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Jaswant Singh Khalra: ये थे फिल्म '95' के Real Life हीरो, मजलूमों की लड़ाई लड़ी तो पुलिस ने ले ली जान

02:49 PM Aug 10, 2023 IST | News24 हिंदी
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बलराज सिंह, अमृतसर: इन दिनों एक फिल्म खासी चर्चा में है, नाम है ’95’। यह फिल्म पंजाब में आतंकवाद के काले दौर में मजलूमों की लड़ाई लड़ने वाले समाजसेवी जसवंत सिंह खालड़ा की कहानी पर बनी है। मशहूर पंजाबी और बॉलीवुड अभिनेता दिलजीत दोसांझ अभनीत इस फिल्म को लेकर पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने सेंसर बोर्ड से अपील की है कि फिल्म पंजाबी-95 को बिना किसी कट के पास किया जाए, ताकि सच्चाई लोगों के सामने आ सके। न्यूज 24 आपको उसी हकीकत से रू-ब-रू करा रहा है। जानें क्या थी मानवाधिकार कार्यकर्ता खालड़ा की जिंदगी की असल हकीकत…

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बात उस वक्त की है, जब रोज जलती थी आठ-दस लाशें

बात उस वक्त की है, जब रोज आठ-दस लोगों की लाशें उठाकर पंजाबियत के कंधे थक चुके थे। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि इस वक्त हम खालिस्तानी मूवमेंट और इससे निपटने वाली कार्रवाई पर चर्चा कर रहे हैं। 1973 में शुरू हुए खालिस्तानी मूवमेंट को 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी लोगों का सपोर्ट मिल रहा था। पंजाब पुलिस इसे कुचलने के लिए गिरफ्तारियां करने लगी। जिस पर भी रत्तीभर शक होता, पुलिस उसी को तुरंत उठा लेती थी। बताया जाता है कि 1984 से 1995 तक सिर्फ शक के आधार पर ही पुलिस ने बहुत से एनकाउंटर किए।
दिवंगत पॉलिटिकल एक्टिविस्ट राम कुमार नारायण की ऑस्ट्रेलियन डाक्यूमेंट्री ‘India Who Killed The Sikhs’ में बताया गया है कि बहुत से मामलों में पुलिस लड़कों को उठाकर ले जाती, झूठा केस बनाती, उनकी रिहाई के बदले लाखों रुपए मांगती और नहीं मिलने पर फट से ठिकाने लगा देती थी।

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1992 में पंजाब पुलिस ने उत्तर प्रदेश में रिश्तेदारी से उठाया पियारा सिंह को और मार डाला

इन्हीं में से एक कहानी साल 1992 की है, जब अमृतसर के सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक में बतौर डायरेक्टर काम करते पियारा सिंह नाम के एक आदमी को पुलिस ने अरेस्ट किया, जो अपने किसी रिश्तेदार के पास उत्तर प्रदेश गए हुए थे। परिजन और परिचित उनकी तलाश करने लगे, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस के पास भी कोई जवाब नहीं था। फिर बैंक में उनके सहकर्मी डायरेक्टर रहे जसवंत सिंह खालड़ा को पता चला कि पियारा को पुलिस ने एनकाउंटर में मार दिया और अमृतसर के दुर्गीयाना मंदिर शमशान घाट में बिना किसी को बताए उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया तो खालड़ा अकाली दल की ह्यूमन राइट्स विंग के चेयरमैन जसपाल सिंह ढिल्लों के साथ श्मशान घाट पहुंचे।

दोस्त की मौत का सच बाहर लाने की कोशिश में जसवंत ने ऐसे खोले अनेक राज

बताया जा रहा है कि अंतिम संस्कार के लिए रोज लाई जा रही आठ से दस लाशों में से हर एक के नाम आदि की जरूरी जानकारी मिलना मुश्किल था (जसवंत की पत्नी परमजीत कौर की किताब और मल्लिका कौर की किताब Faith, Gender, and Activism in The Punjab Conflict: The Wheat Fields Still Whisper में भी इसका उल्लेख है)। जसवंत ने शुरुआती रजिस्टरों की जांच में पाया कि साल 1992 में दुर्गीयाना मंदिर श्मशान घाट में 300 से ज्यादा बेनाम लाशों का अंतिम संस्कार किया गया था। दूसरी जगह भी पुलिस द्वारा इसी तरह लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार की बात सामने आई तो जसवंत ने अपने साथियों के साथ मिलकर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट में एक रिट पिटिशन दायर की। इसे कोर्ट के समक्ष आने का अधिकार नहीं बताते हुए कोर्ट ने तुरंत ही खारिज कर दिया गया। इसके बाद हार नहीं मानने वाले जसवंत सिंह खालड़ा अमृतसर के अलग-अलग शमशान घाट गए। जहां सीधा रिकॉर्ड नहीं मिला, वहां खरीदी हुई लड़की का हिसाब लगाया।

पुलिस ने पहले जांच को झुठलाया और फिर जसवंत को ठिकाने लगा दिया

16 जनवरी 1995 को अकाली दल की ह्यूमन राइट्स विंग ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जसवंत की जांच में सामने आए साल 1984 से 1994 के बीच पट्टी में 400, तरनतारन में 700 और दुर्गीयाना में 2000 गैर कानूनी अंतिम संस्कारों के आंकड़े सार्वजनिक किए। इसके दो दिन बाद अमृतसर में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पंजाब के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (DGP) KPS गिल ने दावा किया कि जिन युवाओं के लापता होने की बात खालड़ा कर रहे हैं, वो देश छोड़कर भाग गए हैं और विदेश में फर्जी डॉक्युमेंट्स पर नौकरियां कर रहे हैं।

फिर 6 सितंबर 1995 को जसवंत सिंह खालड़ा अपने घर के बाहर गाड़ी धो रहे थे तो वहां आए कुछ लोग उन्हें अपने साथ ले गए। मौके पर मौजूद गवाहों ने बताया कि वो लोग पुलिस अधिकारी थे। हालांकि पुलिस ने उस वक्त ऐसे तमाम आरोप नकार दिए। फिर 27 अक्टूबर को जसवंत सिंह खालड़ा का शव सतलुज नदी में हरिके पत्तन में मिला। परिवार और करीबियों ने संदिग्ध अवस्था में हत्या की जांच के लिए सीबीआई की मांग की।

CBI की जांच में खुला राज, कोर्ट से हुई पुलिस वालों को सजा

1996 में सीबीआई ने पाया कि खालड़ा को किडनैप करने के बाद कुछ समय तरनतारन के एक पुलिस स्टेशन में रखा गया था। साथ ही उनकी किडनैपिंग और मर्डर के आरोप में पंजाब पुलिस के दस अधिकारियों का नाम दिया। सीबीआई जांच के करीब नौ साल बाद कोर्ट ने पंजाब पुलिस के छह अधिकारियों को दोषी पाया और सात साल की सजा सुनाई। 2007 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने उन छह में से चार आरोपियों की सज़ा को बदलकर उम्रकैद कर दिया। दोषी पुलिसवालों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां 2011 में कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और सज़ा को बरकरार रखा। इस वक्त जसवंत सिंह खालड़ा की पत्नी परमजीत कौर खालड़ा इस मजलूमों की इस लड़ाई को जारी रखे हुए हैं।

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