Lok Sabha Election 1977: जब नेताओं ने नहीं, जनता ने लड़ा चुनाव; संजय-इंदिरा तक हार गए
दिनेश पाठक, नई दिल्ली
Lok Sabha Elections : उन दिनों इंदिरा गांधी की छवि बेहद शानदार थी। पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने में कुछ ही महीने शेष थे तभी इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला उनके खिलाफ आ गया। अदालत ने उनके चुनाव को रद्द कर दिया। मतलब वे एमपी नहीं रहीं। वे पीएम पद से इस्तीफा देने का मन बना चुकी थीं कि अचानक 25 जून 1975 की रात देश में इमरजेंसी घोषित कर दी गई। अब देश में लोकतंत्र नहीं था। प्रेस तक पर सेंसर लग गया। विपक्षी नेताओं की आनन-फानन गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। जो जहां था वहीं से उठा लिया गया। देखते ही देखते सरकारी सिस्टम का कहर जनता पर टूट पड़ा। क्या आम और क्या खास, सब पीड़ित-प्रताड़ित महसूस करने लगे। करीब 21 महीने तक यह सब चला और फिर इंदिरा गांधी ने साल 1977 में एक दिन अचानक आम चुनाव घोषित कर दिया। इस चुनाव के परिणाम ने कांग्रेस की चूलें हिला दी।
1977 :: PM Indira Gandhi During Election Campaign pic.twitter.com/FGjnl12vTB
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आजादी के 30 साल बाद ही कांग्रेस ढह सी गई। पहली बार उसे विपक्ष में बैठना पड़ा। देश में पहली बार विपक्ष एकजुट हुआ और जनता पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा। यह चुनाव ऐसे समय में घोषित हुआ, जब कोई तैयार नहीं था। कहा जाता है कि यह चुनाव जनता ने लड़ा था, किसी पार्टी ने नहीं। विपक्षी नेताओं की रैलियों में स्व-स्फूर्त भीड़ आती थी। नेताओं को सुनती और पैसे भी एकत्र कर पार्टी नेताओं को सौंप देती। उधर, सशक्त इंदिरा गांधी की रैलियों में कांग्रेस कार्यकर्ता अपने समर्थकों के साथ आते थे। जब इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लागू की तो उनकी छवि पर बट्टा लगा। जो लोग उनमें देवी का रूप देखते थे, उनका रुख बदल गया। उस समय ऐसा लगने लगा था कि अब देश में लोकतंत्र की हत्या हो गई है। इसीलिए भारत में लोकतंत्र के इतिहास, चुनावों की जब भी बात होती है तो साल 1977 यानी इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों की चर्चा जरूर होती है और इसे अच्छे संदर्भों में कभी याद नहीं किया जाता।
1975 :: Newspaper Headline- Emergency declared . JP , Morarji Desai , Advani and Vajpayee Arrested pic.twitter.com/xXPSCeeRiv
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कांग्रेस को मिलीं 154 सीटें, जनता पार्टी को 330
18 जनवरी 1977 को देश में आम चुनावों की घोषणा होते ही जेलों में बंद नेता-कार्यकर्ता रिहा कर दिए गए। विपक्ष एकजुट हुआ और जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन हो गया। इस पार्टी में कांग्रेस के वे नेता भी शामिल हो गए जो इमरजेंसी के विरोधी थे। उनमें हेमवती नंदन बहुगुणा और जगजीवन राम प्रमुख थे। जेपी लोकतंत्र बहाली के प्रतीक बन गए। उन्हें सुनने को दूर-दूर से लोग आने लगे। चुनावी माहौल कुछ ऐसा बना कि जनता पार्टी को अकेले 295 सीटें मिलीं तथा सहयोगियों को मिलाकर 330। कांग्रेस की करारी हार हुई और उसे 154 सीटों से संतोष करना पड़ा। पहली दफा कांग्रेस का वोट शेयर 35 फीसदी से नीचे चला गया था।
कई राज्यों में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला
उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी और अमेठी से उनके पुत्र संजय गांधी चुनाव हार गए। उत्तर भारत के कई राज्यों में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। मध्य प्रदेश-राजस्थान में एक-एक सीट ही कांग्रेस को मिल सकी। महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा। दक्षिण भारत में कांग्रेस बहुमत में रही। शायद इमरजेंसी का असर उत्तर भारत में ज्यादा था।
बहुमत मिलते ही जनता पार्टी में झगड़े शुरू हो गए। प्रधानमंत्री पद के तीन दावेदार चौधरी चरण सिंह, जगजीवन राम और मोरारजी देसाई सामने आए। देसाई के नाम पर जैसे-तैसे सहमति बनी लेकिन चूंकि जनता पार्टी के नेता न चुनाव के लिए तैयार थे और न ही सरकार चलाने का कोई खास अनुभव था तो एक अजब कन्फ्यूजन की स्थिति थी। नतीजा यह हुआ कि महज 18 महीने में ही पार्टी में बंटवारा हो गया और देसाई सरकार अल्पमत में आ गई।
Timeline of Emergency in India:
12 Jun 1975 - Allahabad HC disbars Indira Gandhi as an MP for election malpractices
25 Jun 1975 - President Fakhruddin Ali Ahmed signs the proclamation of internal emergency
26 Jun 1975 - Opposition leaders including JP, Morarji Desai, Vajpayee… pic.twitter.com/5s99oTGc08
— Tamil Labs 2.0 (@labstamil) June 26, 2023
इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को समर्थन दिया
मौके की नजाकत देख इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह को अपना समर्थन देकर उन्हें प्रधानमंत्री बनवा दिया। फिर चार महीने बाद समर्थन वापस ले लिया। केंद्र सरकार गिर गई और साल 1980 में फिर से देश में चुनाव घोषित कर दिए गए। महज दो साल ही विपक्षी नेताओं की सरकार चल पाई। कांग्रेस ने यह भी साबित कर दिया कि देश चलाने की क्षमता केवल उसी के पास है। विपक्ष तो केवल भानुमती का पिटारा है, जिसमें जैसे-तैसे लोगों को रखा गया है। चुनाव परिणाम जब आए तो कांग्रेस फिर भारी बहुमत से जीत चुकी थी। उसे पूरे देश से समर्थन मिला था। उस उत्तर भारतीय राज्यों से भी जबरदस्त प्यार मिला, जहां से 1977 के चुनाव में कांग्रेस साफ हो गई थी।
चुनाव के दौरान कुछ रोचक किस्से भी सामने आए
- नई दिल्ली में बोट क्लब पर कांग्रेस की रैली थी। एक मार्च 1977 को। भीड़ आई और जब स्थानीय प्रत्याशी शशि भूषण ने इंदिरा गांधी की जय का नारा बोलने को कहा तो भीड़ ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। उन्हें लगा कि माइक ठीक नहीं है और वे उसे ठोकने से लगे। तब जनता के हंसने की आवाज आई। इंदिरा बोल ही रही थीं कि लोग जाने लगे।
- इंदिरा गांधी ने पूरे देश में करीब 250 से ज्यादा रैलियां कीं और उन्हें पता चल चुका था कि जनता का मिजाज बिगड़ा हुआ है। इस बार वह उनके साथ नहीं है। परिणाम आने पर उनका आंकलन सही निकला।
- युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर उस समय लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे थे। वे जहां कहीं रैली में जाते, कार्यकर्ताओं का समूह चादर लेकर भीड़ में चंदा मांगने निकल जाता। 10-15 लाख रुपये तक इकट्ठा हो जाना आम बात थी। लोग न केवल विपक्षी नेताओं को सुनने को आते बल्कि पैसे भी देकर जाते, जो जनता पार्टी के चुनाव में काम आते।
- जगजीवन राम ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया तब विपक्ष ने दिल्ली में रामलीला मैदान पर एक रैली की। उसमें जेपी और जगजीवन राम को संबोधित करना था। रैली स्थल तक कम लोग पहुंच सकें इसके लिए सरकारी तंत्र ने अनेक कोशिशें की। एक कोशिश यह भी हुई कि दूरदर्शन पर आने वाली फिल्म का समय भी बदल दिया गया। उस दिन ब्लॉकबस्टर फिल्म 'बॉबी' का प्रसारण था। पर, परिणाम यह रहा कि उस समय तक देश में इतनी बड़ी भीड़ रामलीला मैदान पर इसके पहले कभी नहीं जुटी थी।