खींवसर क्यों बनी राजस्थान की हॉट सीट? त्रिकोणीय मुकाबले में हनुमान बेनीवाल की अग्नि परीक्षा
Rajasthan By-Election 2024 News: (के.जे.श्रीवत्सन) राजस्थान में 7 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनावों का बिगुल बज चुका है। कांग्रेस ने सभी सात सीटों, तो सत्तारूढ़ भाजपा ने 6 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। राजस्थान की हॉट सीट बनी खींवसर का मुकाबला भी काफी दिलचस्प होने वाला है। कांग्रेस और बीजेपी की टक्कर से परे RLP सांसद हनुमान बेनीवाल ने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतार दिया है। RLP का इस सीट से चुनाव जीतना हनुमान बेनीवाल के लिए भी साख का सवाल बन गया है। आइए जानते हैं क्यों?
कांग्रेस अकेले लड़ेगी चुनाव
साल 2023 में हुए विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनावों की तरह भाजपा इस बार भी अपने बूते पर चुनाव मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन के तहत सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ा था। हालांकि कांग्रेस आलाकमान इन उपचुनावों में भी गठबंधन की संभावना की कोशिशों में थे, लेकिन राजस्थान कांग्रेस के नेताओं ने अपने खोये जनाधार का हवाला देकर अकेले चुनावी मैदान में जाने का इरादा जता दिया, जिसका सम्मान करते हुए पार्टी ने सभी 7 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को उतार दिया है।
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खींवसर सीट और हनुमान बेनीवाल
अब जब कि कांग्रेस और भाजपा की सूची आ चुकी है, तो सबसे ज्यादा मुश्किल वाली स्थिति इंडिया गठबंधन में शामिल हनुमान बेनीवाल की हो गई है। खींवसर सीट हनुमान बेनीवाल का गढ़ है। साल 2018 में एनडीए तो साल 2023 में इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर हनुमान बेनीवाल ने यहां से चुनाव लड़ा था। इसी साल हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ मिलकर यहां से चुनाव जीता और संसद भी पहुंच गए, लेकिन यह उपचुनाव इस बार उनके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। कांग्रेस ने यहां से रिटायर डीआईजी सवाई सिंह चौधरी की पत्नी रतन चौधरी को मैदान में उतारा है।
पिछले चुनाव में भाजपा ने दी थी टक्कर
पिछले चुनावों में भाजपा प्रत्याशी ने हनुमान बेनीवाल को जबरदस्त टक्कर दी, लेकिन भाजपा महज 2 हजार वोटों से हार गई। इस बार फिर भाजपा ने रेवन्तराम डांगा को मैदान में उतार कर आरएलपी की मुश्किलें बढ़ा दी है। हालांकि हनुमान बेनीवाल खुद भी जानते हैं कि खींवसर सीट का इलाका उनकी राजनितिक प्रतिष्ठा से जुड़ा है, पिछले विधानसभा चुनावों में यही एकमात्र सीट हनुमान बेनीवाल ने जीती थी। यही कारण है कि उन्होंने इंडिया गठबंधन के साथ ही चुनाव लड़ने का संकेत दिया, मगर राजस्थान कांग्रेस के नेताओं से बात नहीं बनी।
हनुमान बेनीवाल वर्सेज रेवंतराम डांगा
हनुमान बेनीवाल चुनावी माहौल बनाने के लिए जनसभाएं तो कर रहे थे, लेकिन प्रत्याशी को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले। भले ही यह जाट लैंड की महत्वपूर्व सीट है। ऐसे में खींवसर का उपचुनाव कांग्रेस-भाजपा से ज्यादा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के लिए जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। गत चुनाव में रालोपा ने यह एकमात्र सीट जीती थी, ऐसे में इस सीट को बचाये रखने में हनुमान बेनीवाल को एडी से चोटी का जोर लगाना होगा। अबकी बार भाजपा के रेवंतराम डांगा बहुत कम अंतर से हुई अपनी पिछली हार का बदला लेने के लिए जबरदस्त तैयारियों के साथ मैदान में जुटे हैं।
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बेनीवाला के बिगड़े बोल बने मुसीबत
कांग्रेस के हनुमान बेनीवाल के साथ चुनावों में नहीं जाने के पीछे राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा की सोच बताई जा रही है। इंडिया गठबंधन के सहारे मिली लोकसभा की जीत के बावजूद भी हनुमान के उलटे सीधे बयानों ने कांग्रेस के साथ रिश्ते खराब कर दिए थे। यह बयान देते समय शायद हनुमान भूल गये थे कि कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन उपचुनाव में उन्हें ही फायदा पहुंचा सकता था। गोविन्द डोटासरा और हनुमान दोनों जाट समाज के बड़े नेता है। वर्चस्व की लड़ाई में इनकी अदावत किसी से भी छिपी हुई नहीं है ,उसी का नतीजा है डोटासरा ने इस बार हाईकमान को गठबंधन न करने की सलाह देकर बेनीवाल को उन्हीं के घर में घेरने के लिए पार्टी हाईकमान को भी तैयार कर लिया।
कांग्रेस का प्लान
इस पूरी कवायद के पीछे कहा जा रहा है कि डोटासरा हाईकमान को यह समझाने में सफल हो गये कि हनुमान बेनीवाल को राजस्थान में तीसरी शक्ति के रूप में उभरने देना कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में बड़ी परेशानी का कारन हो सकता है। बेहतर होगा कि राजस्थान में दो पार्टियों का ही चुनावों में वर्चस्व बना रहे। हाईकमान को भी यह अच्छी तरह से पता था की इस उपचुनाव के नतीजे न तो राजस्थान की सरकार की सेहत बेगाद सकते हैं और न ही कांग्रेस इनमे जीत के बाद सरकार बनाने की हालत में हैं।
त्रिकोणीय संघर्ष पर टिकी नजर
बहरहाल, सबकी नजर जाट लैंड की महत्वपूर्व सीट खींवसर के चुनावी माहौल और उसके बाद आने वाले नतीजों पर टिकी हैं। ऐसे में यह देखना होगा की उपचुनाव के इस त्रिकोणीय संघर्ष में किस तरह के समीकरण बनते हैं और उससे भी बड़ा सवाल कि क्या पिछली बार तक 3 विधायकों को विधानसभा में भेजने वाली हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी यहां से जीत के बाद अपने एकमात्र सदस्य को विधानसभा भेज पाएगी या नहीं?
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