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Opinion: जो 'खूबसूरत' नहीं उनके लिए सफल होना जरूरी क्यों? 'प्रिटी प्रिविलेज' कितने सही?

'दिखने की' अहमियत कितनी है, इसकी मिसाल अकेले प्राची निगम नहीं बल्कि चुनाव अधिकारी रीना द्विवेदी और ईशा अरोड़ा भी हैं जिनकी चर्चा उनकी 'खूबसूरती' की वजह से हो रही है।
07:43 PM May 01, 2024 IST | Gaurav Pandey
opinion  जो  खूबसूरत  नहीं उनके लिए सफल होना जरूरी क्यों   प्रिटी प्रिविलेज  कितने सही

शुरुआत यूपी बोर्ड की टॉपर प्राची निगम से करना चाहती थी लेकिन कुछ लिखती, इससे पहले नजर झारखंड बोर्ड की टॉपर जीनत परवीन पर पड़ गई। आज ही घोषित हुए नतीजों में एक सब्जी विक्रेता की बेटी, जीनत पत्रकारों को पूरे आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू देती नजर आई। दिखने में बेहद साधारण और आम सी लड़की। एक टॉपर छात्रा 'दिखने में' कैसी है, यह बताना पड़ रहा है क्योंकि मौजूदा वक्त में कोई 'दिखने में' कैसा है, इसकी अहमियत शायद कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है।

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'दिखने की' अहमियत कितनी है, इसकी मिसाल अकेले प्राची नहीं बल्कि चुनाव अधिकारी रीना द्विवेदी और ईशा अरोड़ा भी हैं जिनकी चर्चा उनकी 'खूबसूरती' की वजह से हो रही है। उनके इंटरव्यू महज इस आधार पर किए जा रहे हैं कि वे 'अच्छी दिखती' हैं और पूछा जा रहा है कि पिछली लोकसभा चुनाव में साड़ी के बाद उन्होंने इस चुनाव में वेस्टर्न ड्रेस क्यों पहनी।

बेशक महिलाओं के लुक्स की चर्चा पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा होती है लेकिन पुरुष भी इसके चंगुल से बच नहीं पाते। ज्यादा दिन नहीं हुए जब रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को फीचर करने वाले आर्टिकल्स की हेडलाइन में 'सेक्सी' और 'हॉट' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया।

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Story On Raghuram Rajan

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खूबसूरती की वजह से वायरल होने वाले लोग अपनी शोहरत से अमूमन खुश ही नजर आते हैं, जो स्वाभाविक भी है। हालांकि, महिलाओं के लिए कई बार यह असहज करने वाला भी होता है क्योंकि सिर्फ खूबसूरती पर चर्चा करके, उनकी प्रतिभा और उनके बाकी मानवीय गुणों को कहीं दबा सा दिया जाता है।

हालांकि, कुल मिलाकर यह मानने से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समाज को खूबसूरत नजर आने वाले लोगों को कदम-कदम पर छोटे-बड़े फायदे मिलते रहते हैं। इन फायदों को इंटरनेट की भाषा में 'प्रिटी प्रिविलेज' (Pretty Privilege) भी कहा जाता है। कई अध्ययनों में यह सामने आ चुका है कि खूबसूरती के सामाजिक पैमानों पर खरे उतरने वाले लोगों को न सिर्फ डेटिंग, प्यार, शादी और रोजमर्रा की जिंदगी में फायदे मिलते हैं बल्कि उन्हें करियर, नौकरी और प्रमोशन जैसे मामलों में भी फायदा होता है।

खूबसूरत लोगों को ज्यादा भरोसेमंद, काबिल और दोस्ताना और बेहतर लीडर माना जाता है। मीडिया, हॉस्पिटैलिटी और शोबिज ही नहीं बल्कि हर पेशे में खूबसूरत लोगों को किसी न किसी रूप में प्राथमिकता दी जाती है। इसकी मिसालें हमारे आस-पास से लेकर आईपीएल मैच के दौरान कैमरे की नजर में आने वाले चेहरों और पाकिस्तानी चायवाले तक दिखेंगी।

इस 'प्रिटी प्रिविलेज' और इसकी वजह से होने वाले भेदभाव को अक्सर झुठलाया जाता है लेकिन यह भेदभाव कितना क्रूर हो सकता है, इसका प्रमाण प्राची निगम के साथ हुआ बर्ताव दिखाता है। प्राची ने एक इंटरव्यू में कहा कि एक पल को उन्हें लगा कि अगर उनके दो-चार नंबर कम आ गए होते और वह टॉपर न बनतीं तो शायद उन्हें ये सब न झेलना पड़ता। यानी अगर कोई समाज की नजर में सुंदर या आकर्षक नहीं है, तो वह अपनी उस कामयाबी का जश्न भी नहीं मना सकता जो उसने सिर्फ और सिर्फ अपनी मेहनत और प्रतिभा से हासिल की है।

वैसे, बात सिर्फ कामयाब और प्रतिभाशाली लोगों की क्यों हो? प्राची का समर्थन करने वाले कई लोगों ने कहा कि उनके लुक्स नहीं बल्कि प्रतिभा की बात होनी चाहिए, आने वाले दिनों में यही ट्रोल करने वाले लोग प्राची से नौकरी मांग रहे होंगे, वगैरह-वगैरह। जाहिर है, ये बातें अच्छी नीयत से ही कही गई होंगी लेकिन प्राची के लिए यह समर्थन तब उमड़ा जब उन्होंने पूरे प्रदेश में टॉप किया। वह बताती हैं कि लुक्स की वजह से ताने और भद्दे कमेंट्स झेलना उनके लिए नया नहीं है।

सवाल यह भी है कि अगर प्राची टॉपर न होतीं, तो? अगर वह बेहद औसत दर्जे की या पढ़ाई में कमजोर छात्रा होतीं, तो? क्या औसत दिखने वाले लोगों के लिए अपनी खूबसरती की 'कमी' पूरा करने के लिए असाधारण रूप से प्रतिभाशाली या कामयाब होना अनिवार्य है?

हमने 'ब्यूटी स्टैंडर्ड्स' को इतना नॉर्मलाइज कर दिया है कि लोगों की तारीफ करते हुए भी हम उनका अपमान कर देते हैं। मसलन, अगर कोई अपेक्षाकृत मोटी या काली लड़की सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर अपलोड करे तो उसे 'बहादुर' और 'कॉन्फिडेंट' बता दिया जाता है जबकि इसमें बहादुरी जैसा तो कुछ भी नहीं है। वह भी बाकी लोगों की तरह बस एक फोटो ही पोस्ट कर रही है लेकिन शायद हम बाकी लोगों को 'क्लॉजेट' में देखने के इतने आदी हो गए हैं कि उन्हें सामान्य रूप से सबके सामने आने को भी बहादुरी समझ लेते हैं।

'खूबसूरती देखने वालों की नजर में होती है' और 'असली सुंदरता मन की सुंदरता' होती है जैसी बातों की गुलाबी पंखुड़ियां यथार्थ के कठोर धरातल से टकराकर कैसे मुरझा जाती हैं, इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। कॉमेडियन जाकिर खान बॉडी शेमिंग के अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि काफी दिनों तक उन्हें यह नसीहत मिलती रही कि लोगों की बातों पर ध्यान मत दो लेकिन लोगों की बातों से ज्यादा फर्क न पड़े, इसके लिए भी सफलता का एक स्तर हासिल करना जरूरी सा हो जाता है।

बॉडी शेमिंग का शिकार होने वालों को अक्सर यह नसीहत भी दी जाती है कि घटिया कमेंट करने वालों का मुंह अपनी कामयाबी से बंद कर दो। लेकिन ये हिदायत देते हुए हम अक्सर भूल जाते हैं कि भारत के सबसे मुश्किल पढ़ाई वाले बोर्ड में टॉप करने के बाद भी प्राची और भारत जैसे देश की राष्ट्रपति बनने के बाद भी द्रौपदी मुर्मू को बॉडी शेमिंग का शिकार होना पड़ता है।

बॉडी शेमिंग की वजह से लोगों को तरह-तरह के भेदभाव तो झेलने ही पड़ते हैं, इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका घातक असर हो सकता है। ऐसे वाकये भी हैं जब रूप-रंग के कारण कुछ लोगों को इस कदर बुरा और इनसिक्योर महसूस कराया गया कि उन्होंने आत्महत्या तक कर ली।

तो फिर इसका उपाय क्या है? उपाय यही है कि हम इंसानी तौर पर अपने पूर्वाग्रहों को लेकर थोड़ा सचेत रहने की कोशिश करें, थोड़ा संवेदनशील और समझदार बनने की कोशिश करें। हम 'प्रिटी प्रिविलेज' और लुक्स को लेकर होने वाले भेदभाव को नकारें नहीं। इस पर लगातार बात करें और इससे निपटने के बारे में सोचें। हम इस सच को स्वीकारें कि खूबसूरती के पैमाने इंसानों के बनाए हुए हैं। हम यह भी समझें कि समाज में स्वीकारे जाने के लिए, जिदगी में बराबर मौके पाने के लिए और लोगों के बीच सम्मान पाने के लिए खूबसूरत होना या एक खास तरह का दिखना जरूरी नहीं है क्योंकि जैसा कि अमेरिकी लेखिका एरिन मैकीन ने कहा है, 'खूबसूरती इस दुनिया में रहने का किराया नहीं है।'

(लेखिका पत्रकार और भाषा विशेषज्ञ हैं। इस लेख में लिखे विचार उनके निजी हैं।)

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