वो भेड़िया है... बदला लेने जरूर आएगा! 'दुश्मन' को न भूलता है न करता है माफ
Wolves Revenge Tendency : उत्तर प्रदेश के बहराइच में भेड़ियों के साथ जैसा मामला देखने को मिला है वह बिल्कुल भी सामान्य नहीं है। इसी को देखते हुए राहत और भेड़ियों को पकड़ने के ऑपरेशन में राज्य की मशीनरी से लेकर विभिन्न स्टेकहोल्डर तक शामिल हुए हैं। माना जा रहा है कि आम तौर पर इंसानी आबादी से दूरी बनाए रखने वाले भेड़ियों के बहराइच में दिखे हिंसक स्वरूप के पीछे का कारण उनके हैबिटेट डिस्टरबेंस यानी उनके प्राकृतिक आवास को लेकर आई समस्याएं हैं। एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि भेड़ियों के अंदर बदला लेने की प्रवृत्ति बहुत तेज होती है। इस रिपोर्ट में जानिए इस अनोखे मगर खतरनाक जानवर के बारे में कुछ अनोखी बातें।
बदला जरूर लेते हैं भेड़िये!
बहराइच के डिविजनल ऑफिसर अजित सिंह का कहना है कि शेर और तेंदुओं में बदला लेने की प्रवृत्ति नहीं होती, लेकिन भेड़ियों में ऐसा होता है। अगर भेड़ियों का हैबिटेट डिस्टर्ब होता है, उन्हें पकड़ने या मारने की कोशिश की जाती है या फिर उनके बच्चों को कैप्चर करने की कोशिश होती है तो वह इंसानों का शिकार कर बदला लेते हैं। भेड़िये बेहद इंटेलिजेंट जानवरों में आते हैं। इनके समूह का लीडर नर या मादा पेरेंट भेड़िया होता है। एक समूह में शिकार केवल 2 पेरेंट भेड़िये करते हैं। अगर वो बदला ले रहे हैं तो हमले तब तक नहीं रुकेंगे जब तक समूह के लीडर्स की पहचान न हो जाए। सिंह के अनुसार हो सकता है कि बुधवार तक पकड़े गए भेड़िये वो न हों जो हमला कर रहे हैं।
गलती का रिजल्ट तो नहीं?
इसे लेकर एक सीनियर फॉरेस्ट ऑफिसर के अनुसार जानवरों के व्यवहार में बदलाव कई कारणों से आ सकता है। इसकी जांच करने की जरूरत है। भेड़िये आम तौर पर खरगोश और बंदरों जैसे छोटे जानवरों को शिकार बनाते हैं। भेड़िया सामुदायिक जानवर होता है इसलिए इसमें खाना जमा करने की आदत होती है। एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि चूंकि इस समय बारिश का मौसम है तो हो सकता है कि बारिश का पानी उनकी गुफाओं में भर गया हो और इस वजह से खाने की खोज में उन्हें बाहर निकलना पड़ा हो। इसके साथ ही, कुछ लोगों का यह कहना भी है कि बहराइच में वर्तमान समय में हो रहे भेड़ियों के हमले बीते समय में की गई गलतियों का परिणाम भी हो सकते हैं।
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किस तरह करते हैं शिकार
वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स के अनुसार भेड़िये जिस गांव में एक बार शिकार करते हैं वहां उनके दोबारा हमला करने की आशंका बहुत कम ही होती है। उसी गांव को दोबारा शिकार बनाने की जगह वह 2 से 10 किलोमीटर की रेडियस में शिकार के नए ठिकाने ढूंढते हैं। इसीलिए उन्हीं इलाकों में फॉरेस्ट टीम की तैनाती करने का कोई फल नहीं निकल पाता जहां वह हमला कर चुके होते हैं। क्योंकि, दोबारा वह उस इलाके की ओर आते ही नहीं हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बिना प्रॉपर प्लानिंग, पहचान और स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना भेड़ियों के आतंक को कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे में बहराइच में ऑपरेशन भेड़िया को सफलतापूर्वक पूरा करने की चुनौती अब भी बनी हुई है।
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पहले भी फैल चुका आतंक
कतर्नियाघाट के पूर्व डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर और वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया में एग्जीक्यूटिव कंसल्टेंट ज्ञान प्रकाश सिंह के अनुसार पिछले साल बहराइच के महसी तहसील इलाके से 2 भेड़िये पकड़े गए थे। इन्हें जिले की चकिया फॉरेस्ट रेंज में छोड़ा गया था। सिंह का मानना है कि इस बात की संभावना है कि किसी तरह वही भेड़िये महसी वापस आ गए हों और हमला कर रहे हैं। सिंह बताते हैं कि एक समय में जौनपुर और आस-पास के इलाकों में पीली नदी के पास भेड़ियों का आतंक चरम पर था जब उन्होंने 4-5 महीनों के अंदर करीब 76 बच्चों का शिकार कर डाला था। उन्होंने कहा कि भेड़ियों के व्यवहार और हमला करने के पैटर्न को लेकर विस्तृत जांच शुरू कर दी गई है।
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