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झारखंड की सत्ता में 'सिंघम अगेन': 3 सवालों में छिपे हैं INDIA की जीत के मायने

Jharkhand Assembly Election Result 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव में जेएमएम कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन ने बाज़ी मार ली है। इस चुनाव पर सबकी निगाहें थी क्योंकि इससे दो-तीन बड़े सवालों के जवाब मिलने थे।
03:05 PM Nov 23, 2024 IST | Pooja Mishra
झारखंड की सत्ता में  सिंघम अगेन   3 सवालों में छिपे हैं india की जीत के मायने

Jharkhand Assembly Election Result 2024: झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन ने झारखंड में बाज़ी मार ली है। कुछ दिनों में हेमंत सोरेन दोबारा से मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो जाएंगे। झारखंड के इस चुनाव पर सबकी निगाहें थी क्योंकि इससे दो-तीन बड़े सवालों के जवाब मिलने थे।

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हेमंत सोरेन के जेल जाने से क्या सहानुभूति की लहर उमड़ी थी?

इस सवाल का जवाब हां में है क्योंकि झारखंड के इतिहास में हेमंत सोरेन की पार्टी के ऐतिहासिक सीटें मिल रहीं हैं, सबसे ज्यादा सीटें। इसके पहले JMM को 2019 में 30 सीटें मिलीं थी जो कि पार्टी के इतिहास में सबसे ज्यादा था। झारखंड में JMM का विकास लगातार बढ़ रहा है और हेमंत सोरेन इसके सबसे बड़े कारक दिख रहे हैं। चुनाव से कुछ महीने पहले हेमंत सोरेन को आय से अधिक संपत्ति के मामले में गिरफ्तार हुए थे और महीनों जेल में रहने के बाद कोर्ट से ज़मानत मिली थी। आम धारणा है कि कोई मुख्यमंत्री अगर भ्रष्टाचार में जेल जाता है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी और को सौंप कर जाता है। हेमंत सोरेन ने भी यही किया और पार्टी के सबस् विश्वासी चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया। चंपई सोरेन राज्य की सत्ता चलाते रहें कि कुछ महीनों में हेमंत जेल से छूट कर वापस लौटे। वापसी पर उन्होंने अपनी कुर्सी मांगी। चंपई ने कुर्सी वापस तो कर दी लेकिन अनमने और आहत मन से।

क्या चंपई सोरेन के पार्टी छोड़ने का नुकसान होगा?

चंपई ने अंदरुनी विचार करने के बाद खून पसीने से सींची पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। शायद उन्हें और चुनावी विश्लेषकों को लगा ये मास्टर स्ट्रोक है लेकिन जनता जनार्दन असली- नकली के खेल में एक बार फिर हेमंत को सहारा देने के लिए खड़ी हो गई। भारतीय जनता पार्टी में चंपई सोरेन का अस्तित्व कैसा होगा ये भी देखना दिलचस्प होगा।
यानी चंपई ने बीजेपी को फायदा नहीं पहुंचाया।

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2019 और 2024 में क्या बड़े अंतर आए

दोनों ही चुनाव अगर देखा जाए तो सबसे बड़ा अंतर गठबंधन का है। बहुमत के लिए 81 विधानसभा वाले सदन में 41 सीटें चाहिए। झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल, तीन मिल कर राज्य में आराम से सरकार बना रही हैं। कांग्रेस पार्टी भले महाराष्ट्र में पिछड़ी हो लेकिन झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए संजीवनी की तरह है। जनता के मन में गठबंधन की बात बैठी हुई थी और तीनों पार्टियों के वोटर एक साथ आए। चुनाव आयोग का पूरा आंकड़ा जब आएगा तो सूरत अभी और बदलेगी लेकिन इशारे बिलकुल साफ है।

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दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी कमोबेश वहीं खड़ी दिख रही है जहां पिछली बार थी। इस बार बाबूलाल मरांडी की पार्टी भी साथ में थी और चंपई सोरेन का हाथ भी था लेकिन जिस चमत्कार की उम्मीद उन्हें थी उससे काफी दूर हैं। शायद पार्टी अपना संदेश जनता तक नहीं पहुंचा पाई है।

कैसे बना झारखंड

जब दिल्ली मे अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी तब भारत में तीन नए राज्यों का गठन हुआ था। उत्तर प्रदेश को काटकर उत्तराखंड बना, मध्य प्रदेश को काटकर छत्तीसगढ़ और बिहार को काटकर झारखंड का निर्माण हुआ था। झारखंड का अस्त्तित्व 15 नवंबर 2000 को आया था और उस वक्त बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ साथ कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल भी सक्रिय थे। नए राज्य के निर्माण में JMM से संस्थापक शिबु सोरेन का बड़ा योगदान था और अब उनकी दूसरी पीढ़ी झारखंड पर राज कर रही है, हेमंत सोरेन उनके बेटे हैं और फिलहाल राज्य के मुख्यमंत्री हैं।

अखंड बिहार में 324 विधानसभा की सीटें थी और अलग होने के बाद बिहार विधानसभा के हिस्से 243 सीटें और झारखंड के हिस्से 81 सीटें आई थी। झारखंड में 18 जिले हैं और 14 लोकसभा की सीटें हैं।

2000 से लेकर 2019 तक

राजनीतिक तौर पर झारखंड बहुत ज़्यादा स्थिर नहीं रहा। शुरुआती दौर में राज्य में भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, चारों ही सक्रिय रहें। अगर गठन से लेकर 2019 के चुनावों तक की बात करें तो आपको दिखेगा कि लड़ाई भले ही बीजेपी और JMM लड़ते रहे हों लेकिन कांग्रेस और आरजेडी बीच बीच में खेल बिगाड़ती रही हैं। पिछले 15 सालों में ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन पार्टी और बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा भी उभरती दिखीं हालांकि 2020 में JVM बीजेपी में वापस विलय हो गई। इस बार AJSUP बीजेपी के साथ चुनाव लड़ी।

चुनाव दर चुनाव अगर नज़र डालें तो तस्वीर ऐसी दिखती है, 81 सीटों वाली विधानसभा में

  1. साल 2000 में बीजेपी 33, झारखंड मुक्ति मोर्चा(JMM) 12, कांग्रेस 11, राष्ट्रीय जनता दल(RJD) 09 सीटों पर रहीं।
  2. साल 2005 में बीजेपी 30 झारखंड मुक्ति मोर्चा(JMM) 17, कांग्रेस 09, राष्ट्रीय जनता दल(RJD) 07 रहीं।
  3. साल 2009 में बीजेपी 18, झारखंड मुक्ति मोर्चा(JMM) 18, कांग्रेस 14, राष्ट्रीय जनता दल(RJD) 05 रहीं।
  4. साल 2014 में बीजेपी 37, झारखंड मुक्ति मोर्चा(JMM) 19, कांग्रेस 06, JVM- 08, AJSUP-05 रहीं।
  5. साल 2019 में बीजेपी 25, झारखंड मुक्ति मोर्चा(JMM) 30, कांग्रेस 16, JVM-03 रहीं।

किसकी होगी दिल्ली

इस चुनाव का सबसे बड़ा असर दिल्ली के चुनावों पर पड़ने के आसार हैं। 2025 के फरवरी में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने है। आम आदमी पार्टी लगातार दो बार से सत्ता हासिल कर रही है । दिल्ली और झारखंड, दोनों की स्थिति तरकीबन एक सी दिख रही है। हेमंत सोरन भी जेल में थे और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जेल में थे। दोनों में अंतर सिर्फ इतना है कि हेमंत सोरेन ने जेल जाने से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी थी और केजरीवाल ने जेल से ही दिल्ली की सरकार चलाई थी।

भारत के कानून में ये साफ नहीं है कि जेल जाने पर कुर्सी छोड़नी ही है। नियम ये है कि अगर किसी राजनेता को अदालत 2 साल या उससे अधिक की सज़ा देती है तो उसे कुर्सी छोड़नी पड़ती है और उसके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगती है। अगर ऊपरी कोर्ट दोषी करार करने की सज़ा पर रोक लगा दे तो नेता दोबारा से अपनी कुर्सी संभाल सकते हैं।

हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने जेल से छूटते के बाद पंजाब में चुनाव से पहले अपनी कुर्सी छोड़ दी थी। यानी निगाहें हेमंत सोरेन के बाद अब सहानुभूति की लहर और दिल्ली की गद्दी पर रहेंगी।

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