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'इसमें गलत क्या?', भागवत के बयान से 'ऑर्गनाइजर' की राय अलग, जानें RSS के मुखपत्र ने क्या कहा?

RSS Chief Mohan Bhagwat: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों हर मस्जिद के नीचे मंदिर न खोजने को लेकर बयान दिया था। आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर की राय इससे जुदा है। मुखपत्र ने उनके बयान को लेकर क्या कहा, आपको बताते हैं?
05:51 PM Dec 26, 2024 IST | Parmod chaudhary
 इसमें गलत क्या    भागवत के बयान से  ऑर्गनाइजर  की राय अलग  जानें rss के मुखपत्र ने क्या कहा

Mohan Bhagwat: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान से संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने भी अलग रुख अपना लिया है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों हर मस्जिद के नीचे मंदिर न खोजने की नसीहत दी थी। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग राम मंदिर जैसे मामले खड़े करके हिंदुओं के नेता बनना चाहते हैं। ऐसा नहीं होने दिया जा सकता। माना जा रहा है कि आरएसएस के कुछ संगठनों में मोहन भागवत के बयान पर असहमति दिख रही है। अब आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर ने अपने ताजा अंक में संभल के मुद्दे को ही कवर स्टोरी बनाया है।

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मुद्दे को पहले स्थान पर जगह देते हुए संपादकीय लिखा गया है। ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल केतकर ने इसका शीर्षक 'सभ्यतागत न्याय की लड़ाई' दिया है। ऑर्गनाइजर ने लिखा है कि संभल जैसे मुद्दों की लड़ाई तो किसी का भी व्यक्तिगत या सामुदायिक अधिकार हो सकता है। पत्रिका का कहना है कि कोई भी अपने पूजास्थलों को मुक्त करवाने के लिए कानूनी एक्शन की मांग कर सकता है। इसमें आखिर क्या गलत है?

मैगजीन के कवर पेज पर फोटो

ऑर्गनाइजर ने लिखा है कि यह तो हम सबको मिला संवैधानिक अधिकार है। पत्रिका ने इसे सोमनाथ से संभल तक की लड़ाई से जोड़ दिया है। मैगजीन के कवर पेज पर संभल की तस्वीर के साथ लिखा गया है कि संभल में जो कभी श्री हरिहर मंदिर था, वहां अब जामा मस्जिद बनी है। इस मुद्दे ने समाज में धर्मनिरपेक्षता और सभ्यतागत न्याय पर एक नई बहस छेड़ दी है। जामा मस्जिद के रूप में संरचित श्री हरिहर मंदिर के सर्वेक्षण की याचिका ने संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों और भारतीय समाज के इतिहास को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। वकील विष्णु शंकर जैन और हिंदू संत महंत ऋषिराज गिरि द्वारा दाखिल की गई याचिका में विवादित ढांचे तक पहुंच के अधिकार की मांग की गई, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है।

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यह मुद्दा अब केवल एक धार्मिक विवाद तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा, सांप्रदायिक सद्भाव और ऐतिहासिक सत्य के पुनर्निर्माण पर गंभीर सवाल उठा रहा है। 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत मामला अदालत में लंबित है। लेकिन इस घटना ने देशभर में यह सवाल खड़ा किया है कि क्या धर्मनिरपेक्षता का सही तरीके से अनुप्रयोग हो रहा है या इसे चुनावी और राजनीतिक लाभ के लिए ही उपयोग किया जा रहा है?

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संभल में हाल ही में हुए घटनाक्रम में प्रशासन ने 'NO-GO जोन' में अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की, एक मस्जिद की छत से अवैध बिजली ट्रांसमिशन को नष्ट किया गया। दीवारों से ढके हुए शिवलिंग समेत एक हनुमान मंदिर का पता चला। इससे पहले 1978 के दंगों में हिंदुओं का भुला दिया गया, नरसंहार भी सामने आया। इस पूरे घटनाक्रम ने कई ऐतिहासिक और सांप्रदायिक मुद्दों को उजागर किया है, जिनसे धार्मिक और सामाजिक न्याय की अवधारणा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ऑर्गनाइजर ने लिखा है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता पर संविधान सभा में गहन बहस हुई थी और अंततः इसे संविधान में स्पष्ट रूप से नहीं रखा गया।

संघ ने नहीं की टिप्पणी

वहीं, बीजेपी ने आधिकारिक तौर पर ऑर्गनाइजर की प्रतिक्रिया से किनारा किया है। बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा है कि इस विषय पर मामला सर्वोच्च न्यायालय में है, लिहाजा हमें उसका इंतजार करना चाहिए। हालांकि संघ ने भी लेख पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। लेकिन संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ऑर्गनाइजर ने जो छापा है, वो आरएसएस की पुरानी लाइन है। लेकिन हाल में संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान आने के बाद ऐसे मुद्दे को उठाने से फिलहाल बचा जा सकता था।

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