Lok Sabha Election: आजाद भारत के चौथे आम चुनाव में पहली बार कमजोर दिखी कांग्रेस
दिनेश पाठक, नई दिल्ली
Lok Sabha Election 1967 : देश के आजाद होने के 20 बरस बाद साल 1967 में आम चुनाव घोषित हो चुके थे। यह पहला चुनाव था जब पंडित जवाहरलाल नेहरू नहीं थे। यह पहला चुनाव था जब इंदिरा गांधी कांग्रेस के प्रमुख चेहरे के रूप में थीं। यह भी कह सकते हैं कि वे ही सबसे बड़ा चेहरा थीं क्योंकि चुनाव घोषित होते समय वे देश की पहली महिला पीएम थीं। परिणाम आने के बाद भी उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली क्योंकि कांग्रेस को एक बार फिर बहुमत मिल गया था। इस तरह कांग्रेस चौथी बार सरकार बनाने में कामयाब तो हो गई लेकिन बहुत कुछ खो भी दिया था। सीटें भी कम हुईं और मत प्रतिशत भी। कह सकते हैं कि बीते हर चुनाव से बेहद खराब प्रदर्शन रहा कांग्रेस का इस चुनाव में।
डीएमके के मामूली कार्यकर्ता से हारे कांग्रेस अध्यक्ष
इसके ठोस कारण भी दिखाई दे रहे थे। साल 1962 के चुनाव के बाद देश अचानक संकट में आ गया था। चीन से युद्ध, पाकिस्तान से युद्ध, नेहरू का निधन, दूसरे पीएम शास्त्री का निधन, खाद्यान्न संकट, धार्मिक कट्टरता, क्षेत्रीय स्तर पर भांति-भांति के तनाव तथा अन्य मसलों को लेकर देश के लोग और सरकारें बुरी तरह परेशान रहीं। चूंकि, उस समय राज्यों से लेकर केंद्र में कांग्रेस की सरकारें थीं इसलिए जनता ने इस चुनाव में उसे ही सजा देने का फैसला किया। कई राज्यों से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। केंद्र में पहली बार कांग्रेस के 300 से कम सांसद जीते। यह किसी सदमे से कम नहीं था। कांग्रेस खुद भी उथल-पुथल के दौर से गुजरी थी। इस चुनाव में कांग्रेस के अध्यक्ष कमराज समेत कई दिग्गज चुनाव हार गए थे।
1967 के चुनाव में इस तरह दिखाए गए थे परिणाम
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— Paroma Mukherjee (@ParomaMukherjee) May 27, 2019
राजगोपालाचारी की पार्टी पहली बार 44 सीटें जीती
कांग्रेस को महज 283 सीटों से संतोष करना पड़ा था। सी राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी पहली बार मजबूत विपक्ष के रूप में उभरकर सामने आई। उसे कुल 44 सीटें मिली। कम्युनिस्ट पार्टी के बंटवारे का असर उसकी सीटों पर पड़ा। पहले तीन आम चुनावों में जहां सीपीआई दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में संसद में थी, वहीं इस चुनाव में उसका स्थान चौथा हुआ। तीसरे नंबर पर 35 सीटों के साथ जनसंघ तथा सीपीआई को 23 सीटों से संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में कुल 61 फीसदी मत पड़े थे जिसमें 40 फीसदी से कुछ ज्यादा था। यह भी बाकी चुनावों से कम था।
520 सीटों पर हुए थे चुनाव, मतदाता हुए 25 करोड़
इस चुनाव में कुल संसदीय सीटों की संख्या 520 हो गई थी और कुल मतदाता थे करीब 25 करोड़। मतलब जैसे-जैसे देश तरक्की कर रहा था, आबादी-मतदाता भी बढ़ते जा रहे थे। पहले आम चुनाव में जहां 17 करोड़ मतदाता थे तो दूसरे में यह संख्या हुई थी 19 करोड़, तीसरे में 21 करोड़ और चौथे आम चुनाव यह चार करोड़ और बढ़ गई।
तमिलनाडु और बंगाल से कांग्रेस सरकार हुई साफ
यही वह चुनाव था जब तमिलनाडु में डीएमके ने जबरदस्त जीत दर्ज करते हुए राज्य में सरकार बना ली। कांग्रेस अध्यक्ष कामराज डीएमके के एक कार्यकर्ता से चुनाव हार गए। विदेशी मीडिया में कांग्रेस की बड़ी किरकिरी हुई। उसके बाद से आज तक कांग्रेस तमिलनाडु में कभी जम नहीं पाई। इस समय भी डीएमके की राज्य में सरकार है। इसी चुनाव में पश्चिम बंगाल से भी कांग्रेस सरकार का सफाया हो गया और यहां वामदलों की सरकार बन गई। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में साल 1967 के चुनावों में हारने के बाद कांग्रेस को दोबारा दोनों ही राज्यों में सत्ता नहीं मिल सकी।
इसी चुनाव के बाद खत्म हुआ 'एक देश एक चुनाव'
पीएम बनने के बाद इंदिरा के सामने कई चुनौतियां
साल 1967 चुनाव में इंदिरा गांधी खुद उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से चुनाव मैदान में उतरीं और जीत दर्ज की। यहां से उनके पति फिरोज गांधी चुनाव लड़ते रहे। वे दोबारा प्रधानमंत्री भी बन गईं लेकिन उनके सामने चुनौतियां अपार थीं। इस चुनाव में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। राज्यों में उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। क्षेत्रीय दलों का उभार शुरू हो गया था। विपक्ष के तेवर तीखे हो चले थे। हालांकि, बिखराव केवल कांग्रेस में नहीं हुआ था। कम्युनिस्ट भी दो फाड़ हो चुके थे। कुछ दलों ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इस तरह 20 बरस के आजाद भारत ने राजनीति के अलग अलग रूप देख लिए थे। यह भी तय होने लगा था कि चुनाव में कुछ भी स्थाई नहीं है।