नायडू का लड्डू और नीतीश का मंदिर! बैसाखियों के दांव से सहमी बीजेपी, 'प्रसाद' की राजनीति ने बढ़ाई धड़कनें
Tirupati Laddu Controversy: एनडीए के दो नेताओं चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के दांव ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। तिरुपति मंदिर में जगन रेड्डी की सरकार के समय भगवान वेंकटेश्वर का प्रसाद बनाने में एनिमल फैट के कथित इस्तेमाल को लेकर आंध्र की राजनीति में तूफान मचा हुआ है। वहीं नीतीश कुमार ने अयोध्या से सीतामढ़ी तक ट्रेन चलाने की मांग करके बीजेपी को हैरान कर दिया है। यही नहीं नीतीश कुमार ने राम मंदिर निर्माण को लेकर पीएम मोदी की तारीफ भी की है और सीतामढ़ी में माता सीता के जन्मस्थान पुनौरा धाम के विकास के लिए खुद के द्वारा किए गए कामों को भी रेखांकित किया है। यहां यह बात ध्यान रखने वाली है कि नरेंद्र मोदी की केंद्रीय सत्ता नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन पर निर्भर है।
दोनों नेताओं के दांव से यह प्रतीत होता है कि जैसे दोनों बीजेपी के और करीब आ रहे हैं, लेकिन दोनों नेता अपने हिंदू वोट बैंक को अपने साथ मजबूती से जोड़े रखने की कवायद कर रहे हैं। ताकि दोनों राज्यों की सरकार में गठबंधन का हिस्सा बीजेपी उनके हिंदू वोट बैंक में सेंध न लगा पाए।
वैसे तो चंद्रबाबू नायडू के तिरुपति का मुद्दा उठाने से सबसे ज्यादा नुकसान जगनमोहन रेड्डी को माना जा रहा है, लेकिन इस मुद्दे से टीडीपी को अपने हिंदू वोट बैंक को लंबे समय तक साधे रखने में मदद मिलेगी। नायडू ने ऐसा दांव मारा है कि जगन रेड्डी पछाड़ खाकर गिर पड़े हैं। नायडू न केवल लड्डू का मुद्दा उठा रहे हैं, बल्कि बिना हलफनामा दिए तिरुपति मंदिर में प्रवेश को लेकर जगन रेड्डी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
जगन रेड्डी चारों खाने चित
नायडू ने बीते दिनों कहा था कि जगन रेड्डी क्रिश्चियन हैं, और तिरुपति मंदिर में एंट्री से पहले गैर हिंदुओं को हलफनामा देना पड़ता है कि वे भगवान वेंकटेश्वर को मानने वाले हैं। तिरुपति स्थित भगवान वेंकटेश्वर को ज्यादा उदार और सार्वभौमिक माना जाता है। इसलिए नायडू चाहते हैं कि जगन रेड्डी कभी वापसी नहीं कर पाएं। इस प्रक्रिया में नायडू को श्रद्धालुओं का भी समर्थन मिल रहा है।
नायडू के तिरुपति का मुद्दा उठाने से 2024 चुनाव के पहले जगन रेड्डी का समर्थन हासिल करने वाली बीजेपी भी नायडू का समर्थन करने को मजबूर है।
नायडू के धार्मिक मुद्दे पर चली चाल से बीजेपी के करीबी सहयोगी जनसेना पार्टी के पवन कल्याण भी अछूते नहीं हैं। नायडू की कोशिश है कि पवन कल्याण को हिंदू चेहरे के तौर पर उभरने से रोका जाए। यही वजह है कि तिरुपति मामला सामने आने के बाद पवन कल्याण सबसे ज्यादा एक्टिव हैं। उन्होंने सनातन धर्म रक्षण बोर्ड बनाने की मांग कर दी है। ताकि मंदिरों से जुड़े सारे मुद्दे बोर्ड के हाथों में हों, और इनका समाधान भी बोर्ड ही करें।
पवन कल्याण पर भी है टीडीपी की नजर
लड्डू विवाद के बाद पवन कल्याण ने 11 दिन की प्रायश्चित दीक्षा शुरू कर दी है। मंगलवार को विजयवाड़ा स्थित कनक दुर्गा मंदिर में पवन कल्याण ने सीढ़ियों की सफाई की। वहीं गुंटूर स्थित दशावतार वेंकटेश्वर मंदिर में वह प्रायश्चित दीक्षा को पूरा कर रहे हैं।
2020 में कल्याण और बीजेपी ने धर्म रक्षण दीक्षा नाम से संयुक्त उपवास कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम का ऐलान आंध्र में मंदिरों पर कथित हमले के बाद शुरू किया गया था। हालांकि पवन कल्याण पर टीडीपी नेताओं की भी नजर है, जो एनटीआर को फॉलो करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हीं की तरह भगवा धारण करने और गले में पटका लगाए दिख रहे हैं।
पवन कल्याण के साथ बीजेपी के झुकाव को इस तरह से समझिए कि लोकसभा चुनाव 2024 के बाद आंध्र प्रदेश में एनडीए की मीटिंग के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पवन नहीं आंधी है। बीजेपी नेताओं का भी मानना है कि पार्टी के समर्थकों में पवन कल्याण का क्रेज है और जनसेना नेता बीजेपी लीडरशिप के विश्वास पात्र भी हैं।
बिहार में नीतीश की गुगली
यह पहली बार होगा, जब नीतीश कुमार ने सीधे तौर पर राम मंदिर निर्माण के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ की होगी, लेकिन इसके साथ ही नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी में अपनी सरकार द्वारा किए काम को भी गिनाया है। दरअसल नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से अयोध्या और सीतामढ़ी के बीच डायरेक्ट ट्रेन चलाने की मांग की है। नीतीश कुमार के राम-सीता प्रेम से बिहार बीजेपी सहम गई है।
बीजेपी को लगता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाली जेडीयू के नेता बीजेपी के वोट बैंक को अपनी ओर खींचना चाहते हैं। अयोध्या पर नीतीश की टिप्पणी इसलिए भी निर्णायक है, क्योंकि पिछले आठ महीनों में नीतीश कुमार ने अयोध्या पर कभी खुलकर नहीं बोला, बल्कि शांत रहे। आठ महीने बाद नीतीश अब खुलकर राम मंदिर निर्माण की तारीफ करने लगे हैं, जाहिर है कि बीजेपी को चौंकना ही था।
माता सीता और महिला वोट
हालांकि माता सीता को लेकर नीतीश कुमार की राजनीति अलग रही है। देखने में ऐसा लगेगा कि नीतीश कुमार, बीजेपी को फॉलो कर रहे हैं, लेकिन बिहार में माता सीता को आगे करके रामायण सर्किट और टूरिज्म को बढ़ावा देकर नीतीश ने अपने वोट बैंक को साधा है। माता सीता को स्त्री सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है, और बिहार में महिलाओं को नीतीश कुमार का समर्थक।
शराबबंदी का फैसला नीतीश कुमार ने बिहार में लंबे समय तक चले महिलाओं के आंदोलन के बाद ही लिया है। भले शराबबंदी के सफल या असफल होने को लेकर नीतीश की आलोचना होती हो, लेकिन उन्होंने कभी नहीं दिखाया कि उन्हें अपने फैसले पर तनिक भी संदेह है। लगातार चुनावों में जेडीयू को मिली सफलता इसकी पुष्टि करती है।