सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई योगी सरकार को फटकार? कहा - डीएम की पत्नी सोसाइटी की अध्यक्ष कैसे?
Supreme Court on DM Wife becomes Head of Societies: आमतौर पर बड़े अधिकारियों की जहां पोस्टिंग होती है, उनकी पत्नियों का भी वहां रुतबा चलता है। खासकर वहां की सहकारी समितियों का बड़ा पद अधिकारियों की पत्नियों को ही मिलता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस कवायद पर गहरी नाराजगी जाहिर की है। सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को इन चीजों पर सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
बुलंदशहर मामले पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह औपनिवेशिक मानसिकता की उपज है, जो आज भी देश के कई राज्यों में चली आ रही है। अब इसे खत्म करने का समय आ गया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने बुलंदशहर मामले पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया है। दरअसल बुलंदशहर में सालों से यह प्रथा चली आ रही है कि बुलंदशहर जिला मजिस्ट्रेट की पत्नी या मजिस्ट्रेट द्वारा नामित किया गया सदस्य ही जिला महिला समिति की अध्यक्ष बनेंगी। यह प्रथा 1957 से चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति दर्ज करवाई है।
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2020 में हुआ नियमों में संशोधन
जनवरी 2020 में जिला महिला समिति ने उपनियमों में संशोधन करते हुए डीएम की पत्नी को ही अध्यक्ष न बनाने का फैसला किया था। इस बदलाव को सभी सोसाइटियों के डिप्टी रजिस्ट्राट ने भी हरी झंडी दिखा दी थी। हालांकि 2022 में जिला महिला समिति के अध्यक्ष पद पर चुनाव हुए। इसी बीच खबर सामने आई कि समिति की संपत्ति हड़पने के लिए एसोसिएशन के आर्टिकल में संशोधन किया गया था। सिटी मजिस्ट्रेट ने इसकी गुप्त जांच करवाई, जिसके आधार पर डिप्टी रजिस्ट्रार ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
चुनाव जीतकर बनें अध्यक्ष
खबरों की मानें तो 17 फरवरी 2023 को सभी पक्षों को सुने बिना ही डिप्टी रजिस्ट्राट ने समिति के संशोधनों को अवैध घोषित कर दिया गया था। ऐसे में समिति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया, जहां इस याचिका को खारिज कर दिया गया। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि महिलाएं अपने पति के आधार पर समिति के अध्यक्ष का पद क्यों संभालना चाहती हैं? अगर वो सचमुच अध्यक्ष बनना चाहती हैं, तो उन्हें राजनीति में शामिल होकर चुनाव लड़ना चाहिए और पूरी प्रक्रिया को फॉलो करते हुए अध्यक्ष पद पर पहुंचना चाहिए।
सरकार को दिया 6 महीने का समय
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कोर्ट में पैरवी कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार भी इस औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहती है। इसके लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से अनुमति मांगी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के कानून में संशोधन होना चाहिए। मॉडल बाय लॉ अंग्रेजी हुकूमत की देन है, जिसे खत्म करना होगा। अदालत ने यूपी सरकार को 6 महीने का समय दिया है, जिसके भीतर सरकार को मॉडल बाय लॉ में संशोधन करके कोर्ट के सामने रखना होगा।
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