Kargil Vijay Diwas: ऐतिहासिक विजय की 25वीं जयंती, कारगिल के 4 हीरो जिनकी कहानी सुन चौड़ा हो जाएगा सीना
Kargil War Heroes : 26 जुलाई का दिन हमारे देश में हर साल 'कारगिल विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पूरा भारत अपने उन वीर जवानों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने कारगिल के युद्ध में देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। यह दिन ऑपरेशन विजय की सफलता की निशानी के तौर पर भी याद किया जाता है जिसे कारगिल द्रास क्षेत्र में उन इलाकों को फिर से अपनी सीमा में लाने के लिए लॉन्च किया गया था जिन पर पाकिस्तान ने गैरकानूनी रूप से कब्जा कर लिया था। बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच यह युद्ध मई 1999 से जुलाई 1999 तक चला था।
कारगिल युद्ध के दौरान हमारी सेना के जवान इसलिए बलिदान हो गए थे ताकि बाकी पूरा देश रात में शांति के साथ सो सके। उनकी बहादुरी, पैशन और साहस की कहानियां बेहद अद्भुत हैं। इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कारगिल युद्ध के पांच ऐसे हीरोज के बारे में जिनके साहस की गाथा जानकर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। इनकी कहानियां न केवल हमें देशभक्ति के जज्बे का अहसास कराती हैं साथ ही उनका बलिदान आंखों को नम भी कर जाता है। आइए जानते हैं इस युद्ध में अपनी वीरता से पाकिस्तान की सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर देने वाले भारतीय सेना के ऐसे ही 4 अमर शहीदों के बारे में।
1. कैप्टन विक्रम बत्रा (परमवीर चक्र, मरणोपरांत)
9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में गिरधारी लाल बत्रा और कमला कांता के यहां विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था। उनके पिता एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे और मां टीचर थीं। उनकी बटालियन 13 जम्मू-कश्मीर रायफल्स को 5 जून 1999 को जम्मू-कश्मीर के द्रास के लिए रवाना होने का आदेश मिला। उस समय विक्रम बत्रा लेफ्टिनेंट थे। युद्ध शुरू होने के बाद उन्होंने पीक 5140 को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद कराने में अहम रोल निभाया था। मिशन के दौरान उन्होंने अपने सक्सेस सिग्नल के रूप में 'ये दिल मांगे मोर' स्लोगन चुना था।
यह मिशन को पूरा करने के बाद वह पीक 4875 को आजाद कराने के लिए एक और मिशन पर चल दिए। कहा जाता है कि यह उन सबसे कठिन मिशन में से एक है जो भारतीय सेना ने अटेंप्ट किए हैं। जंग में उनके एक साथी को गोली लग गई। उसे बचाने के लिए उन्होंने मोर्चा संभाला और दुश्मन की पोजिशंस का सफाया करते हुए शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। विक्रम बत्रा जब भी छुट्टियों पर घर जाते थे तो कहा करते थे, 'या तो मैं तिरंगा लहराते हुए वापस आऊंगा या तिरंगे में लिपटा हुआ, लेकिन वापस जरूर आऊंगा।'
2. कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय (परमवीर चक्र, मरणोपरांत)
1/11 गोरखा रायफल्स के सैनिक मनोज कुमार पाण्डेय का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के एक गांव में 25 जून 1975 को हुआ था। उनके पिता के अनुसार मनोज ने सेना इस लक्ष्य के साथ जॉइन की थी कि वह एक दिन परमवीर चक्र से सम्मानित किए जाएंगे। उनका यह सपना उनके निधन के बाद पूरा हुआ। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन पाण्डेय की टीम को दुश्मन सैनिकों का सफाया करने का टास्क दिया गया था।
लड़ाई के दौरान गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने मिशन जारी रखा और उन्हीं की हिम्मत का नतीजा था कि हमने बटालिक सेक्टर में जौबर टॉप और खालूबार हिल को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद कराकर वहां फिर से तिरंगा लहरा दिया। अपने एसएसबी इंटरव्यूी में कैप्टन पाण्डेय से पूछा गया था कि वह सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं। इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं।
3. लेफ्टिनेंट बलवान सिंह (महावीर चक्र)
अक्टूबर 1973 में हरियाणा के रोहतक जिले में बलवान सिंह का जन्म हुआ था। 2 जुलाई 1999 को लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को टास्क दिया गया कि वह अपनी घातक प्लाटून के साथ टाइगर हिल पर दुश्मन का मुकाबला उत्तर-पूर्वी डायरेक्शन की ओर से करें। यह भारत की रणनीति का एक हिस्सा था। यह पॉइंट 16,500 फीट की ऊंचाई पर था। लेकिन सर्विस में केवल 3 महीने बिताने वाले इस जवान ने अपनी टीम को साथ लिया और 12 घंटे से ज्यादा के बेहद कठिन सफर को पूरा कर अपनी जगह पहुंच गए।
जिस तरह से उनकी टीम वहां पहुंची उससे दुश्मन के होश उड़ गए। इस दौरान शुरू हुई गोलीबारी में लेफ्टिनेंट बलवान सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन उनकी बंदूक से गोलियां निकलनी बंद नहीं हुईं। दुश्मन सैनिकों को घेरते हुए उन्होंने उनका सफाया कर दिया। बुरी तरह घायल होने के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान के चार सैनिकों को ढेर कर दिया था। उनकी इस सफलता ने टाइगर हिल को कैप्चर करने के मिशन की सफलता में अहम भूमिका निभाई थी। इसके लिए उन्हें महावीर चक्र से नवाजा गया था।
4. मेजर राजेश सिंह अधिकारी (महावीर चक्र, मरणोपरांत)
दिसंबर 1970 में नैनीताल में केएस अधिकारी और मालती अधिकारी के यहां राजेश सिंह अधिकारी का जन्म हुआ था। तब नैनीताल उत्तर प्रदेश में आता था, अब यह उत्तराखंड का हिस्सा है। 30 मई 1999 को उनकी बटालियन 18 ग्रेनेडियर्स को टोलोलोंग टॉप को कैप्चर करने के मिशन में इसके अग्रिम मोर्च पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। करीब 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस पॉइंट पर पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी स्थिति मजबूत बना रखी थी।
जब वह अपनी कंपनी को लीड कर रहे थे तभी दुश्मन ने यूनिवर्सन मशीन गनों से फायरिंग शुरू कर दी। मेजर राजेश सिंह ने तुरंत रॉकेट लॉन्चर डिटैचमेंट को दुश्मन की पोजिशन इंगेज करने का निर्देश दिया और बिना इंतजार किए आक्रामक पोजिशन में आ गए। इस दौरान करीबी लड़ाई में उन्होंने 2 दुश्मन सैनिकों को ढेर कर दिया। इसके बाद दुश्मन ने उनकी तबाही और भी ज्यादा करीब से देखी। हालांकि, इस दौरान वह भी गंभीर रूप से घायल हो गए।