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ओडिशा में ये क्या हुआ? अपनी सीट भी नहीं बचा पाए दिग्गज सीएम नवीन पटनायक, जानें हार के कारण

Orissa Lok Sabha Assembly Election 2024: ओडिशा में बड़ा खेला हो गया है। यहां विधानसभा और लोकसभा में बीजेडी को हार का सामना करना पड़ा है। बीजेपी ने बड़ा उलटफेर किया है।
10:12 PM Jun 04, 2024 IST | Pushpendra Sharma
ओडिशा में ये क्या हुआ  अपनी सीट भी नहीं बचा पाए दिग्गज सीएम नवीन पटनायक  जानें हार के कारण
naveen patnaik bjd

Orissa Lok Sabha Assembly Election 2024: जहां एक ओर लोकसभा चुनाव के परिणाम में एनडीए को पिछले चुनाव की तुलना में बड़ा झटका लगता नजर आया, तो दूसरी ओर बीजेपी को एक राज्य ने चौंकाने वाले नतीजे दिए। हम बात कर रहे हैं उत्तरपूर्वी भारतीय राज्य ओडिशा की...ओडिशा विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भारी बहुमत मिला। लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो बीजेपी ने 21 में से 19 सीटों पर कब्जा जमाया है। जबकि विधानसभा चुनाव में पहली बार सरकार बनाने के करीब पहुंच चुकी है।

ओडिशा में विधानसभा की 147 सीटें हैं, जिनमें बीजेपी 78 सीटों पर आगे है। जबकि बीजू जनता दल यानी बीजेडी को 51, कांग्रेस को 14 सीटों से संतोष करना पड़ा है। यहां बहुमत का आंकड़ा 74 सीट है। खास बात यह है कि खुद लंबे समय तक सीएम बनने का रिकॉर्ड रखने वाले 5 बार के सीएम नवीन पटनायक अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। नवीन पटनायक पहली बार कोई चुनाव हारे हैं। उन्होंने दो सीटों से चुनाव लड़ा था, जिसमें से उन्होंने हिंजली सीट पर जीत दर्ज की। जबकि कांताबंजी सीट पर बीजेपी प्रत्याशी लक्ष्‍मण बेग से हार का सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं बीजेडी की हार के बड़े कारण...

सत्ता विरोधी लहर

बीते 24 साल से ओडिशा की सत्‍ता पर कब्जा जमाने वाले सीएम नवीन पटनायक छठी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे, लेकिन उन्हें बड़ा झटका लग गया। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उनकी हार की वजह सत्ता विरोधी लहर मानी जा रही है। जनता का सत्तारूढ़ पार्टी के प्रति असंतोष भी कई बार खुलकर सामने आया। दूसरी ओर यहां अन्य राज्यों की तुलना में 'मोदी मैजिक' चलने की भी बात कही जा रही है।

BJP ने रणनीति में किया बदलाव

खास बात यह है कि चुनाव से पहले बीजेपी ने बीजेडी के साथ गठबंधन करने की पहल की थी, लेकिन ये सफल नहीं हुआ। अब बीजेपी ने अपने दम पर जीत हासिल कर बीजेडी को झटका दे दिया है। बीजेपी ने अपने पास मौजूद संसाधनों का फायदा उठाया। उसने रणनीति में बदलाव किया। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्रियों के नेतृत्व वाले केंद्रीय पूल से नेताओं को जुटाना भी शुरू किया। भाजपा नेता और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान 15 साल के अंतराल के बाद अपने गृह राज्य में लौटे। हाल ही में काफी संख्या में केंद्रीय मंत्रियों ने राज्य में डेरा डाल रखा था। कहीं न कहीं ये रणनीति बीजेपी के फेवर में काम कर गई।

सीएम के उत्तराधिकारी पर सवाल

भाजपा-बीजद के बीच जंग में बीजेपी ने पटनायक के करीबी सहयोगी वीके पांडियन को टार्गेट किया। पार्टी ने अपनी रणनीति इस तरह बनाई कि उनके तमिल मूल के होने पर सवाल खड़े कर दिए। बीजेपी ने इस बात का प्रचार किया कि वे ओडिशा के सीएम के उत्तराधिकारी बनेंगे। इसी के साथ बीजेपी ने रणनीति में 'ओडिया अस्मिता' को भी पुरजोर तरीके से आगे बढ़ाया। जिसमें ओडिशा के शासन और बीजद के आंतरिक मामलों में नौकरशाह से राजनेता बने व्यक्ति के प्रभाव का हवाला दिया गया।

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कभी एक साथ थी बीजेपी-बीजेडी

बताते चलें कि बीजद ने एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में 26 दिसंबर 1997 को पहली बार राज्य की सत्ता संभाली थी। इसके बाद से वह कभी सत्ता से बाहर नहीं रही। खास बात यह है कि 2009 तक बीजद और भाजपा दोनों गठबंधन में रहे थे, लेकिन इसके बाद दोनों की राहें ईसाई विरोधी दंगों के बाद अलग हो गईं। साल 2009 के चुनाव से ठीक पहले क्षेत्रीय पार्टी ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था। इसके बाद हुए तीन चुनावों में उसने हर बार 100 से ज्यादा सीटें हासिल कीं, लेकिन इस बार उसके प्रदर्शन ने हैरान कर दिया है।

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