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'46 रुपये रोज पर गुजर करने को मजबूर 5 प्रतिशत लोग', कांग्रेस ने नीति आयोग की सर्वे रिपोर्ट पर उठाए सवाल

Congress PC On Niti Aayog : नीति आयोग की नवीनतम सर्वे रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश में सिर्फ 5 प्रतिशत लोग गरीब हैं, इसे लेकर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि गरीबों के आंकड़ों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि गरीबों और अमीरों के बीच खाई बढ़ी है एवं शहर और गांव के बीच फासला बढ़ा है।
04:55 PM Feb 27, 2024 IST | Deepak Pandey
 46 रुपये रोज पर गुजर करने को मजबूर 5 प्रतिशत लोग   कांग्रेस ने नीति आयोग की सर्वे रिपोर्ट पर उठाए सवाल
कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने नीति आयोग के सर्वे पर सवाल उठाए।

Congress PC On Niti Aayog (विनय सिंह) : नीति आयोग ने नवीनतम घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि देश में गरीबी 5 फीसदी से कम हो गई है। कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नीति आयोग के सर्वे पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि नीति आयोग आजकल गरीबी को लेकर झूठ परोस रहा है। किसी तरह से यह सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने गरीबी मिटा दी है। एक और चौंकाने वाले दावे में सरकार का कहना है कि इस देश का केवल 5 प्रतिशत हिस्सा अब गरीब रह गया है।

सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि 11 साल के बाद जारी किया गया यह उपभोग व्यय (Consumption Expenditure) भी भारत में लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता को उजागर करता है। याद रहे यह सर्वेक्षण 5 वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है, लेकिन सरकार ने 2017-18 में डेटा ही नहीं जारी किया, क्योंकि नोटबंदी और त्रुटिपूर्ण GST के कारण सर्वेक्षण में उपभोग में 40 सालों में सबसे निचले स्तर पर सरक गया और अब डेटा में लीपापोती का काम किया जा रहा है।

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अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ी खाई

उन्होंने कहा कि अगर इस रिपोर्ट को ही मान लें तो सच बड़ा भयावह है कि हिंदुस्तान के सबसे गरीब 5 प्रतिशत लोग अपने पूरे दिन की गुजर बसर सिर्फ और सिर्फ 46 रुपये रोज पर कर रहे हैं। इसी में रोटी, कपड़ा, दवाई, पढ़ाई सब शामिल है। वो 46 रुपये जिसमें दिल्ली शहर में 2 बोतल पानी की ना मिले। देश में गांव एवं शहर और अमीर एवं गरीब के बीच लगातार खाई बढ़ती जा रही है। भारत के सबसे गरीब 5 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन औसतन 46 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 67 रुपये खर्च करते हैं तो वहीं सबसे अमीर 5 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में 350 रुपये और शहरी भारत में 700 रुपये खर्च करते हैं- अमीरों और गरीबों के बीच का यह अंतर भयानक है।

जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा गरीब

सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि मतलब सबसे अमीर 5 प्रतिशत शहर में रहने वाले लोग रोटी, कपड़ा, पढ़ाई, दवाई, परिवहन जैसी अन्य आवश्यकताओं पर सबसे गरीब 5% की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक खर्च करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अमीर 5% सबसे गरीब 5% से लगभग 8 गुना अधिक खर्च करते हैं। यह स्पष्ट है कि आर्थिक सुधार के सभी दावे केवल अमीरों के बारे में हैं। शीर्ष 5% और निचले 5% के बीच का अंतर साबित करता है कि गरीब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

अगर गरीब 5 करोड़ लोग हैं तो 81 करोड़ लोग मुफ्त राशन क्यों ले रहे हैं

कांग्रेस नेता ने कहा कि गरीबी के सभी मूर्खतापूर्ण दावों के अलावा गंभीर वास्तविकता यह है कि सबसे गरीब भारतीय अपने सभी खर्चों को केवल 46 रुपये प्रतिदिन से चलाता है।सवाल तो यह है कि अगर सरकार की ही मान ली जाए कि अगर सिर्फ 5% ही ग़रीबी रह गए हैं तो मतलब 7 करोड़ लोग हैं तो 81 करोड़ को मुफ्त राशन क्यों देना पड़ रहा है? क्योंकि यह सच्चाई है कि अगर ऐसा ना किया गया तो वो भुखमरी से मर जाएंगे।

35 करोड़ लोगों के पास कोई वाहन नहीं

उन्होंने आगे कहा कि अगर भारत में केवल 5% गरीब हैं, तो लगभग 25% घर या 35 करोड़ लोगों के पास कार, बाइक या साइकिल नहीं है असलियत तो यह है कि गांव देहात में साबुन तेल मंजन की बिक्री धीमी हो गई है। दो पहिये वाहन की बिक्री में UPA सरकार में 9% की वृद्धि अब घाट कर मात्र 0.7% क्यों जो गई? अगर केवल 5% लोग गरीब हैं, ऐसा कैसे है कि 32% घरों या 45 करोड़ लोगों के पास टेलीविजन नहीं है? आर्थिक तंगी की पुष्टि देश में निरंतर गिरती बचत भी करती है। भारत की घरेलू बचत 50 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। केवल दो साल पहले (2020-21) यह GDP की 11.5% थी जो अब (2022-23) में 5.1% है। अपनी जमा पूंजी से इंसान तब तक खर्च नहीं करता जब तक भुखमरी की नौबत ना आ जाए।

महंगाई से त्रस्त हैं भारतीय

इस सर्वेक्षण में एक और भ्रमित करने वाली बात यह भी कही गई है कि एक दशक में घरेलू खर्चों में 2.5 गुना वृद्धि हुई है, लेकिन दोनों सर्वेक्षणों की तुलना नहीं की जा सकती है, क्योंकि 2022-23 में कार्यप्रणाली बदल दी गई और गैर-खाद्य श्रेणी में वस्तुओं की संख्या बढ़ा दी गई। जहां 2011-12 के सर्वेक्षण में 347 वस्तुओं के बारे में प्रश्न पूछे गए थे, वहीं नवीनतम सर्वेक्षण में 405 वस्तुओं के बारे में प्रश्न पूछे गए। रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 के बाद से शहरी परिवारों में औसत MPCE 33.5% बढ़कर 3,510 रुपये हो गई है और ग्रामीण परिवारों में 40% बढ़कर 2008 रुपये हो गई है, पर यह उछाल वास्तविक आय में बढ़त से नहीं बल्कि कमरतोड़ महंगाई के कारण हुआ है। इसी रिपोर्ट में धीरे धीरे लुप्त हो रहे मध्यम वर्ग, निम्न-आय वर्ग के साक्ष्य भी साफ तौर पर अंकित हैं।

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लोगों की आय में नहीं हुई वृद्धि

रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि 2012-13 और 2022-23 के बीच, महंगाई और शिथिल आय ने अधिकांश भारतीयों का जीवन दूभर कर दिया है। 2009-10 से 2011-12 की अवधि के बीच MPCE में भारी उछाल मजबूत आर्थिक विकास के कारण खर्च बढ़ने से हुई थी, वहीं एक दशक में MPCE में वृद्धि हुई, लेकिन उस तरह से आय में वृद्धि नहीं हुई। RBI की उपभोक्ता विश्वास (Consumer Confidence) के साथ वास्तविक आय, उपभोग पैटर्न, रोजगार, घरेलू ऋण और बढ़ते क्रेडिट-GDP के अंतर जैसी अन्य चीजों पर एक नजर डालें, तो 5% गरीब ही रह गए हैं कि इस भ्रामक झूठ का और पर्दाफाश हो जाता है।

फ्री राशन के चलते आनाज पर कम कर रहे खर्च

डेटा साबित करता है कि कम आय वाले समूह अपने उच्च आय वाले समकक्षों की तुलना में अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में कहीं अधिक नकारात्मक और चिंतित हैं। इस सर्वे में एक और बात का दावा किया गया कि लोग खाने पर कम खर्च कर रहे हैं। कहा गया है कि लोग अनाज कम खा रहे हैं और सब्ज़ी फल पर ज़्यादा खर्च कर रहे हैं। झूठ भी ठीक से नहीं बोल पाते सरकार के यह बाशिंदे- फ्री राशन की वजह से अनाज पर कम खर्च का यह मतलब नहीं है कि लोग पौष्टिक आहार खा रहे हैं। SOFI की एक रिपोर्ट के अनुसार 74% भारतीय पौष्टिक आहार नहीं खा पा रहे, हम निरंतर भुखमरी इंडेक्स में गिर रहे हैं, 7.7% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।

सबकुछ ठीक है तो तंगहाल में क्यों हैं लोग

अगर देश में सब कुछ इतना चमकदार है, जैसा इस घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey) में दर्शाया जा रहा है तो लोग तंगहाल क्यों हैं। अपने झूठे प्रचार के लिए देश की आर्थिक आंकड़ों की विश्वसनीयता के साथ खिलवाड़ बंद होना चाहिए, क्योंकि आपके झूठे आंकड़े और खोखले दावे जमीनी हकीकत के ठीक विपरीत हैं। गरीबी के कौन से आंकड़े को माना जाए- जुलाई 2023 के 19.28% वाला, जनवरी 2024 के 11% वाला या अबका 5% वाला?

आंकड़ों के साथ किया जा रहा है खिलवाड़ 

आंकड़ों के साथ खिलवाड़ न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था की साख पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि यह उन गरीबों के साथ एक क्रूर और भद्दा मजाक भी है और कहीं न कहीं सरकार का उन लोगों के खिलाफ षड्यंत्र का सबूत भी है, क्योंकि इन्हीं भ्रामक तथ्यों के आधार पर लाभार्थियों के नाम हटाए जाएंगे।

जान देने को मजूबर हो रहे किसान और बेरोजगार 

2022 में 7 हजार से ज्‍यादा लोगों ने आर्थ‍िक तंगी से आत्‍महत्‍या कर ली थी। हर घंटे दो किसान आत्महत्या कर रहे हैं, हर दिन 40 बेरोजगार युवा अपनी जान लेने को मजबूर हैं, लेकिन इस दौरान मोदी सरकार सब चंगा सी और आंकड़ों की हेरा फेरी करने में मशगूल है- उनको फर्क ही नहीं पड़ रहा कि देश में लोग आर्थिक तंगी से किस हद तक जूझ कर हताश हो चुके हैं। मोदी सरकार झूठ बोलती है, बार बार बोलती है। कुछ झूठ तो हजम किया जा सकता है, लेकिन कुछ इतना ज्यादा हो जाता है कि बात गले के नीचे नहीं उतरती है।

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देश के हालात समझिए

1. यूपी के आगरा के तरुण की जॉब चली गई। घर चलाने के लिए कुछ करना था तो उन्होंने छोटे-मोटे काम किए और घाटा हुआ और आर्थिक तंगी ने जकड़ लिया। तरुण की फंदे से लटकती लाश मिली। पास ही बेटे और मां की लाश पड़ी थी।

2. यूपी के जौनपुर के रहने वाले रमेश बिंद (42) मजदूरी करते थे। कुछ दिनों से काम नहीं मिल रहा था। उधार लेकर घर का खर्च चल रहा था। आर्थिक तंगी बढ़ती गई, उधार भी पहाड़ सा हो गया। बोझ न झेल पाए और फंदे से झूल गए।

3. यूपी के बृजेश पाल ने बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या कर ली। फंदा लगाने से पहले बृजेश ने अपनी सारी डिग्रियां जला दीं। बृजेश ने सुसाइड नोट में लिखा कि 'क्या फायदा ऐसी डिग्री का, जो नौकरी न दिला सकी। हमारी आधी उम्र पढ़ते-पढ़ते निकल गई और अब हमारा मन भर गया।

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