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इस लोकसभा सीट पर अलग ही परीक्षा, वोट पाने के लिए नेताओं को सीखनी पड़ती हैं 5 भाषाएं

कासरगोड लोकसभा चुनाव: केरल की एक लोकसभा सीट ऐसी है जहां पर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए कई भाषाएं सीखनी पड़ती हैं। दरअसल, यहां के मतदाता देश के अलग-अलग हिस्सों से हैं और उसी हिसाब से उनकी बातचीत में भाषाएं बदल जाती हैं। ऐसे में वोटर्स के साथ सही से संवाद करने के लिए प्रत्याशियों के लिए कई भाषाएं सीखना जरूरी हो जाता है।
02:12 PM Apr 07, 2024 IST | Gaurav Pandey
कासरगोड में चुनाव प्रचार करतीं भाजपा प्रत्याशी एमएल अश्विनी
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Kasargod Lok Sabha Election : चुनाव लड़ने के लिए किसी व्यक्ति को कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। पहले उसे नामांकन फॉर्म भरना पड़ता है जिसमें अपनी संपत्ति से लेकर आपराधिक मामलों तक की हर जानकारी देनी पड़ती है। इसमें जरा सी भी चूक नामांकन खारिज कर सकती है। इसके बाद जनता की कसौटी पर खरा उतरना होता है। यह लगभग हर उस जगह पर नियम की तरह है जहां चुनाव हो रहा है। लेकिन केरल की एक लोकसभा सीट ऐसी है जहां के उम्मीदवारों को भाषा की चुनौती से भी निपटना पड़ता है।

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हम बात कर रहे हैं केरल के उत्तरी लोकसभा क्षेत्र कासरगोड की। यहां के उम्मीदवारों को कभी वोट के लिए हिंदी में अपील करते हुए तो थोड़ी ही देर बाद मलयालम और कन्नड़ जैसी भाषाओं में बात करते हुए देखा जा सकता है। दरअसल यह क्षेत्र भाषाई आधार पर बहुत विविध है। यहां बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें मलयालम और कन्नड़ में से दोनों भाषाएं नहीं जानते। इसलिए प्रत्याशियों के सामने मतदाताओं से संवाद करने में बड़ी दिक्कत होती है, जिसके लिए उन्हें खूब तैयारी करनी पड़ती है।

कहीं पर कन्नड़ का जोर तो कहीं पर मलयालम

बता दें कि त्रिक्करीपुर, कान्हांगद और होसदुर्ग की मातृभाषा मलयालम है। कासरगोड, कुंबले, मजेश्वर और उप्पला इलाकों में कन्नड़ प्रचलित है। यहां हजारों की संख्या में मराठी परिवार बसे हुए हैं। मुसलमान उर्दू बोलते-समझते हैं और तटीय कर्नाटक व गोवा के लोग कोंकड़ी व तुलु भाषा में बातचीत करते हैं। यहां पर चुनाव में जीत हासिल करने के लिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि प्रत्याशी मतदाताओं के साथ अच्छे से संवाद कर सके। इसके लिए उम्मीदवारों को कई भाषाएं सीखनी पड़ती हैं।

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कांग्रेस सांसद ने जीतने के बात सीखीं 5 भाषाएं

कासरगोड से भाजपा ने एमएल अश्विनी को टिकट दिया है। यहां मौजूदा सांसद कांग्रेस के राज मोहन उन्नीथन हैं। उन्नीथन को मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी पहले से आती थी। लेकिन चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कन्नड़, कोंकड़ी, मराठी, उर्दू और तुलु भाषा भी सीखी। भाजपा प्रत्याशी अश्विनी ने भी यहां के हिसाब से तैयारी कर रखी है और उन्हें कई भाषाओं में वोटर्स से बात करते हुए और वोट देने की अपील करते देखा जा सकता है। ऐसे में इस सीट पर प्रत्याशियों को एक्स्ट्रा मेहनत करनी पड़ती है।

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