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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली या नहीं; रिव्यू याचिकाओं पर SC ने सुनाया ये फैसला

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने साफ किया कि उसके फैसले में किसी प्रकार की कोई खामी नहीं है। इसके बाद शीर्ष अदालत ने याचिकाओं का निपटारा कर दिया।
10:56 PM Jan 09, 2025 IST | Parmod chaudhary
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली या नहीं  रिव्यू याचिकाओं पर sc ने सुनाया ये फैसला

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को समलैंगिक विवाह को लेकर दिए गए फैसले पर पुनर्विचार के लिए सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया। इसके अलावा कोर्ट ने सभी रिव्यू याचिकाओं को खारिज करने के आदेश दिए। न्यायालय ने कहा कि उसे अपने फैसले में किसी प्रकार की कोई खामी नजर नहीं आती है। फैसला कानून के अनुसार लिया गया है। इसमें किसी भी प्रकार का दखल नहीं दिया जा सकता है। जस्टिस सूर्यकांत, बीआर गवई, पीएस नरसिम्हा, दीपांकर दत्ता और बीवी नागरत्ना की बेंच ने यह फैसला सुनाया।

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याचिकाकर्ताओं ने पिछले साल जुलाई में कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में मांग की गई थी कि मामला जनहित से जुड़ा है, इसलिए खुली अदालत में सुनवाई हो। इस मामले में जस्टिस एस रवींद्र भट, एसके कौल, जस्टिस कोहली और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के रिटायर होने के बाद दोबारा नई बेंच का गठन किया गया था। वहीं, मौजूदा चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया था।

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सरकार ने की थी पैनल गठित करने की मांग

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर 2023 को मामले में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। ये मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। हालांकि शीर्ष अदालत ने समलैंगिक जोड़ों को कानूनी और सामाजिक अधिकार देने के लिए एक पैनल के गठन को मंजूरी दी थी। ये प्रस्ताव सरकार की ओर से भेजा गया था।

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अब शीर्ष न्यायालय ने कहा कि उनके रिकॉर्ड में कोई खामी नहीं दिख रही है। फैसला कानून के अनुसार ठीक तरह से लिया गया है। इसमें अगर दखल दिया जाएगा तो ठीक नहीं होगा। गौरतलब है कि पहले सुनवाई के दौरान 5 जजों की बेंच समलैंगिक साझेदारियों को मान्यता देने की वकालत कर चुकी है। इस बेंच में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल शामिल थे। बेंच ने ये भी कहा था कि ऐसे जोड़ों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भेदभाव विरोधी कानून बनाने जरूरी हैं।

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