2010-2020 रहा 'सबसे घातक दशक', क्यों कहर बनकर टूट रही आसमानी बिजली? रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा
Lightning Deaths Increase : देश के कई राज्यों में जमकर बादल बरस रहे हैं, जिससे लोगों को उमस भरी गर्मी से राहत मिली। इस बार कई प्रदेश में बारिश जानलेवा साबित हो रही है। बरसात के बीच सबसे ज्यादातर आकाशीय बिजली गिरती है, जिसकी चपेट में आने से लोगों की जान चली गई है। इस बीच नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने एक आंकड़ा जारी किया है, जिसमें बताया गया कि देश में बिजली गिरने से होने वाली मौतों में वृद्धि हुई है। NCRB की एनालिसिस में 2010-2020 के दशक को 'सबसे घातक दशक' बताया गया है।
न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 1967-2002 के दौरान प्रति राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में औसत वार्षिक मृत्यु दर 38 थी, जोकि 2003-2020 की अवधि में बढ़कर 61 हो गई। इसे लेकर ओडिशा के फकीर मोहन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने रिसर्च किया, जिसमें पता चला कि देश में 1967 से 2020 के बीच बिजली गिरने से 1,01,309 मौतें हुईं। जहां बिजली से संबंधित मौतों की औसत संख्या 1986 में 28 से बढ़कर 2016 में 81 हो गई, जबकि 2010 से 2020 के दौरान बिजली गिरने की घटनाओं का मामला सबसे घातक और खतरनाक रहा।
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पूर्वोत्तर राज्यों में 2001 से बढ़ीं मौतें
आकाशीय बिजली गिरने से हर साल औसतन 1,876 मौतें होती हैं। जहां 1967 में मध्य भारत के राज्यों में लगातार बिजली गिरने से होने वाली मौतों में वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे यह सबसे संवेदनशील क्षेत्र बन गया है तो वहीं पूर्वोत्तर भारत में 2001 से मौतों में तेजी देखने को मिली।
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क्यों गिरती है आकाशीय बिजली?
शोध के मुताबिक, पूर्वोत्तर में बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी की वजह वनों की कटाई, ग्लोबल वार्मिंग और बाहरी गतिविधियां आदि हैं। 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ 7 राज्यों में आज के हिसाब से योजनाएं विकसित हुईं। वहीं, मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु के साथ सभी उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों समेत सबसे संवेदनशील राज्यों ने अभी तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा निर्देशित आकाशीय बिजली के खिलाफ एक्शन प्लान तैयार नहीं किया।