Independence Day Special: स्वतंत्रता दिवस को लालकिले पर झंडा क्यों फहराते हैं, पीएम भाषण क्यों देते हैं? जानें सबकुछ
Independence Day Special: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त 2024 को लगातार 11वीं बार लालकिले पर तिरंगा फहराएंगे। 2023 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देशवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने 2024 में भी लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराने का वादा किया था। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री हर साल स्वतंत्रता दिवस के दिन लालकिले पर झंडा क्यों फहराते हैं और लालकिले की प्राचीर से भाषण क्यों देते हैं?
जवाहर नेहरू ने शुरू की परंपरा
लालकिले पर झंडा फहराने और भाषण देने की परंपरा देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की। 14 अगस्त 1947 को जवाहर लाल नेहरू ने आजादी की पूर्व संध्या के मौके पर यादगार भाषण दिया था, इस मौके की याद में परंपरा का पालन करते हुए प्रधानमंत्री हर स्वतंत्रता दिवस को लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हैं।
नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की आधी रात को संसद में संविधान सभा को संबोधित करते हुए कहा, 'कई सालों पहले, हमने नियति के साथ एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा।'
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इसके बाद से आजाद भारत का हर प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के दिन लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करता है।
प्रधानमंत्री भाषण क्यों देते हैं?
स्वतंत्रता दिवस समारोह की शुरुआत लालकिले पर तिरंगा फहराने से होती है। इसके बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है और राष्ट्रगान होता है। जश्न समारोह के हिस्से के तौर पर प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री आजादी के बाद बीते वर्षों में हासिल की गई उपलब्धियों को रेखांकित करते हैं और एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्रगति को दुनिया के सामने रखते हैं।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री आने वाले सालों में देश की प्रगति का खाका भी देशवासियों के साथ शेयर करते हैं और विकास को लेकर अपना विजन साझा करते हैं। अंत में प्रधानमंत्री स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को स्मरण करते हुए उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हैं। इसके बाद वे आजादी के नायकों को श्रद्धांजलि देते हैं।
आजादी की लड़ाई में लालकिला
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लालकिले का ऐतिहासिक महत्व है। अगर हम कहें कि लालकिला हमारे स्वतंत्रता संग्राम का गवाह है तो यह गलत नहीं होगा। 1639 से 1648 के बीच निर्मित लालकिला पर ब्रिटिश हुकूमत ने 1803 में कब्जा कर लिया।
विद्रोह का प्रतीक
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लालकिला और बहादुर शाह जफर ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह के प्रतीक बनकर उभरे। विद्रोह को दबाने के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने लालकिले को ध्वस्त करने की योजना बनाई। लालकिले के दो तिहाई हिस्से को अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया। किले के स्वरूप को बिगाड़कर अंग्रेजों ने इसे सैनिक छावनी बना दिया। अंग्रेजों की कोशिश लालकिले की पहचान को विद्रोह के प्रतीक के बजाय साम्राज्यवादी सत्ता का प्रतीक बनाना था।
अंग्रेजों की ये कोशिश कई सालों तक जारी रही। 1911 में जब किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी भारत आए तो लालकिले की एक बालकनी में खड़े होकर उन्होंने अभिवादन स्वीकारा। आगे चलकर 1945 में लालकिले में आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) का ट्रायल भी चला।
दो साल बाद जब 1947 में भारत को आजादी मिली, तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फहराया। ये आजाद भारत का बिगुल था, जिसने साम्राज्यवादी सत्ता के प्रतीक के तौर पर लालकिले की छवि को खत्म कर दिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है, आज भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री का देश के नाम संबोधन और ध्वजारोहण समारोह दोनों ही इस प्रतिष्ठित स्मारक में होते हैं।