Crackers Free Diwali कितनी जरूरी? जरा खुद से पूछिए यह सवाल?
Crackers Free Diwali: बचत क्या होती है, यह हम भारतीयों से बेहतर कोई नहीं जानता। बचपन से ही हमें बचत का महत्व पढ़ाया जाता है। बूंद-बूंद से घड़ा भरने की कहावत भी अपने ही देश की है। छोटी-छोटी लेकिन नियमित बचत से हम बड़े-बड़े आर्थिक लक्ष्यों को भी हासिल कर सकते हैं। बचत हमारे DNA का हिस्सा बन चुकी है, मगर इतना सब जानने और समझने के बावजूद बचत का सही अर्थ हमें अब तक समझ नहीं आया है।
यही वजह है कि कई खास मौकों पर हम बचत को एक दिन का एजेंडा बना लेते हैं। कभी सीमित संसाधन तो कभी पर्यावरण की दुहाई देते हैं। जैसे होली पर पानी न बहाएं, दीवाली पर पटाखे न फोड़ें। बिजली की बचत के लिए तो बाकायदा हमने एक दिन निर्धारित कर रखा है, 'अर्थ ऑवर'। हर साल एक दिन हम अर्थ ऑवर के तौर पर मनाते हैं और एक घंटा बिजली बचाते हैं। पूरे साल की बर्बादी के बाद एक दिन की बचत क्या वाकई बचत है?
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पटाखे पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा खतरा
दीवाली के नज़दीक आते ही ‘क्रैकर्स फ्री’ दीवाली के मैसेज तेजी से सर्कुलेट होने लगे हैं। ऐसे ही कुछ कैंपेन लोगों से आतिशबाजी से दूर रहने की अपील कर रहे हैं। व्यक्तिगत तौर पर मैं पटाखों के इस्तेमाल को प्रोत्साहित नहीं करता। मुझे भी उसके दुष्परिणामों का इल्म है। खासकर दिल्ली जैसे शहरों में जहां हवा पहले से ही दम घोंटू बनी हुई है, वहां पटाखों का प्रदूषण और भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है, पर मुझे बस यह एक दिनी बचत परंपरा समझ नहीं आती।
आपको अपने आस-पास ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जिन्हें अपने घर का कचरा जलाने में कोई समस्या नहीं है। जिन्हें अपनी गाड़ी से निकलते काले धुएं से भी कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन दीवाली पर पटाखे इन्हें पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा लगते हैं। यही लोग होली पर पानी बचाने की सलाह देते हैं और खुद पूरा साल हर दिन आंगन और गाड़ी की धुलाई पर सैंकड़ों लीटर पानी कुर्बान करते हैं।
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पर्यावरण बचाने का करने होंगे ये उपाय
‘अर्थ ऑवर’ पर इनके घरों की लाइट पूरी तरह बंद रहती है, मगर बाकी दिन सूरज को चिढ़ाने के लिए दिन के उजाले में भी उनके आंगन की लाइट जलती रहती है। जैसे बड़े आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हम पूरे साल बचत करते हैं, ठीक वैसे ही बिजली-पानी की बचत करनी होगी, पर्यावरण का ख्याल रखना होगा। पूरा साल दोनों हाथों से लुटाकर और एक दिन रोककर क्या हम कुछ हासिल कर सकते हैं? इसका जवाब हम सभी जानते हैं, यह बात अलग है कि मानना नहीं चाहते। बिजली, पानी और पर्यावरण की जितनी चिंता खास मौकों पर की जाती है, यदि उतनी चिंता पूरा साल की जाए तो इस रस्मअदायगी की ज़रूरत ही नहीं बचेगी।
आइए इस दीवाली, 'बचत' और संरक्षण की शपथ लें। यह भी शपथ लें कि इस शपथ की याद हमें केवल साल के एक ही दिन नहीं आएगी। जिस तरह हम आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पूरा साल पैसे बचाते हैं, वैसे ही अपने और अपने बच्चों के आने वाले कल के लिए बिजली, पानी बचाएंगे। पर्यावरण को महफूज रखने के लिए कदम उठाएंगे। यकीन मानिए, यदि हम इस आदत को विकसित कर लेते हैं तो फिर शायद हमे अपने त्योहारों को बंदिश के साथ सेलिब्रेट करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
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