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28 हफ्ते के भ्रूण को भी जीने का अधिकार है; पढ़ें गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

Supreme Court Pregnancy Termination Plea Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने अविवाहित लड़की के गर्भपात की परमिशन देने से इनकार कर दिया है। साथ ही अहम टिप्पणियां भी कीं। लड़की 28 हफ्ते की प्रेग्नेंट है और एक्ट के प्रावधानों के तहत फैसला सुनाया गया है।
09:23 AM May 16, 2024 IST | Khushbu Goyal
28 हफ्ते के भ्रूण को भी जीने का अधिकार है  पढ़ें गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात से जुड़े एक केस में अहम फैसला सुनाया है।

Supreme Court Rejects Pregnancy Termination Plea: गर्भ में पल रहे बच्चे, 28 हफ्ते के भ्रूण को भी जीने का मौलिक अधिकार है। उसे दुनिया में आने से नहीं रोका जा सकता। इस तरह मारा नहीं जा सकता है, यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने की है। सुप्रीम कोर्ट ने 28 सप्ताह के भ्रूण के जीवन के अधिकार को बरकरार रखा है।

एक केस में अहम टिप्पणी करते हुए 20 साल की अविवाहित लड़की को गर्भपात कराने की परमिशन देने से इनकार किया है। लड़की और उसके परिजनों द्वारा दर्ज याचिका को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत खारिज किया है। केस में फैसला दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने भी सुनाया और कहा था कि 24 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने का का कानून नहीं है। इस फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।

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वकील ने पीड़िता को सदमे में बताया

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस BR गवई, SVN भट्टी और संदीप मेहता की पीठ ने दलीलें सुनीं। महिला के वकील ने अविवाहित लड़की की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति मांगते हुए दलील दी कि वह सदमे मे है, इसलिए उसे गर्भपात कराने की परमिशन दी जाए। पीठ ने वकील ने पूछा कि उसकी गर्भावस्था 7 महीने से ज्यादा समय की है। पूर्ण विकसित भ्रूण है, जिसे जीने का अधिकार प्राप्त है।

जवाब देते हुए वकील ने कि कहा कि बच्चे का जीने का अधिकार उसके जन्म के बाद ही साकार होता है। MTP अधिनियम केवल मां की भलाई और स्वास्थ्य की रक्षा करता है। अविवाहित महिला अत्यधिक सदमे में है और अनचाहे गर्भ के कारण समाज का सामना करने और खुलकर जीने में असमर्थ है। इस दलील के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली HC के 3 मई के आदेश के खिलाफ दर्ज अपील खारिज कर दी।

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कुछ हालातों में दी जा सकती है परमिशन

जस्टिव गवई की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि वह MTP अधिनियम के आदेश के विपरीत कोई आदेश पारित नहीं कर सकती। खासकर जब अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में साफ कहा गया हो कि गर्भ में बच्चा पूरी तरह से विकसित है और बिल्कुल स्वस्थ है। एक्ट की धारा 3 में प्रावधान है कि जब गर्भावस्था की अवधि 20 सप्ताह की होती है तो इसे रजिस्टर्ड डॉक्टर द्वारा ही टर्मिनेट किया जा सकता है, लेकिन ऐसा तभी होता है, जब प्रेग्नेंसी जारी रखने से महिला-युवती की जान को खतरा हो। उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचती हो या बच्चा स्वस्थ न हो। बीमारियों का शिकार हो, जिनके साथ जीवन यापन में उसे मुश्किल हो। अन्यथा गर्भपात की अनुमति की परमिशन किसी भी स्थिति में नहीं जाएगी।

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