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महाभारत के विलेन कैसे बने देवता? कौरवों के 101 मंदिर, जहां होती है सभी की पूजा

Kerala Kollam Kauravas Temple including Duryodhana: कौरवों को महाभारत का विलेन कहा जाता है। मगर केरल के एक गांव में कौरवों के 101 मंदिर मौजूद हैं। इसके अलावा कर्ण और शकुनि समेत महाभारत के कई पात्रों को केरल में भगवान की तरह पूजा जाता है।
02:35 PM Jul 14, 2024 IST | Sakshi Pandey
महाभारत के विलेन कैसे बने देवता  कौरवों के 101 मंदिर  जहां होती है सभी की पूजा

Kerala Kollam Kauravas Temple including Duryodhana: महाभारत में कौरवों को विलेन के रूप में दर्शाया गया है। कौरवों का नाम आते ही अक्सर लोगों के मन में गुस्सा भर जाता है। मगर क्या आप जानते हैं कि केरल के एक गांव में कौरवों की पूजा की जाती है। कौरवों के राजा यानी दुर्योधन के साथ-साथ केरल में कौरवों के 101 मंदिर हैं। इस गांव के लोग कौरवों को अपना रक्षक मानते हैं और देवता समझ कर उनकी पूजा करते हैं।

100 कौरव, कर्ण और शकुनि का मंदिर

केरल के कोल्लम में कौरवों की पूजा की जाती है। बहुत कम लोगों को पता है कि यहां दुर्योधन का बेहद मशहूर मंदिर है। इसी साल मार्च में दुर्योधन के इस मंदिर में 20 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने दर्शन किए हैं। यही नहीं दुर्योधन के नाम से भारत सरकार को टैक्स भी जमा किया जाता है। हालांकि दुर्योधन के अलावा भी यहां 99 कौरव, कौरवों के मामा शकुनि, दुर्योधन के दोस्त कर्ण और दुर्योधन की बहन दुशाला का भी मंदिर मौजूद है। बता दें कि ये सारे मंदिर महज 50 किलोमीटर की दूरी के भीतर मौजूद हैं।

kauravas Temple in Kerala Kollam

क्या है कहानी?

कोल्लम के लोग कौरवों को अपना पूर्वज मानकर पूजते हैं। इन मंदिरों को देखकर कई लोगों के मन में सवाल उठता है कि महाभारत में विलेन कहे जाने वाले कौरव कोल्लम के लोगों के लिए देवता कैसे बन गए? इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। साथ ही यहां कौरवों की पूजा भी अलग अंदाज में की जाती है।

दुर्योधन ने किया था दान

सारे कौरवों में सबसे मशहूर मंदिर दुर्योधन का ही है। इस मंदिर का नाम ‘पेरिविरुथी मलानाडा’ है। इस मंदिर के पीछे एक स्थानीय कथा काफी प्रचलित है। इसके अनुसार वनवास के दौरान दुर्योधन सभी कौरवों के साथ पांडवों को ढूंढने निकला था। तभी उसे रास्ते में प्यास लगी। तभी एक बूढ़ी महिला ने दुर्योधन को ताड़ी पिलाई थी। ताड़ी का नाम केरल के पारंपरिक ड्रिंक्स में शुमार है। घर आए मेहमानों को अक्सर यही ड्रिंक पिलाई जाती है। पाम फल और अल्कोहल मिलाकर ताड़ी तैयारी की जाती है। मंदिर में आज भी दुर्योधन को ताड़ी का ही भोग लगाया जाता है।

दुर्योधन ने किया था वादा

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ताड़ी पीने से दुर्योधन की प्यास बुझ गई और खुश होकर उसने आसपास का पूरा इलाका बूढ़ी महिला को दान में दे दिया था। पांडवों की खोज में निकलते समय दुर्योधन ने गांव वालों से वादा किया कि अगले शुक्रवार तक मैं वापस लौट आऊंगा। अगर मैं नहीं लौटा तो समझ लेना कि दुर्योधन अब इस दुनिया में नहीं रहा और मेरा अंतिम संस्कार कर देना।

गांव के बीच में बना दुर्योधन का मंदिर

प्रचलित कथा की मानें तो उसके बाद दुर्योधन कभी उस गांव में वापस नहीं लौटा और मगर उसकी आत्मा उसी गांव में बसती है। इसलिए गांव के बीचों बीच दुर्योधन का मंदिर है और शुक्रवार के दिन इस मंदिर में खास पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर के पास मौजूद 15 एकड़ जमीन पर खेती की जाती है और खेती के टैक्स को दुर्योधन के नाम से भारत सरकार के खाते में जमा किया जाता है।

दुर्योधन क्यों बना देवता?

दुर्योधन के मंदिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर कर्ण, दुशाला और शकुनि का भी मंदिर है। इन सभी मंदिरों को लेकर स्थानीय समुदाय में अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। केरल का कुरावा समुदाय कौरवों को अपना पूर्वज मानता है। इसी समुदाय के लोगों ने केरल में कौरवों की पूजा शुरू की थी। कोल्लम के लोगों का कहना है कि महाभारत के अनुसार जब पांडव स्वर्ग पहुंचे तो दुर्योधन वहां पहले से मौजूद था। अगर दुर्योधन सबसे बड़ा पापी था तो ये भला कैसे संभव हो सकता है?

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