जम्मू-कश्मीर में किसकी पकड़ मजबूत तो कौन है कमजोर, जानें क्या बन रहा राजनीतिक समीकरण?
(आसिफ सुहाफ, श्रीनगर)
Jammu kashmir Assembly Election 2024 : जम्मू-कश्मीर में 10 साल के बाद आखिरकार विधानसभा चुनाव का ऐलान हो गया। इसे लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारी तेज कर दी। जम्मू-कश्मीर में किसकी राजनीतिक जमीन मजबूत है और कौन सा दल कमजोर है? इसका अंदाजा हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव से लगाया जा सकता है। हालांकि, लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में मुद्दे और मकसद अलग-अलग होते हैं, इसलिए यह जरूरी भी नहीं है कि जो नतीजे लोकसभा चुनाव में आए थे, वही परिणाम विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेंगे।
लोकसभा चुनाव के दौरान जम्मू-कश्मीर में एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन के बीच सीधा-सीधा मुकाबला था। एक तरफ नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन था तो दूसरी तरफ बीजेपी थी। लोकसभा चुनाव के नतीजों से पता चला कि जहां कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस मजबूत है तो वहीं जम्मू में बीजेपी। इसी तरह विधानसभा चुनाव में भी नेशनल कांफ्रेंस और बीजेपी दो मजबूत दावेदार नजर आ रही हैं।
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जानें फारूक-उमर अब्दुल्ला का क्या है प्लान?
नेशनल कांफ्रेंस घाटी में मजबूत है और फारूक अब्दुल्ला चुनावी कमान अपने पास रखना चाहते हैं। वहीं, उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि वह तब तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा। अब उमर अब्दुल्ला पार्टी के दबाव और पिता की तबीयत का हवाला देकर अपने पिछले संकल्प पर फिर से विचार करने की बात कह रहे हैं। पिता-पुत्र दोनों इस चुनाव में अपनी ताकत झोंकने के मूड में हैं, ताकि विरोधियों को जीत का कोई मौका न मिल सके।
PDP के लिए अस्तित्व की है लड़ाई
पिछले विधानसभा चुनाव 2014 में सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली PDP अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने जा रही है। लोकसभा चुनाव में PDP की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और उनके अन्य दो प्रत्याशी बुरी तरह से हार गए थे, लेकिन उसके बाद पार्टी के कुछ बागी नेता वापस पार्टी में शामिल हुए। अब जब महबूबा मुफ्ती ने खुद विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया तो ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। पार्टी को उम्मीद है कि साउथ कश्मीर में पीडीपी के उम्मीदवार जीतेंगे।
जमात इस्लामी के वोट बैंक पर किसकी नजर?
पीडीपी की नजरें जमात इस्लामी के वोट बैंक पर हैं। हालांकि, जमात-ए-इस्लामी ने घाटी में चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी और बीजेपी की सहयोगी पार्टी अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी के सहारे अपने ऊपर लगे प्रतिबंध को हटवाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें निराशा का ही सामना करना पड़ा। अब पीडीपी उनसे बात करके उनके वोट को अपनी तरह खींचने की कोशिश कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ जमात के वोट बैंक पर अपनी पार्टी और इंजीनियर रशीद की पार्टी AIP (अवामी इत्तेहाद पार्टी) की भी नजर है।
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कांग्रेस ने बनाई रणनीति?
जम्मू में कांग्रेस की सीधी टक्कर बीजेपी के साथ है। ऐसे में इस बार कांग्रेस की कश्मीर में भी कुछ पारंपरिक सीटों पर नजर है। ऐसे में पार्टी चाहती है कि कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन हो जाए और अगर एनसी नहीं मानती है तो पीडीपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है। यही कारण है कि चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया। इस बीच फारूक अब्दुल्ला ने अपना बयान बदलते हुए कहा कि वे कांग्रेस के साथ अलायंस को लेकर पार्टी में बातचीत करने के बाद फैसला लेंगे।