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नई पार्टी, नया सिंबल, फिर भी बहुमत; Indira Gandhi की ताकत दुनिया ने देखी, पहले मध्यावधि चुनाव की रोचक कहानी

General Election 1971 Indira Gandhi: 1971 में देश के पहले मध्यावधि चुनाव हुए थे और इन चुनाव में पूरी दुनिया ने इंदिरा गांधी की ताकत देखी थी। जानें कैसे नई पार्टी, नए सिंबल के बावजूद इंदिरा गांधी ने बहुमत जीता और तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। विरोधियों को दिन में ही तारे दिखाए।
12:20 PM Mar 31, 2024 IST | Khushbu Goyal
नई पार्टी  नया सिंबल  फिर भी बहुमत  indira gandhi की ताकत दुनिया ने देखी  पहले मध्यावधि चुनाव की रोचक कहानी
इंदिरा गांधी 1971 के मध्यावधि चुनाव में तीसरी बार प्रधानमंत्री बनी थीं।

दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

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General Election 1971 Throwback: देश में 18वें लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश का 5वां आम चुनाव कई मामलों में एकदम अलग था। देश के सामने अनेक चुनौतियां थीं। उस वक्त देश ने जहां पहला मध्यावधि चुनाव देखा था, वहीं दुनिया ने इंदिरा गांधी की ताकत देखी थी। चुनाव 1972 में होने थे, लेकिन एक साल पहले 1971 में ही मध्यावधि चुनाव कराने पड़े।

इस चुनाव के पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस दोफाड़ हो चुकी थी। जवाहर लाल नेहरू के करीबी दोस्तों ने ही उनकी बेटी इंदिरा गांधी से बगावत करके नई पार्टी बना ली। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस-आर और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस-ओ बनी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के इस व्यवहार की वजह से इंदिरा गांधी ने कम्युनिस्ट पार्टियों से समर्थन लेकर सरकार बचा ली, लेकिन मध्यावधि चुनाव करने का फैसला भी लिया।

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पाकिस्तान के दोफाड़ करके बटोरी सुर्खियां

1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी एक शक्ति के रूप में उभरकर देश के सामने आईं, जबकि चौथे आम चुनाव में उन्होंने मजबूत दस्तक भी दे दी थी। इसी साल भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने आया। इसे इंदिरा गांधी की कूटनीतिक कामयाबी के रूप में देखा गया, क्योंकि आजादी के 2 दशक बाद उन्होंने पाकिस्तान के 2 टुकड़े कर दिए थे और उसे कमजोर देश बना दिया था।

उस समय से टूटा हुआ पाकिस्तान गीदड़-भभकी चाहे जितनी मर्जी दे, छिपकर चाहे जितने मर्जी वार करे, लेकिन सामने आकर लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सका। अब तो देश दाने-दाने को मोहताज है। आम नागरिक भी चर्चा करने लगे हैं कि भारत से टकराने का मतलब है मिट जाना। इसके ट्रेलर मोदी सरकार ने भी अपने कार्यकाल में समय-समय पर अलग-अलग तरह से दिखा ही दिए हैं।

इंदिरा का जबरदस्त कम-बैक, जीती 352 सीटें

इंदिरा गांधी के लिए यह राह आसान नहीं थी। वे मुश्किलों के बीच कड़ी फैसले लेने से नहीं चूकीं। इसका फायदा उन्हें आम चुनाव में हुआ और अपने नेतृत्व में दूसरी बार लड़े गए चुनाव में उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 352 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस को अब तक के इतिहास में सबसे कम 283 सीटें मिली थीं। उनके विरोधी वरिष्ठ नेताओं वाली पार्टी कांग्रेस-ओ को साल 1971 के चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। उन्हें सिर्फ 16 सीटों से संतोष करना पड़ा।

इसी चुनाव में देश में पहली बार गठबंधन की राजनीतिक शुरू हुई थी, जो इंदिरा गांधी के आगे ढेर होती हुई दिखाई दी। 1967 के चुनाव में विपक्षी दलों के पास जहां 150 से अधिक सीटें थीं, साझेदारी में लड़ने के बाद यह संख्या 50 तक भी नहीं पहुंची। गठबंधन में कांग्रेस-ओ, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी समेत कुछ और दल थे। गठबंधन का नाम था NDF यानी नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, गठबंधन कांग्रेस-आर यानी इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेस ने बनाया था, लेकिन तमिलनाडु में DMK के साथ तथा केरल में CPI के साथ गठबंधन किया।

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वे कहते हैं- इंदिरा हटाओ, इंदिरा कहती थीं- गरीबी हटाओ

देश में गरीबी थी। भुखमरी थी। अकाल था। विपक्ष इंदिरा हटाओ के नारे लगा रहा था, तब इंदिरा गांधी ने नारा दिया कि वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ। यह नारा क्लिक किया और विपक्ष की बुरी हार हुई। यह चुनाव जाने-अनजाने इंदिरा गांधी के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा। विपक्षी न चाहते हुए भी इंदिरा का नाम लेते और इंदिरा देश से गरीबी हटाने की बात करती रहीं।

इस चुनाव में उन्होंने करीब छोटी-बड़ी 300 से ज्यादा रैलियां-नुक्कड़ सभाएं कीं। उनकी बात सीधे जनता के दिलों तक पहुंचती थी। इंदिरा गांधी ने इस चुनाव में करीब 33 हजार किलोमीटर का सफर तय किया। 2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने उन्हें अपना नेता सुना। यह वह समय था, जब नेताओं को सुनने के लिए भीड़ खुद-ब-खुद रैलियों में पहुंच जाती थी।

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इंदिरा के लिए बेहद खास था 1971 का चुनाव

1971 के मध्यावधि चुनाव इंदिरा गांधी के लिए बेहद खास थे। चुनौतियां भी उनके सामने अनेक थीं। उनकी अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने साल 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पार्टी से निष्कासित कर दिया। आनन-फानन में उन्हें दूसरी पार्टी बनानी पड़ी। सरकार अल्पमत में आ गई तो कम्युनिस्ट पार्टी से समर्थन भी लेना पड़ा।

पहली बार नई-नवेली बनी कांग्रेस-आर नए चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरी। यह चुनाव चिह्न था गाय का दूध पीता बछड़ा। आसान नहीं होता, किसी नए चुनावी निशान पर आम चुनाव में जाना, लेकिन इंदिरा गांधी के सामने कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था। अंदर से लेकर बाहर तक घिरे होने के बवजूद वे लड़ीं और न केवल मजबूत विजय हासिल की, बल्कि कांग्रेस-ओ को दिन में ही तारे दिखा दिए।

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तीसरी बार इंदिरा गांधी बनी थीं प्रधानमंत्री

18 मार्च 1971 को इंदिरा गांधी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 26 मार्च 1971 को पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बन गया। चुनाव से पहले इंदिरा गांधी ने प्रीवी-पर्स पर आघात किया तो बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मजबूत फैसला भी करने से पीछे नहीं हटी थीं। अभी शपथ की खुमारी उतरी भी नहीं थी कि बांग्लादेश का जन्म हो गया। इंदिरा की लोकप्रियता बढ़ाने में इस अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम का बहुत महत्वपूर्ण रोल था। दुनिया ने इंदिरा की ओर आस भरी नजरों से देखना शुरू कर दिया था। उन्हें आयरन लेडी, दुर्गा और न जाने कौन-कौन सी उपाधियां मिलीं।

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