनिया को दिया शांति का संदेश
Nichidatsu Fujii gifted 3 Monkeys to Mahatma Gandhi: आज पूरे देश में गांधी जयंती का पर्व मनाया जा रहा है। गांधी जी से जुड़ी अनेक कहानियां लोगों के बीच लोकप्रिय है। गांधी जी के 3 बंदरों का नाम भी इसी फेहरिस्त में शामिल है। हम बचपन से इनके बारे में पढ़ते आए हैं। तीनों बंदर बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो का संदेश देते हैं। मगर क्या आप इन बंदरों की कहानी जानते हैं? गांधी जी के पास ये तीन बंदर कहां से आए? अगर नहीं, तो आइए आज हम आपको इनसे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं।
जापान से आए गांधी जी के 3 बंदर
गांधी जी के 3 बंदरों की कहानी आज से लगभग 90 साल पहले शुरू हुई थी। यह बंदर जापान से आए थे। जी हां, यह कोई असली बंदर नहीं बल्कि बंदरों की मूर्तियां थीं, जो कि गांधी जी को तोहफे में मिली थीं। जापान के मशहूर बौद्ध भिक्षु निचिदात्सु फूजी ने तीन बंदरों की मूर्तियां गांधी जी को भेंट की थी।
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कौन थे निचिदात्सु फूजी?
जापान के एसो काल्डेरा के जंगलों में जन्में निचिदात्सु फूजी एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। 19 साल की उम्र में वो एक बौद्ध भिक्षु बन गए। 1917 में उन्होंने मिशनरी गतिविधियां शुरू की। हालांकि 1923 में जापान में भयानक भूकंप देखने को मिला। ऐसे में निचिदात्सु फूजी को जापान वापस लौटना पड़ा। कुछ साल बाद उन्होंने भारत आने का फैसला किया।
निचिदात्सु फूजी और गांधी जी की मुलाकात
1931 में निचिदात्सु फूजी कलकत्ता पहुंचे और पूरे शहर का चक्कर लगाया। भारत यात्रा के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी से मिलने का मन बनाया और वर्धा स्थित गांधी जी के आश्रम पहुंच गए। निचिदात्सु फूजी को आश्रम में देखकर गांधी जी भी बहुत खुश हुए। निचिदात्सु फूजी ने आश्रम की प्राथना में भी हिस्सा लिया। महात्मा गांधी से पहली मुलाकात पर उन्होंने 3 बंदरों की मूर्तियां भी गांधी जी को भेंट की। यह बंदर गांधी जी को इतना पसंद आए कि उन्होंने इस मूर्ति को अपनी टेबल पर रख दिया। गांधी से मिलने पहुंचे हर शख्स की नजर मेज पर रखे बंदरों पर जरूर जाती थी। देखते ही देखते मूर्ति 'गांधी जी के 3 बंदरों' के नाम से मशहूर हो गई।
शांति पगौड़ों की स्थापना
निचिदात्सु फूजी शांति पगौड़ों की स्थापना के लिए भी जाने जाते हैं। जापान के शहर हिरोशिमा और नागासाकी में उन्होंने पहले शांति पगौड़े स्थापित किए थे। यह वही शहर थे, जहां दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने परमाणु बम गिराए थे और जापान के 1,50,000 से ज्यादा नागरिकों की जान चली गई थी। इस तबाही से निचिदात्सु फूजी को गहरा धक्का लगा था। उन्होंने भारत जाने का फैसला कर लिया था।
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निचिदात्सु फूजी का निधन
भारत आने के बाद बिहार के राजगीर में भी उन्होंने शांति पगौड़ा बनवाया था। इसी जगह पर एक जापानी मंदिर भी मौजूद है। जापान की शैली में बने इस मंदिर में भगवान बुद्ध की सफेद रंग की खूबसूरत मूर्ति भी मौजूद है। 9 जनवरी 1986 को निचिदात्सु फूजी की मृत्यु हो गई। हालांकि उनकी मौत के बाद भी शांति पगौड़ों का निर्माण जारी रहा। साल 2000 तक यूरोप, एशिया और अमेरिका में 80 से ज्यादा शांति पगौड़ों की स्थापना की गई थी।
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