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Indira Gandhi की जिंदगी का वो काला दिन, जब वे 4 दिन कमरे में कैद रहीं, डिप्रेशन में चली गई

Lok Sabha Election 1977 Indira Gandhi: चुनावी सरगर्मियों के बीच इंदिरा गांधी से जुड़ा वह किस्सा जानते हैं, जो 1977 के चुनाव में उनकी हार से जुड़ा है। इंदिरा इस हार को बर्दाश्त नहीं कर पाई थीं। वे इतनी टूट गई थीं कि अंधेरे में रहने लगी थीं। उन्होंने खुद को गुमनामियों के अंधेरे में खो दिया था।
09:11 AM Mar 20, 2024 IST | Khushbu Goyal
indira gandhi की जिंदगी का वो काला दिन  जब वे 4 दिन कमरे में कैद रहीं  डिप्रेशन में चली गई
इंदिरा गांधी 1977 के चुनाव में हुई हार बर्दाश्त नहीं कर पाई थीं।

Lok Sabha Election 1977 Indira Gandhi Memoir: लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मियों के बीच बात करते हैं देश के छठे लोकसभा चुनाव की, जो 1977 में हुए थे और इन चुनाव में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) बुरी तरह हारी थीं। इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का जनता दल का नारा कामयाब हुआ। इंदिरा गांधी इतनी बुरी तरह हारीं कि अपनी सीट रायबरेली भी नहीं बचा पाईं। यहां से वे 55 हजार वोटों से हारी थीं। 47 साल पहले 20 मार्च 1977 को चुनाव नतीजे आए तो इंदिरा गांधी टूट गई थीं।

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दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी के घर पर मातम जैसा माहौल छा गया था। इंदिरा अपने कमरे में चली गईं। उन्होंने कई घंटे दरवाजा नहीं खोला। करीब 4 दिन उन्होंने किसी से बात नहीं की। वे तनाव में थी। न किसी से मुलाकात की और न ही कुछ खाया पिया। चुनावी हार की टीस उनके दिल में हजारों छेद कर रही थी। वे दर्द में थीं, लेकिन किसी से कह नहीं पाईं। दोनों बहुओं सोनिया गांधी और मेनका गांधी को पोते-पोती राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के साथ दोस्त सुमन दुबे के घर भिजवा दिया। उन्हें संजय गांधी की चिंता खाए जा रही थी।

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संजय के नाम की इंदिरा ने मांगी थी गारंटी

एक मीडिया हाउस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में यह खुलासे किए। नीरजा लिखती हैं कि 22 मार्च को इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। जब उन्होंने इस्तीफा दिया, तब देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति बीडी जत्ती थे। इंदिरा गांधी को इस्तीफा देते देखकर उनकी पत्नी संगम्मा रोने लगी थीं।

ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1975 में लगाई इमरजेंसी ने इंदिरा गांधी का करियर खत्म कर दिया था। राष्ट्रपति ने इस्तीफे वाला लिफाफा लिया, लेकिन खोलकर नहीं देखा। इंदिरा गांधी के समर्थक चाहते थे कि नया प्रधानमंत्री चुने तक वे पद पर बनी रहें,  लेकिन वे टूट गई थीं। उनके दिल दिमाग में द्वंद्व चल रहा था। हालात चाहे जैसे भी हों, उस चुनाव ने भारतीय राजनीति की तस्वीर ही बदल दी थी।

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