जेल में ही सड़ेगा दुधमुंही बच्ची का गुनाहगार दुराचारी दादा; निर्भया कांड से जोड़ लद्दाख HC ने कही बड़ी बात
लद्दाख: जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 1 साल की दुधमुंही पोती के साथ दुराचार करने वाले दुराचारी बुड्ढे को जम्मू-कश्मीर
और लद्दाख हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। दुराचारी जेल में ही सड़ेगा। इसी के साथ अदालत के पीठासीन न्यायाधीशों की तरफ से सबसे भयावह दिल्ली के निर्भया कांड से जोड़ते हुए बड़ी टिप्पणी भी की है। उन्होंने इस बात पर गहरा दुख जताया है कि इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले इस कांड के बाद भी हमारे समाज की हकीकत आज भी वहीं खड़ी है, जहां एक दशक पहले थी।
वाकया निर्भया कांड से एक साल पहले 2011 का है, जब जम्मू-कश्मीर के एक इलाके में एक बुजुर्ग अपनी दुधमुंही पोती के साथ अमानवीय कृत्य करके भाग गया था। लहूलुहान हालत में रो रही बच्ची को लेकर जब परिवार के लोग नजदीकी अस्पताल लेकर पहुंचे तो डॉक्टर ने बच्ची का हाइमेन फटा होने और जननांग के आसपास चोट के चलते दुष्कृत्य की आशंका जताई जताई थी।
मामला न्यायालय पहुंचा तो बुड्ढे को उम्रकैद की सजा हुई, जिसे 2013 में उसने रणबीर दंड संहिता की धारा 376 (2) (एफ) के तहत चुनौती दे डाली। बुजुर्ग ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि शिकायतकर्ता के साथ उसकी लंबे समय से दुश्मनी चली आ रही है, जिस कारण उसे गलत तरीके से फंसाया गया था। इस मामले की सुनवाई के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट की जस्टिस संजय धर और जस्टिस राजेश सेखड़ी की न्यायपीठ ने न सिर्फ दोषी दुराचारी की सजा के फैसले को बरकरार रखा है, बल्कि कड़ी टिप्पणी की है।
इंसानी जज्बातों को हिला देने वाली है ये टिप्पणी
हाईकोर्ट के जजों ने कहा कि आज भी हमारा समाज महिलाओं को उचित सम्मान नहीं देता है। यह चिंता का विषय है कि दिल्ली में चलती बस में युवती के बर्बर घटना (निर्भया कांड) के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। महिलाओं को जीवन, स्वतंत्रता, सम्मान और समानता का अधिकार है। उनकी गरिमा और सम्मान से कोई खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। महिलाएं कई जिम्मेदारियां निभाती हैं, वो मनोरंजन की वस्तु नहीं हैं। अफसोस की बात है कि हमारे देश में महिलाओं के प्रति सम्मान तेजी से घट रहा है। छेड़छाड़, अनादर और बलात्कार की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं।
प्रमुख गवाह के विवरण को बेहद विश्वसनीय करार देते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर कोई घटना का प्रत्यक्षदर्शी है और वह अदालत में गवाही देता है तो फिर घटना के वक्त आरोपी की भावना क्या थी, इसका बहुत महत्व नहीं रह जाता है। यौन संतुष्टि की विकृत इच्छा और विचलित मानसिकता के कारण इंसान इस तरह के जघन्य कृत्यों को अंजाम देता है। एक बुड्ढा इस तरह की अमानवीय भावनाओं के आगोश में आकर एक साल की पोती को भी नहीं बख्सता है, यह बेहद भयावह है। वहीं कोर्ट ने कहा, ‘एक बलात्कार पीड़िता का इलाज करने वाला डॉक्टर केवल हाल की यौन गतिविधियों के संकेतों की पुष्टि कर सकता है। यह निर्धारित करना कि क्या बलात्कार हुआ, उनके दायरे से बाहर है। यह न्यायपालिका का फैसला है। डॉक्टर कभी इसकी गारंटी नहीं दे सकते कि हाइमेन फटने या जननांग पर चोट का कारण बलात्कार ही है’।