Lok Sabha Election: 10 साल में ही घटने लगा था नेहरू का जलवा; दूसरे आम चुनाव ने दिए थे अहम सबक
दिनेश पाठक, नई दिल्ली
Lok Sabha Election: देश के दूसरे लोकसभा चुनाव के परिणाम जब आए तो कांग्रेस की जमीन खिसकती हुई दिखी थी। महज दस साल के शासन के बाद ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की लोकप्रियता घटने लगी थी। कांग्रेस को साल 1957 में हुए आम चुनाव में उत्तर भारत में तो जबरदस्त सफलता मिली लेकिन देश के बाकी हिस्सों में अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। यह और बात है कि लोकतंत्र की खूबसूरती की वजह से कांग्रेस ने लगभग 40 साल तक देश पर निष्कंटक राज किया। इसी चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई के रूप में एक भी युवा संसद में पहुंचा, जिसने आगे चल कर तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। आइए जानते हैं कि दूसरे आम चुनाव में क्या कुछ खास था?
Vignettes from the second General Elections to Lok Sabha, held in 1957.
The election exercise is remembered as a splendid illustration of prudence in public life. #ECI pic.twitter.com/UV4gbsrpiv— Election Commission of India (@ECISVEEP) October 19, 2023
विपक्ष पड़ा कमजोर, कांग्रेस को मिला बहुमत
दूसरे आम चुनाव तक विपक्ष की धार कमजोर पड़ने लगी थी। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का असमय निधन हो गया। विपक्ष के बड़े नेता कृपलानी की पत्नी ने भी कांग्रेस जॉइन कर ली। जेपी ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली। इसका लाभ कांग्रेस को मिला। उत्तर भारत में उसके 195 सदस्य जीतकर संसद पहुंच गए। लोकसभा में कांग्रेस के कुल 371 सदस्य जीतकर आए। पश्चिम, दक्षिण और पूर्वी हिस्से से उसके सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हो गईं थीं। नेहरू ने परिणाम आने के साथ ही इसे महसूस भी कर लिया था और उसी हिसाब से आगे पार्टी में सुधार वाले कदम भी उठाए गए। यह चुनाव 24 फरवरी से 9 जून 1957 तक चला था।
दूसरे आम चुनाव में संसद पहुंचीं 22 महिलाएं
साल 1957 में हुए चुनाव में कुल 45 महिलाएं मैदान में उतरी थीं और इनमें से 22 ने जीत दर्ज की थी। सीपीआई दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जिसके 27 सदस्य संसद पहुंचे। इसी तरह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के 19 और जनसंघ के चार सदस्य चुनकर आए, इन्हीं में से एक थे अटल बिहारी वाजपेई, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की बलरामपुर सीट से जीत दर्ज की थी। संसद में उनके भाषण से नेहरू भी प्रभावित थे। उन्होंने उसी जमाने में भविष्यवाणी कर दी थी कि अटल बिहारी में पीएम बनने के सारे गुण हैं और उनकी बात सच हुई। अटल ने तीन बार पीएम पद की शपथ ली। वे ऐसे पीएम बने जिन्होंने गठबंधन की राजनीति को शुचिता के साथ चलाया और निभाया।
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शराब दुकानें बंद करने का पहली बार आदेश
पहले आम चुनाव में जहां 17 करोड़ से ज्यादा मतदाता थे तो पांच साल बाद होने जा रहे दूसरे आम चुनाव में यह संख्या 19 करोड़ से ज्यादा हो गई थी। चुनाव आयुक्त के रूप में सुकुमार सेन इस अहम इलेक्शन के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार अफसर थे। इसीलिए यह चुनाव पहले चुनाव से ज्यादा सरल तरीके से हुआ। पुरानी मतपेटियां इस्तेमाल में ली गईं तो मतदाताओं की संख्या बढ़ने की वजह से करीब 5 लाख नई मतपेटियां और बनवाई गईं। पहली बार मतदान के दिन शराब की दुकानें बंद करने का आदेश इसी दौरान हुआ, जो अब भी लागू है। क्योंकि अनेक तरीके की रोक के बावजूद शराब बांटने की शिकायतें आयोग तक पहुंचती ही हैं। अनेक प्रयासों के बाद भी इसे रोका नहीं जा सका।
कई अजीबोगरीब चीजें भी देखने को मिलीं थीं
इस चुनाव में जब मतगणना शुरू हुई तो कई अजीबोगरीब चीजें सामने आईं। देश के अलग-अलग हिस्सों में यह सब हुआ। कहीं मतपत्रों पर गालियां लिखी मिलीं तो अनेक मतपेटियों से नोट और सिक्के भी निकले। नेताओं के नाम पत्र भी मिले तो अपनी पसंद के फिल्मी सितारों की फोटो भी मतदाताओं ने मतपेटी में डाल रखी थीं। मद्रास में एक मतदाता चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को वोट देने की जिद कर बैठा तो दिल्ली में नामांकन कराने पहुंचा व्यक्ति लॉर्ड जीसस के नाम पर नामांकन करने की अनुमति मांगने लगा। हालांकि इनमें से किसी को भी अनुमति नहीं मिली।
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पहली बार बूथ कैप्चरिंग भी इसी चुनाव में हुई
बिहार के बेगूसराय के रचियारी गांव में बने एक बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया। मतपेटियां नष्ट कर दी गईं। चुनाव आयोग भी इसके लिए तैयार नहीं था। यह भारत के चुनावी इतिहास में इस तरह की पहली घटना थी। उसके बाद तो अनेक मौकों पर बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं हुईं। उसी के बाद देश में राजनीति के अपराधीकरण की शुरुआत हुई। तब से अब तक न जाने कितने बड़े आपराधिक प्रवृत्ति के लोग सांसद बने, विधायक बने। आज भी लगातार चुने जा रहे हैं।
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