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'पाकिस्तान में खूब सहे जुल्म...' नागरिकता मिलने से गदगद दिखे लोग, बयां की रूला देने वाली सच्चाई

CAA Indian Citizenship News: पाकिस्तान से भारत आए 14 भारतीयों को नागरिकता मिल चुकी है। जिसके बाद लोगों की खुशी देखते ही बन रही है। लोगों ने देश के सामने रूला देने वाली सच्चाई बयां की है। कहा है कि भारत आकर वे आजाद महसूस कर रहे हैं। पाकिस्तान में तो उनको घरों से बाहर निकलने पर भी पाबंदी थी।
07:50 PM May 17, 2024 IST | Parmod chaudhary
14 लोगों को मिली भारतीय नागरिकता।
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CAA Indian Citizenship: भारत में 14 शरणार्थियों को देश की नागरिकता प्रदान कर दी गई है। इनमें से 9 लोग आदर्श नगर और 5 मजनू का टीला इलाके में रहते हैं। दिल्ली में ये दो ऐसे इलाके हैं, जहां काफी शरणार्थी लोग रहते हैं। अब इन लोगों को स्थाई ठिकाना मिल गया है। नागरिकता मिलने की खुशी इन लोगों के चेहरे पर साफ देखी जा सकती है। इन लोगों ने बताया है कि पाकिस्तान में खूब जुल्म सहे। यहां आकर आजादी मिली। रूला देने वाली सच्चाई ये लोग बयां कर रहे हैं। सीएए को 12 मार्च को लागू किया गया था। जिसके बाद नागरिकता के पहले प्रमाण पत्र इनको वितरित किए गए।

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सबसे पहले बात करते हैं 25 साल की लक्ष्मी की। जिनके पिता को डर था कि अगर पाकिस्तान में रहे, तो बेटियों का जबरन धर्म परिवर्तन किया जाएगा। 2013 में ये लोग मीरपुर खास से भाग गए। परिवार तीर्थ यात्रा के बहाने आया और गुजरात में अपने रिश्तेदारों से आश्रय लिया। लक्ष्मी की शादी एक प्रवासी से कर दी गई। अब इस दंपति की एक साल की बेटी है। नागरिकता मिलने के बाद लक्ष्मी ने कहा कि छोटी उम्र में भारत आ गई थीं। वहां कभी नहीं स्कूल गई। लेकिन यहां अपनी बेटी को आजाद माहौल दे सकती हूं।

28 साल के झूले राम ने बताया कि 2009 में उनके इलाके में दंगे हुए थे। वे सिंध के छोटे से गांव में रहने लगे। 2013 में उन्होंने सीमा पार कर भारत का रुख किया। आज वे मजनू का टीला पर दुकान कर गुजारा करते हैं। उनके भाई हर्ष कुमार और चाचा शीतल दास को भी नागरिकता मिल गई है। वे सब खुश हैं।

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पाकिस्तान में हिंदू धर्म से भेदभाव

49 साल के दयाल दास बताते हैं कि 2013 में सिंध के हैदराबाद से भारत धार्मिक यात्रा पर आए थे। उनकी पत्नी, बेटा, बेटी को नागरिकता मिली है। 25 साल की यशोदा और भरत आज भारतीय बन चुके हैं। उनके ऊपर पाकिस्तान में खूब जुल्म हुए। लोग विरोध की दृष्टि से उनको देखते थे। हमारे बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाई। लेकिन यहां हर चीज की आजादी है। 18 साल की बवाना बताती हैं कि 22 मार्च 2014 को वाघा बॉर्डर से भारत आए थे। यहां खूब खुशी मिली। काम की आजादी मिली। वे टांडो अल्लाहयार गांव से यहां आए थे। वहां की यादें धुंधली हो चुकी हैं। वे बहन के साथ बुर्का पहनकर बाहर जाती थी। उनको पानी तक के लिए हैंडपंप को छूने की आजादी भी नहीं थी।

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CAA
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