Karnataka Assembly Election 2023: कर्नाटक चुनाव में किसे मिलेगी 'बजरंगबली' की संजीवनी, यहां देखें स्पेशल रिपोर्ट

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Karnataka Assembly Election 2023

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Karnataka Assembly Election 2023: कर्नाटक के चुनावी अखाड़े में टॉप पर कौन सा मुद्दा है? इसे लेकर पॉलिटिकल पंडितों के बीच बहुत कन्फ्यूजन बना हुआ था। लेकिन, इस हफ्ते की शुरुआत के साथ ही कर्नाटक के चुनावी दंगल में बजरंग बली का मुद्दा सेंटर स्टेज में आ गया। दरअसल, कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में बजरंग दल जैसे संगठनों पर प्रतिबंध का जिक्र किया। इसके साथ ही कर्नाटक के सियासी अखाड़े में बजरंग बली की एंट्री हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली में भाषण की शुरुआत बजरंग बली की जय के साथ किया। इसके बाद कर्नाटक में जगह-जगह बीजेपी के नेता हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे। 10 मई को वोटिंग से पहले अचानक कर्नाटक के चुनावी अखाड़े में बजरंग बली ट्रेंड करने लगें और इसमें भ्रष्टाचार का मुद्दा पीछे छूटता दिख रहा है। बजरंग बली के नाम पर कर्नाटक में चुनावी हवा एकाएक इतनी गर्म हो गई है कि कांग्रेस के बड़े नेता पूरे सूबे में अब हनुमान मंदिर बनाने और जीर्णोद्धार का वादा कर रहे हैं।

ऐसे में आज मैं News24 की एडिटर इन चीफ अनुराधा प्रसाद आपको बताने की कोशिश करूंगी कि चुनाव में बजरंग बली पर राजनीति करने से किसका फायदा होगा? क्या चुनावी घोषणा पत्र में कांग्रेस ने बजरंग शब्द जोड़ कर सेल्फ गोल कर लिया है? क्या जान-बूझकर कर्नाटक के वोट युद्ध में बजरंग बली के मुद्दे को ड्राइविंग सीट पर लाया गया? आखिर चुनावी मौसम में बजरंग बली की जाति क्यों खोजी जाने लगती है? (Ambien)   कोई उन्हें वनवासी, कोई दलित…कोई मुस्लिम क्यों बताता है? बजरंग बली का आखिर कर्नाटक से क्या कनेक्शन है? वो हमारे समाज और सियासतदानों को कौन सा रास्ता दिखाते हैं? उनमें ऐसा क्या है, जिससे वो सबके आराध्य बन जाते हैं। सबके संकटमोचक के रूप में खड़े दिखते हैं? ऐसे सभी सवालों के जवाब तलाशता शो- किसके बजरंग बली में।

आम आदमी के लिए बजरंगबली के मायने क्या?

भारत में एक सामान्य आदमी के लिए बजरंगबली के मायने क्या हैं? एक ऐसे देवता जो असंभव को संभव में बदलने की क्षमता रखते हैं। एक ऐसे देवता जो समर्पण और त्याग का दूसरा नाम है। एक ऐसे देवता जो हमेशा एक्शन में रहते हैं। एक ऐसे देवता जिनकी लीडरशिप क्वालिटी में सबको अपना कल्याण दिखता है, जो कूटनीतिज्ञों के कूटनीतिज्ञ हैं। जो सबसे बड़े मैनेजमेंट गुरु हैं। जो अष्ट सिद्धि और नौ निधि के दाता हैं। जो सर्वशक्तिमान होने के बाद भी विनम्र हैं, जो सबकी बात सुनते हैं और सबकी समस्याओं के समाधान में खुद को झोंक देते हैं। लेकिन, वोट बैंक पॉलिटिक्स बजरंग बली में भी अपने लिए संभावना तलाशती दिख रही है। कर्नाटक के चुनावी अखाड़े में इन दिनों बजरंग बली के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण की तूफानी कोशिश हो रही है। खुद प्रधानमंत्री मोदी चुनावी सभाओं में अपने भाषण की शुरुआत बजरंग बली के शंखनाद के साथ कर चुके हैं।

मुखर हिंदुत्व की प्रयोगशाला है कर्नाटक

कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में बात बजरंग दल की। बीजेपी ने पूरी चतुराई के साथ उसे बजरंग बली की ओर शिफ्ट कर दिया। राजनीति में हर मौके को भुनाना और अपने पक्ष में नैरेटिव बनाना भी एक कला है। इसमें बीजेपी महारथियों को महारत हासिल है। बजरंग बली के नाम पर जिस तरह से लहर बनाने की कोशिश हो रही है, इसका बीजेपी को कितना फायदा मिलेगा। इस सवाल के जवाब के लिए अभी कुछ दिन इंतजार करना होगा। लेकिन, एक बात साफ है कि कर्नाटक का सामाजिक समीकरण हिंदुत्व की राजनीति के लिए एक मुखर प्रयोगशाला की तरह रहा है। ऐसे में 2018 के चुनावों में आक्रमक छवि वाले बजरंग बली की छवि के पोस्टर और स्टिकर छाए रहे। दरअसल, आक्रामक मुद्रा वाले हनुमान की छवि बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत दूसरे हिंदुत्ववादी संगठनों के सांचे में बिल्कुल फिट बैठती है। समय चक्र और सियासत की धारा ने इस तस्वीर के साथ पुरुषत्व और गर्व को जोड़ दिया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि बीजेपी हनुमान जी के Can do attitude की तरह काम करती है। साल 2020 के दिल्ली चुनावों में भी हनुमान जी चर्चा में आ गए थे। तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मैंने एक इंटरव्यू किया था और उनसे हनुमान चालीसा सुनाने के लिए कहा। आपको भी हनुमान जी के नाम पर भारत के भीतर आकार लेने वाली सियासत को फ्लैशबैक में जाकर समझना चाहिए।

करण आचार्य ने बनाई थी उग्र बजरंगबली की तस्वीर

भगवा और काले रंग से बनी बजरंग बली की तस्वीर। जिसमें उनकी भौंह तनी हैं, त्यौरियां चढ़ीं हैं। बजरंग बली की यह छवि जोश से लबरेज एक चित्रकार की कल्पना भर थी, जिनका नाम करण आचार्य है। ये भी एक संयोग है कि करण आचार्य का जन्म कर्नाटक की जमीन पर हुआ। बजरंग बली की जन्मभूमि भी कर्नाटक के कोप्पल जिले में अंजनाद्री पहाड़ियों को माना जाता है। करण आचार्य ने कुछ अलग गढ़ने की चाह में 2015 में ही हनुमान जी की अलग तस्वीर दुनिया के सामने रखी। वो भी दोस्तों के कहने पर। शुरुआती दौर में बजरंग बली का नया अवतार चर्चा से दूर रहा, पर करीब ढाई साल बाद उग्र बजरंग बली की तस्वीर कर्नाटक से होते हुए देश के हर हिस्से में दिखने लगी। गाड़ियों के पीछे, पोस्टर में, दीवारों पर, स्टीकर के तौर पर। जिस तस्वीर को राजनीति और समाज ने वानर रूप में पूजे जाने वाले भगवान के उग्र रूप के तौर पर देखा, उसे कलाकार ने तो सिर्फ उनके जीवन दर्शन को समझते हुए उनके एटीट्यूड को दिखाने की कोशिश की थी। खैर, राजनीति समय चक्र के साथ अपने लिए संभावनाएं तलाशती रहती है। तलाशती रहेगी लेकिन, भारतीय समाज ने हमेशा से ही बजरंग बली के जीवन चरित्र में अपना कल्याण देखा है। क्योंकि, वो बल, बुद्धि और विद्या तीनों के जरिए हर क्लेश और विकार पर विजय पाने की प्रेरणा देते हैं।

अपराजेय हैं बजरंगबली

हमारे पौराणिक ग्रंथों में बजरंग बली एक ऐसे देवता हैं, जिनकी शक्तियों की कोई सीमा नहीं। वो अपराजेय हैं लेकिन, मर्यादा कभी नहीं तोड़ते। हमेशा अनुशासित रहते हैं। ज्यादातर तस्वीर और मूर्तियों में हनुमान जी को गदा के साथ दिखाया गया है। पर उनके हाथ में हथियार के रूप में गदा कैसे आईं?  इसका संभवत: कोई ठोस प्रमाण नहीं है। जहां तक मैं गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस को समझ पाई हूं। उसमें भी हनुमान जी के हथियार के तौर पर गदा का जिक्र नहीं है। ऐसे में बानर रूपी ये देवता युद्ध में थप्पड़, मुक्का, लात, पूंछ का इस्तेमाल करते हैं। वो अपने आस-पास मौजूद चीजों को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। रामायण, रामचरितमानस समेत दुनिया भर में प्रचलित रामकथाओं में हनुमान जी के चरित्र को इतना मुखर और प्रखर रखा गया है, जिसमें वो श्रीराम के आदर्शों को आगे बढ़ाने में अहम किरदार निभाते दिखते हैं। इतना ही नहीं, वो तपस्वी राजा यानी मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सहयोगी के रूप में साथ खड़े दिखते हैं। उनका चरित्र किसी भी इंसान को मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में खुद के बहुमुखी विकास की भी राह दिखाता है। वो मिशन के लिए लोगों को आखिरी सांस तक जूझने की प्रेरणा देते हैं।

कॉरपोरेट कंपनियां भी हनुमान जैसे गुणों वाला मैनेजर चाहती हैं

हजारों साल से भारतीय जनमानस के बीच बजरंग बली की जो छवि पेश की गई है, उसमें वीरता है साहस है सेवाभाव है स्वामिभक्ति है सौम्यता है समर्पण है विनम्रता है कृतज्ञता है। वो समंदर लांघने जैसा मुश्किल काम कर देते हैं। अकेले ही पूरी लंका जला देते हैं। परिस्थितियों के हिसाब से राक्षसराज रावण की अशोक वाटिका में माता सीता के सामने छोटे रूप में प्रकट होते हैं, तो राक्षसों के संहार के लिए काल बन जाते हैं। मुश्किल से मुश्किल डेडलाइन को हंसते हुए पूरा करने की क्षमता रखते हैं। ये उनकी समझ, सामर्थ्य और फुर्ती का ही कमाल है कि युद्ध में घायल लक्ष्मण की जान बचाने के लिए तमाम बाधाओं को पार करते हुए संजीवनी पर्वत उठा लाते हैं। ये हनुमान जी के कर्म पथ से निकलता अद्भुत जीवन दर्शन ही है। जिसमें बिजनेस स्कूल अपने छात्रों को बजरंग बली जैसा टारगेट ओरिएंटेड और लीडरशिप क्वालिटी से लैस बनाने की कोशिश करते दिखते हैं। आज की तारीख में बड़ी-बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां भी हनुमान जी जैसे गुणों से लैस मैनेजर चाहती हैं, जिनका एनर्जी लेबल हमेशा हाई हो, जो खुद बल, बुद्धि और विद्या से लैस हों। जो पूरी तरह समर्पित हो, जिसके लिए काम बोझ नहीं जिम्मेदारी हो, जो टीम के सभी सदस्यों को साथ लेते हुए आगे बढ़ने में यकीन रखते हों। सभी गुणों से संपन्न होने के बाद भी उनके मन, कर्म और वचन से विनम्रता टपकती हो। क्योंकि, इसी में मानवता, समाज और देश सबकी तरक्की का मंत्र छिपा है।

स्क्रिप्ट और रिसर्च : विजय शंकर

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