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Modi 3.0 Cabinet में राजस्थान के कोटे में 4 मंत्रियों के पीछे ये 4 समीकरण, 5वां क्यों नजरअंदाज?

Rajasthan Lok Sabha Election 2024 Result: राजस्थान विधानसभा चुनाव में जिस तरह बीजेपी ने वसुंधरा राजे को साइड में कर भजनलाल शर्मा को सीएम बना दिया था। लगता है लोकसभा चुनाव में भी कहीं न कहीं बीजेपी शीर्ष नेतृत्व की नाराजगी वसुंधरा राजे सिंधिया से कम नहीं हुई है। उनके बेटे को इस बार मंत्री नहीं बनाया गया है।
07:25 PM Jun 10, 2024 IST | Parmod chaudhary
modi 3 0 cabinet में राजस्थान के कोटे में 4 मंत्रियों के पीछे ये 4 समीकरण  5वां क्यों नजरअंदाज
पीएम मोदी की कैबिनेट में राजस्थान से 4 मंत्री

Modi 3.0 Government: (केजे श्रीवत्सन, जयपुर) राजस्थान से इस बार पहली बार जीते भूपेंद्र यादव, दूसरी बार जीते भागीरथ और तीसरी बार जीते गजेंद्र शेखावत को मंत्री बनाया गया है। वहीं, चौथी बार जीते अर्जुन मेघवाल भी मोदी कैबिनेट में जगह बनाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन 5वीं बार जीते वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत की अनदेखी क्यों हो गई? अब लोगों में तरह-तरह की चर्चाएं तेज हो गई हैं। भले ही राजस्थान में लोकसभा चुनावों के नतीजों में बीजेपी को 11 सीटों का तगड़ा नुकसान हुआ है। लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में इस बार फिर से पिछली बार की तरह चार सांसदों को प्रतिनिधित्व मिल गया है। इसके पीछे एक, दो, तीन और चार का रोचक समीकरण दिख रहा है। लेकिन इसी समीकरण के हिसाब से पांचवें अंक वाले गणित को नजरअंदाज करना सबको चौंका रहा है।

दरअसल अलवर से लोकसभा का पहला चुनाव लड़कर जीतने वाले भूपेंद्र यादव को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। पिछली बार वे राज्यसभा सांसद थे और मोदी मंत्रिमंडल में उन्हें जगह मिली थी। लेकिन पहली बार बाबा बालकनाथ के तिजारा से विधानसभा चुनाव जीतने के चलते खाली हुई अलवर संसदीय सीट से वे 48 हजार से भी अधिक वोटों से जीते हैं। जिसके बाद उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में जगह मिली है।

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पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में वे राज्य मंत्री थे, लेकिन इस बार उनका प्रमोशन करके उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला है। इसी तरह भागीरथ चौधरी अजमेर से दूसरी बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं. और उनको भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली है. भागीरथ चौधरी इससे पहले अजमेर से ही साल 200३ और साल 2013 में विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेस के रिजु झुनझुनवाला को हराकर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। करीब 6 महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें पार्टी ने टिकट दिया था। लेकिन उनकी करारी हार हुई। बावजूद इसके जातिगत समीकरणों के चलते उन्हें 6 महीने बाद ही लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी बनाया गया। उन्होंने पीएम मोदी को इस बार निराश नहीं किया और जिसके इनाम के तौर पर उनको राज्यमंत्री बनाया माना जा रहा है।

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तीसरी बार जोधपुर संसदीय क्षेत्र से गजेंद्र सिंह शेखावत ने चुनाव लड़ा। वे जीते और मोदी मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए। गजेंद्र सिंह मोदी के दूसरे कार्यकाल जल शक्ति मंत्री रहे थे। मारवाड़ इलाके के राजपूत समाज का बड़ा चेहरा वे माने जाते हैं। 2019 के संसदीय चुनाव में उन्होंने अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को करारी शिकस्त दी थी। वहीं, तमाम विपरीत समीकरणों और राजपूत समाज की नाराजगी के बाद भी वे पूर्व सीएम अशोक गहलोत के निर्वाचन क्षेत्र सरदारपुरा से भी बढ़त लेने में कामयाब रहे। संगठन से जुड़े होने और पीएम मोदी की गुड बुक में शामिल होने का फायदा उन्हें मिला। हालांकि जोधपुर में ही रहने वाले पाली जिले से बड़े अंतर के साथ हैट्रिक लगाने वाले सांसद पीपी चौधरी को भी इस बार निराशा हाथ लगी। पहली बार पीपी चौधरी को मंत्री बनाया गया था, लेकिन दूसरी बार नहीं।

अर्जुन मेघवाल फिर से बने मंत्री

चौथी बार सांसद बनने वाले अर्जुन राम मेघवाल की चुनावों से पहले ही जीत तय लग रही थी और जीतने के बाद फिर से मंत्रिमंडल में शामिल होना तय था। हुआ भी ऐसा ही। पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में कानून मंत्रालय जैसे अहम ओहदे को संभालने वाले मेघवाल को फिर से कैबिनेट में शामिल किया गया है। बीकानेर में पूर्व राजघराने के महाराजा करणी सिंह के बाद अर्जुन राम मेघवाल सबसे अधिक चौथी बार चुनकर संसद पहुंचे हैं। दलित चेहरा होने और प्रशासनिक कार्यकुशलता ने उन्हें फिर से मोदी कैबिनेट में जगह दिला दी है। अब बात लगातार पांचवीं बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले शख्स की। जिनको बड़ी जीत के बाद भी मंत्री नहीं बनाया गया। राजस्थान की दो बार सीएम रह चुकीं वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत सिंह की बात हो रही है।

साफ छवि के माने जाते हैं दुष्यंत सिंह

झालावाड़-बारां से लगातार 5 बार बड़े मतों के अंतर से जीत दर्ज करने वाले अर्थशास्त्र और बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री रखने वाले दुष्यंत सिंह साफ छवि के माने जाते हैं। उनके खिलाफ कोई केस नहीं है। दुष्यंत को मौका नहीं दिए जाने को लेकर कहा जा रहा है कि वसुंधरा राजे के प्रति शीर्ष नेतृत्व की नाराजगी बरकरार है। नाराजगी के कारण लोकसभा चुनावों में वसुंधरा सिर्फ अपने बेटे दुष्यंत के संसदीय क्षेत्र में ही चुनाव प्रचार तक सीमित रहीं। राजे और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में दुष्यंत सिंह को जगह देकर बीजेपी डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश करेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। माना जा रहा है कि वसुंधरा को अब बीजेपी में तरजीह नहीं मिल रही। जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है।

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